भारत की रिकॉर्ड-ब्रेकिंग डाइव्स
अगस्त 2025 में, दो भारतीय अक्वानॉट्स ने अटलांटिक महासागर में क्रमशः 4,025 मीटर और 5,002 मीटर की गहराई तक गोता लगाया। यह पहली बार था जब भारत 4,000 मीटर से अधिक गहराई तक पहुँचा।
इस उपलब्धि के साथ भारत अब उन छह से कम देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने इतनी गहरी डाइविंग की है। इससे भारत की वैश्विक समुद्री अन्वेषण क्षमता और महासागर विज्ञान अनुसंधान में वैज्ञानिक ताकत मजबूत हुई।
स्थैतिक जीके तथ्य: विश्व महासागरों का सबसे गहरा स्थान चैलेंजर डीप (Mariana Trench) है, जिसकी गहराई लगभग 10,984 मीटर है।
भारत-फ्रांस सहयोग
यह मिशन फ्रांस के प्रमुख समुद्री अनुसंधान संस्थान IFREMER के साथ साझेदारी में संचालित हुआ।
भारतीय वैज्ञानिकों ने पुर्तगाल के पास फ्रांसीसी अनुसंधान जहाज़ ला’अटलांते से नौटिल पनडुब्बी के माध्यम से गोताखोरी की। इस सहयोग से भारतीय वैज्ञानिकों को सबस्मर्सिबल संचालन, नमूना संग्रह और प्रबंधन का प्रशिक्षण मिला।
इस प्रकार की परियोजनाएँ वैश्विक वैज्ञानिक सहयोग और तकनीकी हस्तांतरण को बढ़ावा देती हैं।
स्थैतिक जीके टिप: IFREMER का पूरा नाम Institut Français de Recherche pour l’Exploitation de la Mer है, जिसका मुख्यालय ब्रेस्ट, फ्रांस में है।
मात्स्य-6000 पनडुब्बी
मात्स्य-6000 भारत द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित मानव-संचालित पनडुब्बी है, जिसे 6,000 मीटर गहराई के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें 12 घंटे का परिचालन समय, टाइटेनियम हुल और आपातकालीन बचाव प्रणाली मौजूद है।
2025 की शुरुआत में इसके गीले परीक्षण सफल रहे। 2026 में उथले जल परीक्षण और 2027–28 में गहरे समुद्र परीक्षण समुद्रयान मिशन के अंतर्गत होंगे।
स्थैतिक जीके तथ्य: मात्स्य-6000 का विकास राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT), चेन्नई द्वारा किया जा रहा है।
गहरे समुद्री संसाधनों का रणनीतिक महत्व
भारत की 7,517 किमी लंबी तटरेखा और विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) समुद्री संसाधनों तक पहुँच प्रदान करते हैं। डीप ओशन मिशन का लक्ष्य इन संसाधनों का सतत उपयोग करना है, जिसमें 4,000–5,500 मीटर गहराई पर पाए जाने वाले पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स शामिल हैं।
भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (ISA) से सेंट्रल इंडियन ओशन बेसिन में अन्वेषण के लिए अनुबंध प्राप्त है। यह मिशन ब्लू इकोनॉमी विकास और ओशन क्लाइमेट एडवाइजरी सेवाओं को भी समर्थन देता है।
स्थैतिक जीके टिप: भारत का EEZ 2.37 मिलियन वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र में फैला है।
राष्ट्रीय दृष्टिकोण और भविष्य की राह
भारत की गहरे समुद्र अनुसंधान में प्रगति उसकी अंतरिक्ष उपलब्धियों के समानांतर है। ये दोनों क्षेत्र भविष्य की वृद्धि के जुड़वाँ स्तंभ माने जाते हैं।
2027 तक, समुद्रयान मिशन का लक्ष्य है कि मात्स्य-6000 को पूर्ण 6,000 मीटर की गहराई तक संचालित किया जाए, जिससे भारत वैश्विक उच्च–प्रौद्योगिकी विज्ञान में अग्रणी बन सके।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय | विवरण |
| उपलब्धि की तारीख | अगस्त 2025 |
| प्राप्त गहराई | 4,025 मीटर और 5,002 मीटर |
| महासागर | अटलांटिक महासागर |
| साझेदार देश | फ्रांस |
| प्रयुक्त पनडुब्बी | नौटिल |
| अनुसंधान जहाज़ | ला’अटलांते |
| भारतीय पनडुब्बी का नाम | मात्स्य-6000 |
| मात्स्य-6000 का लक्ष्य | 6,000 मीटर |
| प्रमुख भारतीय एजेंसी | राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) |
| समुद्र तल खनन अनुबंध प्राधिकरण | अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (ISA) |





