उत्खनन में मिला दुर्लभ वैज्ञानिक उपकरण
रायगढ़ किले में चल रहे उत्खनन कार्य के दौरान पुरातत्वविदों को तांबा–कांसे से बना एक प्राचीन यंत्रराज (Astrolabe) प्राप्त हुआ है। यह उपकरण केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि शिवाजी महाराज के काल में भारत की वैज्ञानिक प्रगति का प्रमाण है। इस उत्खनन को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और रायगढ़ विकास प्राधिकरण ने संयुक्त रूप से संचालित किया।
रायगढ़ किले का ऐतिहासिक महत्व
महाराष्ट्र के उत्तर कोंकण के सह्याद्रि पर्वतों में स्थित रायगढ़ किला गहरी घाटियों से घिरा है और रणनीतिक रूप से अति सुरक्षित माना जाता है। मूल रूप से इसका निर्माण स्थानीय सामंत चंद्ररावजी मोरे ने करवाया था, जिसे 1656 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने जीतकर रायरी से रायगढ़ नाम दिया।
यह किला न केवल सैन्य दृष्टि से, बल्कि मराठा साम्राज्य की राजधानी भी रहा। बाद में यह किला 1707 में अहमदनगर सुल्तान फतेह खान और फिर 1818 में ब्रिटिशों के कब्जे में चला गया, जिन्होंने इसे “पूर्व का जिब्राल्टर” कहा।
किले के प्रमुख स्थापत्य स्थल
- महा दरवाजा – विशाल प्रवेश द्वार
- रणिवास – रानियों के लिए कक्ष
- नगरखाना दरवाजा – राजगद्दी के सामने
- गंगा सागर – कृत्रिम जलाशय
- जगदीश्वर मंदिर – आज भी क्रियाशील
- छत्रपति शिवाजी की समाधि – अंतिम विश्राम स्थल
यंत्रराज की विशिष्टता
मिला हुआ यंत्रराज पारंपरिक गोल आकार का नहीं, बल्कि आयताकार है, जिस पर संस्कृत और देवनागरी शिलालेख हैं। इसमें कछुआ या साँप जैसी पशु आकृतियाँ, और ‘मुख‘ (सिर) तथा ‘पूंछ‘ (पुच्छ) चिह्नित हैं। यह यंत्र दिशा निर्धारण, विशेष रूप से उत्तर–दक्षिण अक्ष निर्धारण में उपयोगी रहा होगा।
यह यंत्र शक 1519 (1597 ईस्वी) का है — यानी शिवाजी महाराज के किले पर अधिकार से पहले का। ऐसा अनुमान है कि इसका उपयोग 1656 के किले पुनर्निर्माण या 1674 के राज्याभिषेक में किया गया हो सकता है।
इतिहास की समझ में नया आयाम
इस तरह का वैज्ञानिक यंत्र मिलना दर्शाता है कि मराठा साम्राज्य में खगोलविज्ञान और नौवहन का ज्ञान काफी उन्नत था। यह संभावित है कि किले की योजना और शासन व्यवस्था में खगोलविद्या का प्रयोग किया गया हो।
संभाजीराजे छत्रपति के अनुसार, यह यंत्र शिवाजी महाराज की प्रशासनिक रणनीतियों का भी संकेत हो सकता है। इस तरह के उपकरण आमतौर पर खगोलविदों और नाविकों द्वारा उपयोग में लाए जाते थे।
संरक्षण और आगे की योजना
ASI मुंबई सर्कल द्वारा रायगढ़ किले में अन्य खोजों — जैसे शिवराई सिक्के, मिट्टी के बर्तन, हथियार आदि — को भी संरक्षित किया जा रहा है। यह यंत्रराज अब रासायनिक उपचार के बाद मुंबई संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल शुरुआत है। आगामी विश्लेषण से मराठा नौसैनिक तकनीक, खगोलशास्त्र और शासन प्रणाली के बारे में और जानकारियाँ सामने आ सकती हैं।
Static Usthadian Current Affairs
विषय | विवरण |
रायगढ़ किले का स्थान | उत्तर कोंकण, सह्याद्रि पर्वत, महाराष्ट्र |
निर्माता | चंद्ररावजी मोरे |
शिवाजी द्वारा अधिग्रहण | 1656 ईस्वी |
मराठा राजधानी | छत्रपति शिवाजी के शासन में |
ब्रिटिश कब्जा | 1818 ईस्वी (तोप से हमला कर जीत लिया गया) |
विशिष्ट खोज | तांबा-कांसे का यंत्रराज (आयताकार खगोल यंत्र) |
यंत्र की तिथि | शक 1519 / 1597 ईस्वी |
शिलालेख | संस्कृत और देवनागरी |
प्रमुख स्थापत्य स्थल | महा दरवाजा, रणिवास, गंगा सागर, जगदीश्वर मंदिर |
संरक्षण संस्था | ASI मुंबई सर्कल |
मराठा कालीन मुद्रा | शिवराई सिक्का |
वैज्ञानिक उपयोग | दिशा निर्धारण, खगोलविज्ञान, नौवहन |