भारत में मोटापा: तेजी से बढ़ता खतरा
भारत में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है, जो वैश्विक प्रवृत्तियों की प्रतिकृति है। वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के बाद से वयस्क मोटापा चार गुना बढ़ चुका है। भारत में 4.4 करोड़ महिलाएं और 2.6 करोड़ पुरुष मोटापे से ग्रस्त हैं। यह लैंगिक असमानता एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा बन चुकी है। इसके साथ ही, 5.2 मिलियन लड़कियां और 7.3 मिलियन लड़के बाल मोटापे की चपेट में हैं।
स्वास्थ्य जोखिम और दीर्घकालिक प्रभाव
मोटापा हृदय रोगों के खतरे को काफी बढ़ाता है, खासकर तब जब यह बचपन से शुरू होता है। बचपन में हाई BMI वाले बच्चों में बाद में 40% अधिक हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा रहता है। इसके कारण जीवन प्रत्याशा घटती है और यह देश की बीमारी के बोझ में लंबी अवधि तक योगदान करता है।
उपचार में बाधाएं और जागरूकता की कमी
हालाँकि मोटापे को अब एक बीमारी के रूप में मान्यता मिल चुकी है, परंतु सही इलाज तक पहुंच अभी भी सीमित है। वित्तीय, सामाजिक और स्वास्थ्य प्रणाली संबंधी अड़चनें, विशेषकर कलंक की भावना, मरीजों को मदद लेने से रोकती हैं। जीवनशैली में बदलाव जैसे आहार और व्यायाम पर ज़ोर दिया जाता है, लेकिन निरंतर समर्थन के बिना वे पर्याप्त नहीं होते। GLP-1 जैसी उन्नत दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन इनकी कीमत आम भारतीयों के लिए बहुत अधिक है।
दवा नवाचार और बाजार का विकास
हाल ही में मोटापे की नई दवाओं को अनुमोदन मिलने से चिकित्सकों में आशा जगी है। उदाहरण के तौर पर, एलाय लिली की माउंजारो दवा की बिक्री में तेजी देखी गई है, जबकि नोवो नॉर्डिस्क की वेगोवी जल्द ही भारत में दस्तक देने वाली है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे कम लागत वाले जेनेरिक विकल्पों का रास्ता खुलेगा और उपचार की पहुंच बढ़ेगी।
बढ़ती आर्थिक लागत
मोटापा सिर्फ स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि आर्थिक बोझ भी बन चुका है। एक अध्ययन के अनुसार, 2019 में भारत को मोटापे के कारण $28.95 बिलियन का नुकसान हुआ था। यदि यही स्थिति जारी रही, तो 2060 तक यह लागत $838.6 बिलियन तक पहुंच सकती है। इसमें स्वास्थ्य खर्च, उत्पादकता की हानि, और दीर्घकालिक विकलांगता शामिल हैं।
आगे की राह: समावेशी सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियां
भारत को इस महामारी से निपटने के लिए व्यापक और किफायती स्वास्थ्य रणनीति की आवश्यकता है। जागरूकता बढ़ाना, इलाज की पहुंच सुनिश्चित करना, और समता–आधारित उपचार विकल्प उपलब्ध कराना आवश्यक है। मोटापे को जेनेटिक्स, पर्यावरण और जीवनशैली से जुड़ी जटिल बीमारी मानकर ही प्रभावी नीतियाँ बनाई जा सकती हैं। खासकर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में सस्ते और सुलभ उपचार सुनिश्चित करना सफलता की कुंजी है।
STATIC GK SNAPSHOT
श्रेणी | प्रमुख आँकड़े/जानकारी |
वयस्क मोटापे से ग्रस्त महिलाएं (2024) | 4.4 करोड़ (20 वर्ष से ऊपर की 10%) |
वयस्क मोटापे से ग्रस्त पुरुष (2024) | 2.6 करोड़ (5%) |
भारत में बाल मोटापा | 52 लाख लड़कियां, 73 लाख लड़के |
स्वास्थ्य जोखिम | हाई BMI से हृदय रोग की 40% अधिक संभावना |
2019 में मोटापे की लागत | $28.95 बिलियन |
2060 तक अनुमानित लागत | $838.6 बिलियन |
नई मोटापा दवा (GLP-1) | माउंजारो (एलाय लिली) |
आने वाली दवा | वेगोवी (नोवो नॉर्डिस्क) |
उपचार की चुनौती | उच्च लागत, सीमित पहुंच, सामाजिक कलंक |
सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता | जागरूकता, पहुंच, सस्ती नीति, दीर्घकालिक रणनीति |