भारत की अंतरिक्ष योजनाओं में एक बड़ा कदम
भारत अब अपनी अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को एक नई ऊँचाई पर ले जाने की तैयारी कर रहा है। केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में तीसरे लॉन्च पैड (TLP) की स्थापना को मंजूरी दे दी है। यह केवल एक और लॉन्च प्लेटफॉर्म नहीं है—यह आगामी मानव अंतरिक्ष अभियानों को समर्थन देने के लिए एक निर्णायक कदम है। इस नई सुविधा से भारत और अधिक आधुनिक रॉकेट्स को लॉन्च करने और बढ़ती मिशन मांगों को संभालने में सक्षम होगा।
यह नया लॉन्च पैड क्यों महत्वपूर्ण है
यह तीसरा लॉन्च पैड नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल्स (NGLV) और LVM3 रॉकेट्स को समर्थन देगा, जो भारी उपग्रहों और भविष्य के मानव मिशनों के लिए आवश्यक हैं। इसका सबसे खास पहलू है इसकी लचीलापन—यह विभिन्न प्रकार के लॉन्च वाहनों को समायोजित कर सकता है। इसका मतलब है कि यह वैज्ञानिक और व्यावसायिक दोनों तरह के अभियानों के लिए उपयोगी होगा—सैटेलाइट से लेकर चंद्रमा तक की उड़ानों तक।
बड़ा बजट, बड़ी दृष्टि
TLP परियोजना की अनुमानित लागत ₹3984.86 करोड़ है, जो यह दर्शाती है कि भारत अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं के विस्तार को लेकर गंभीर है। इस परियोजना को 48 महीनों, यानी 2028 तक, पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। यह समयसीमा चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को देखते हुए आवश्यक भी है। यह निवेश केवल गौरव के लिए नहीं है—बल्कि भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान और तकनीकी भविष्य को मजबूत बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
भारत की अंतरिक्ष संरचना को मजबूती
इस समय भारत के पास दो लॉन्च पैड हैं—पहला लॉन्च पैड (FLP) और दूसरा लॉन्च पैड (SLP)। FLP पिछले 30 वर्षों से, और SLP 20 वर्षों से सक्रिय हैं। ये ISRO के कई सफल अभियानों का आधार रहे हैं। लेकिन बढ़ती मांगों के बीच, TLP का जुड़ना भारत को बैकअप विकल्प और अधिक बार लॉन्च की सुविधा देता है, जिससे मिशन और अधिक सटीक और भरोसेमंद बनेंगे।
दीर्घकालिक लक्ष्यों को समर्थन
तीसरा लॉन्च पैड भारत के दीर्घकालीन अंतरिक्ष दृष्टिकोण के साथ जुड़ा हुआ है। इसमें शामिल है 2035 तक ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन‘ की स्थापना और 2040 तक भारतीय मानव मिशन को चंद्रमा पर भेजना। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ऐसी बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है—जिसके बिना भारी उपग्रहों या मानव यानों का प्रक्षेपण संभव नहीं है।
भविष्य के रॉकेट्स: NGLV
नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV) ISRO द्वारा विकसित किया जा रहा एक अत्याधुनिक और शक्तिशाली रॉकेट है। इसे आंशिक रूप से पुन: प्रयोग करने योग्य बनाया जा रहा है, जिससे समय के साथ लागत में कमी आती है—जैसे SpaceX के Falcon रॉकेट्स में होता है। यह भविष्य में पुराने रॉकेट्स जैसे PSLV और GSLV का स्थान लेगा और ISRO की योजनाओं का मुख्य आधार बनेगा।
‘एक बार उपयोग’ से ‘पुनः उपयोग’ की रणनीति की ओर
पहले के लॉन्च व्हीकल्स पूरी तरह से डिस्पोजेबल होते थे—एक मिशन के बाद उन्हें फिर से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। लेकिन अब भारत भी स्थायी और लागत–कुशल समाधानों की ओर बढ़ रहा है। NGLV जैसे पुनः उपयोग योग्य रॉकेट यह दर्शाते हैं कि भारत अब वैश्विक अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा में बड़ी भूमिका निभाने को तैयार है।
Static GK Snapshot for Competitive Exams
विषय | तथ्य |
तीसरे लॉन्च पैड का स्थान | सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश |
समर्थित लॉन्च व्हीकल्स | NGLV और LVM3; विभिन्न विन्यास के लिए उपयुक्त |
परियोजना लागत | ₹3984.86 करोड़ |
पूर्णता समयसीमा | 48 महीने (लक्ष्य वर्ष: 2028) |
मौजूदा लॉन्च पैड्स | FLP (30+ वर्ष), SLP (20+ वर्ष) |
नया लॉन्च व्हीकल | NGLV – आंशिक रूप से पुनः उपयोग योग्य भारी रॉकेट |
भविष्य की योजनाएं | भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (2035), भारतीय चंद्रमा मिशन (2040) |
इस बुनियादी ढांचे के साथ, भारत सिर्फ रॉकेट्स लॉन्च करने की नहीं, बल्कि भविष्य में अंतरिक्ष अन्वेषण में अग्रणी बनने की तैयारी कर रहा है। TLP भारत के अंतरिक्ष यात्रा के स्वर्ण युग की शुरुआत का संकेत बन सकता है।