शहरी केंद्र: भारत की भविष्य की अर्थव्यवस्था के प्रेरक
भारत के शहर तेजी से देश की आर्थिक रीढ़ बनते जा रहे हैं। रिपोर्टों के अनुसार, 2030 तक लगभग 70% नई नौकरियां शहरी क्षेत्रों में उत्पन्न होंगी। प्रवासन और आधारभूत ढांचे का विकास शहरों को अवसर के केंद्रों में बदल रहा है।
लेकिन यह विकास जलवायु से जुड़ी चुनौतियों से असुरक्षित है। अत्यधिक गर्मी, मानसूनी बाढ़ और शहरी हीट ज़ोन जैसे खतरे इन आर्थिक केंद्रों की दीर्घकालिक स्थिरता को प्रभावित कर रहे हैं।
Static GK तथ्य: वर्ष 2050 तक भारत में 950 मिलियन से अधिक लोग शहरी क्षेत्रों में रहेंगे, जिससे यह दुनिया के सबसे अधिक शहरीकृत देशों में शामिल होगा।
समृद्धि की ओर बढ़ते शहर, लेकिन जलवायु जोखिम में
विश्व बैंक की 2025 की रिपोर्ट, Towards Resilient and Prosperous Cities in India, चेतावनी देती है कि यदि समय रहते उपाय नहीं किए गए तो जलवायु संकट से हर वर्ष अरबों डॉलर का नुकसान हो सकता है।
वर्तमान में केवल बाढ़ से होने वाला नुकसान $4 बिलियन प्रतिवर्ष है, जो भविष्य में और बढ़ने की आशंका है। रिपोर्ट के अनुसार, यदि आवश्यक उपाय न किए जाएँ, तो 2070 तक यह नुकसान $30 बिलियन प्रति वर्ष तक पहुंच सकता है।
Static GK टिप: भारत शहरी जनसंख्या वृद्धि के मामले में दुनिया के शीर्ष पांच देशों में है।
सतत अवसंरचना के लिए समय-संवेदी अवसर
भारत के शहरी बुनियादी ढांचे का अभी 50% से अधिक निर्माण होना बाकी है, जिससे यह एक अनोखा मौका बन जाता है कि हम हरित और जलवायु–लचीले शहरों का निर्माण करें।
रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक भारत के शहरों में सेवा और बुनियादी ढांचे की खामियों को दूर करने के लिए $2.4 ट्रिलियन की आवश्यकता होगी।
इस समय निकासी प्रणाली की कमी, अत्यधिक तापमान और यातायात जाम जैसे मुद्दे शहरी उत्पादकता को प्रभावित कर रहे हैं।
स्थानीय स्तर पर दिख रहा है प्रभाव
कुछ शहर पहले ही लक्षित जलवायु समाधान अपनाना शुरू कर चुके हैं:
अहमदाबाद ने देश की पहली हीट एक्शन योजना बनाई है जिसमें हरे क्षेत्र और सार्वजनिक चेतावनी शामिल हैं।
कोलकाता में रीयल–टाइम बाढ़ चेतावनी प्रणाली काम कर रही है।
चेन्नई ने जोखिम क्षेत्रों पर आधारित डेटा–प्रेरित रणनीति अपनाई है।
इंदौर अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरणीय रोजगार में आगे बढ़ रहा है।
ये उदाहरण दिखाते हैं कि स्थानीय नेतृत्व, निवेश और नागरिक सहभागिता से परिवर्तन संभव है।
सतत शहरी विकास की राह में बाधाएँ
हालांकि कई प्रयास हो रहे हैं, फिर भी अनियंत्रित विस्तार प्राकृतिक जल अवशोषण क्षमता को कम कर रहा है। नगर निकायों के पास पर्याप्त बजट नहीं है, और विभागों में समन्वय की कमी है।
सबसे अहम बात यह है कि जलवायु शिक्षा और जन–जागरूकता की कमी है, जिससे सामुदायिक भागीदारी सीमित हो रही है।
अगर भारत को शहरी विकास से पूर्ण लाभ लेना है तो शहरों की योजना जलवायु लक्ष्यों से मेल खानी चाहिए ताकि समृद्धि और सुरक्षा साथ चलें।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
विश्व बैंक रिपोर्ट का शीर्षक | Towards Resilient and Prosperous Cities in India |
2050 तक शहरी जनसंख्या अनुमान | 951 मिलियन |
2030 तक शहरी रोजगार सृजन | 70% नई नौकरियां |
2030 तक वार्षिक जलवायु-नुकसान | $5 बिलियन |
2070 तक अनुमानित नुकसान | $14–30 बिलियन |
2050 तक आवश्यक निवेश | $2.4 ट्रिलियन |
निर्माणाधीन शहरी अवसंरचना | 50% से अधिक |
प्रमुख लचीले शहर | अहमदाबाद, चेन्नई, इंदौर, कोलकाता |
हीट आइलैंड प्रभाव | शहरों में 3–4°C अधिक तापमान |
प्रमुख शहरी खतरे | बाढ़, हीटवेव, अनियोजित विस्तार |