बढ़ते हिमालयी आपदा संकट
भारतीय हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियल झील फटना, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन और हिमस्खलन जैसी आपदाओं में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। जो घटनाएँ पहले दुर्लभ थीं, वे अब सामान्य हो चुकी हैं और इससे पहाड़ी पारिस्थितिक तंत्र अस्थिर हो रहा है। इसका असर लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश तक फैला है और नेपाल व भूटान को भी प्रभावित करता है। यह आपदाएँ बुनियादी ढाँचे, आजीविका और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन रही हैं।
स्थैतिक जीके तथ्य: हिमालय दुनिया के सबसे कम उम्र के फोल्ड पर्वत हैं, जो लगभग 5 करोड़ वर्ष पहले भारतीय और यूरेशियन प्लेटों की टक्कर से बने।
हाल की जलवायु घटनाएँ
- फरवरी 2021 (चमोली, उत्तराखंड): ग्लेशियर टूटने से हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट नष्ट।
- अक्टूबर 2023 (सिक्किम): साउथ लोनार्क झील फटने से चुंगथांग बांध क्षतिग्रस्त।
- अगस्त 2025 (हरसिल): फ्लैश फ्लड से महत्त्वपूर्ण मार्ग बाधित।
ये घटनाएँ भूस्खलन और समुदायों के अलग–थलग पड़ने का कारण बनती हैं।
क्षेत्रीय भेद्यता
- लद्दाख: ग्लेशियर पिघलना और पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना।
- जम्मू–कश्मीर: रक्षा राजमार्गों पर लगातार भूस्खलन।
- हिमाचल व उत्तराखंड: अनियमित वर्षा और पर्यटन का दबाव।
- सिक्किम व नेपाल: सीमापार झील फटना।
- अरुणाचल व भूटान: अचानक नदी बाढ़ और चेतावनी प्रणालियों की कमी।
स्थैतिक जीके तथ्य: हिमालय भारत के 5 राज्यों में फैला है – जम्मू-कश्मीर (लद्दाख सहित), हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश।
विकास और सुरक्षा जोखिम
हाईवे, सुरंग और बांध जैसे कई प्रोजेक्ट भूवैज्ञानिक खतरों को नज़रअंदाज़ करते हैं। हिमालय की भूकंपीय और नाज़ुक प्रकृति इन्हें आपदाओं के लिए संवेदनशील बनाती है। रक्षा बलों के लिए बाढ़ और भूस्खलन आपूर्ति मार्ग और चौकियों को काट सकते हैं। सुरक्षित इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत नागरिक और रक्षा – दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
नीति और लचीलापन
15वें वित्त आयोग (2021–26) ने ₹1.6 लाख करोड़ जलवायु लचीलापन के लिए आवंटित किए। इसमें हैज़र्ड मैपिंग, अर्ली वार्निंग सिस्टम और आपदा–रोधी इंफ्रास्ट्रक्चर शामिल हैं। सिक्किम और उत्तराखंड में कार्यान्वयन शुरू हो चुका है।
16वें वित्त आयोग (2026–31) से अपेक्षा है कि वह धन आवंटन को लचीलापन परिणामों से जोड़ेगा।
स्थैतिक जीके टिप: भारत का पहला वित्त आयोग 1951 में अनुच्छेद 280 के तहत गठित हुआ।
स्थानीय शासन और नवाचार
पहाड़ी क्षेत्रों की स्थानीय संस्थाओं को मज़बूत बनाने की योजना है। इसमें ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर, आपदा बीमा योजनाएँ और क्लाइमेट बजटिंग जैसी पहल शामिल हैं। इससे पर्वतीय समुदायों को आपदाओं से निपटने की क्षमता मिलेगी।
वैश्विक सहयोग
भारत की G-20 अध्यक्षता (2023) में आपदा लचीलापन को वैश्विक प्राथमिकता दी गई। इसके बाद वित्तीय उपकरण, बीमा पूल और सीमापार डेटा साझाकरण को बढ़ावा मिला। भारत–नेपाल–भूटान के बीच संयुक्त अभ्यास और साझा चेतावनी नेटवर्क को अहम माना जा रहा है।
स्थैतिक जीके तथ्य: G-20 की स्थापना 1999 में हुई और भारत ने पहली बार 2023 में अध्यक्षता की।
विकास और पारिस्थितिकी का संतुलन
सतत हिमालयी विकास के लिए जलवायु जोखिम, सीमा सुरक्षा और पारिस्थितिकी का संतुलन आवश्यक है। इसके लिए इको–टूरिज्म, नवीकरणीय ऊर्जा और स्थानीय क्षमता निर्माण ज़रूरी है।
इंफ्रास्ट्रक्चर योजना में हैज़र्ड असेसमेंट को शामिल करना चाहिए ताकि जैव विविधता, सांस्कृतिक धरोहर और जल सुरक्षा की रक्षा हो सके।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
चमोली आपदा 2021 | ग्लेशियर टूटने से हाइड्रो प्रोजेक्ट नष्ट |
सिक्किम बांध फटना 2023 | साउथ लोनार्क झील फटने से चुंगथांग बांध क्षतिग्रस्त |
फ्लैश फ्लड 2025 | हरसिल में बाढ़ से महत्त्वपूर्ण मार्ग बाधित |
प्रभावित राज्य | लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल |
सीमापार प्रभाव | नेपाल और भूटान झील फटने से प्रभावित |
वित्त आयोग | 15वें वित्त आयोग ने ₹1.6 लाख करोड़ दिए |
नीति परिवर्तन | 16वें वित्त आयोग से लचीलापन-आधारित फंडिंग अपेक्षित |
रक्षा जोखिम | भूस्खलन और बाढ़ से सीमा चौकियों की आपूर्ति बाधित |
G-20 प्राथमिकता 2023 | आपदा लचीलापन को वैश्विक एजेंडा में शामिल किया गया |
सतत उपाय | इको-टूरिज्म, नवीकरणीय ऊर्जा, क्लाइमेट बजटिंग |