BESZ की पृष्ठभूमि
भगीरथी इको सेंसिटिव ज़ोन (BESZ) को 2012 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारा अधिसूचित किया गया था। यह गंगोत्री ग्लेशियर के गौमुख से उत्तरकाशी तक 4,179.59 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत बफर ज़ोन घोषित करता है।
2018 के संशोधन ने नागरिक सुविधाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सीमित भूमि उपयोग परिवर्तन की अनुमति दी, बशर्ते पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) किया जाए।
अधिसूचना के अनुसार, उत्तराखंड सरकार को वॉटरशेड दृष्टिकोण अपनाते हुए एक ज़ोनल मास्टर प्लान (ZMP) बनाना आवश्यक है, जिसमें वन, वन्यजीव, सिंचाई, पर्यटन, जनस्वास्थ्य और सड़क अवसंरचना शामिल हों।
स्थैतिक GK तथ्य: पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 केंद्र सरकार को संवेदनशील क्षेत्रों में गतिविधियों को प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।
पैनल की चेतावनी
अगस्त 2025 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त पैनल (जिसमें भूवैज्ञानिक नवीन जुयाल और पर्यावरणविद हेमंत ध्यानी शामिल हैं) ने चेतावनी दी कि वर्तमान चारधाम ऑल-वेदर रोड की एक समान 10-मीटर चौड़ीकरण डिज़ाइन हिमालय की नाज़ुक भौगोलिक संरचना में आपदाओं को जन्म दे सकती है।
उन्होंने कहा कि 5 अगस्त को धराली में आई फ्लैश फ्लड—जिसने गाँव को तबाह कर दिया—उनकी पहले दी गई भविष्यवाणियों से मेल खाती है।
पैनल ने अक्टूबर 2023 में प्रस्तुत अपने वैकल्पिक DPR को अपनाने की मांग की, जो लचीला, आपदा-रोधी डिज़ाइन सुझाता है और पेड़ कटाई व ढलानों में हस्तक्षेप को न्यूनतम करता है।
पर्यावरणीय चिंताएँ
धराली की बाढ़ ने BESZ के भीतर केवल 10 किमी क्षेत्र में 6,000 से अधिक देवदार पेड़ों की कटाई पर चिंता बढ़ा दी है। यह इलाका भूस्खलन और मोरेन अस्थिरता के लिए कुख्यात है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल हटाने से आपदा का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। स्थानीय लोगों ने अधिकारियों पर बार-बार चेतावनियों की अनदेखी और BESZ मानदंडों के उल्लंघन का आरोप लगाया, इसे “प्राकृतिक नहीं, मानव-जनित” तबाही बताया।
ZMP और स्थानीय असंतोष
सर्वोच्च न्यायालय और NGT द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों ने स्वीकृत ZMP को अस्वीकार किया, यह कहते हुए कि इसमें उनकी सहमति, स्थानीय और महिलाओं की भागीदारी शामिल नहीं थी और इसने मूल BESZ अधिसूचना के सिद्धांतों का उल्लंघन किया।
उन्होंने टिप्पणी की कि अंतिम ZMP केवल विभागीय दस्तावेज़ीकरण था, जिसमें ढलान कटाई, जलविद्युत परियोजनाओं की सीमाओं और संवेदनशील क्षेत्रों में भूमि उपयोग परिवर्तन पर प्रतिबंध से जुड़ी चेतावनियाँ शामिल नहीं की गईं।
निष्कर्ष
BESZ हिमालयी नदी गलियारे की नाज़ुक पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए बनाया गया था, लेकिन अवसंरचना प्राथमिकताओं ने इसके मूल उद्देश्य को कमजोर किया है। धराली की त्रासदी के बाद पैनल की चेतावनियाँ इस बात पर जोर देती हैं कि विकास को पारिस्थितिक स्थिरता के साथ संतुलित किया जाए, वैकल्पिक DPR अपनाया जाए और BESZ के लिए सख्त सुरक्षा लागू की जाए।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय | विवरण |
| BESZ अधिसूचना | 2012 में घोषित, 2018 में सीमित नागरिक व सुरक्षा उपयोग हेतु संशोधित |
| क्षेत्रफल | गौमुख से उत्तरकाशी तक 4,179.59 वर्ग किमी |
| सर्वोच्च न्यायालय पैनल चेतावनी | मौजूदा सड़क योजना धराली जैसी आपदाएँ ला सकती है |
| वैकल्पिक DPR | अक्टूबर 2023 में प्रस्तुत, लचीला व ढलान-अनुकूल डिज़ाइन |
| पेड़ कटाई | आपदा-प्रवण क्षेत्र में 6,000+ देवदार पेड़ काटने का प्रस्ताव |
| ZMP आलोचना | स्वीकृत योजना में विशेषज्ञ व स्थानीय सहमति का अभाव, ढलान खतरे की अनदेखी |





