NOAA बजट कटौती ने पूर्वानुमान प्रणाली में बड़ा बदलाव लाया
2025 में ट्रंप प्रशासन द्वारा NOAA (नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन) का बजट 25% कम करने का निर्णय मौसम विज्ञान समुदाय में गूंज पैदा कर गया। सबसे पहले प्रभावित होने वाला क्षेत्र था — मौसम गुब्बारों का नियमित प्रक्षेपण, जो दशकों से मौसम पूर्वानुमान की रीढ़ रहा है। इस स्थिति में सिलिकॉन वैली की एक स्टार्टअप कंपनी ने समाधान के रूप में एआई आधारित वैकल्पिक तकनीक पेश की है। अगर यह सफल होती है, तो वायुमंडलीय डेटा संग्रहण में एक नए युग की शुरुआत होगी, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित होगी।
शताब्दियों पुरानी ऊपरी वायुमंडलीय अवलोकन परंपरा
आज भले ही हम उपग्रहों का उपयोग करते हैं, लेकिन ऊपरी वायुमंडलीय डेटा संग्रहण की शुरुआत 1749 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में पतंगों से हुई थी। 1780 के दशक में गर्म हवा वाले गुब्बारों का प्रयोग शुरू हुआ, जिससे वैज्ञानिक खुद ऊंचाई पर जाकर डेटा एकत्र कर सके। लेकिन यह बहुत जोखिमपूर्ण था। फ्रांसीसी मौसम विज्ञानी लियोन तेस्सेरेंक डे बोर ने 19वीं सदी के अंत में मानवरहित मौसम गुब्बारों का इस्तेमाल शुरू किया। उन्होंने ही ट्रॉपोपॉज़ और स्ट्रैटोस्फीयर की खोज की।
रेडियोसॉन्ड का उद्भव और वैश्विक योगदान
1930 के दशक में रेडियोसॉन्ड का आविष्कार हुआ—यह एक छोटा यंत्र होता है जो मौसम गुब्बारे से जुड़ा रहता है और तापमान, आर्द्रता और वायुदाब को मापकर रीयल टाइम में डेटा भेजता है। अमेरिका में 1937 में रेडियोसॉन्ड स्टेशनों का नेटवर्क स्थापित हुआ, जिसे भारत समेत कई देशों ने अपनाया। आज दुनिया भर में करीब 900 केंद्र हर दिन दो बार (0000 और 1200 UTC) गुब्बारे प्रक्षेपित करते हैं ताकि वैश्विक रूप से सिंक्रनाइज़ डेटा मिले।
उपग्रह युग में भी गुब्बारे क्यों जरूरी हैं?
हालांकि आज मौसम उपग्रहों से डेटा मिल रहा है, लेकिन गुब्बारे ज़्यादा सटीक और ऊर्ध्वाधर डेटा प्रदान करते हैं, खासकर निचले वायुमंडल में। रेडियोसॉन्ड डेटा का उपयोग उपग्रहों की कैलिब्रेशन के लिए भी किया जाता है। उदाहरण के लिए, 2015 में रूस की बजट कटौती से जब रेडियोसॉन्ड लॉन्च कम हुआ, तो पूर्वानुमानों की सटीकता घट गई।
भविष्य की राह: एआई की क्षमता या पारंपरिक सटीकता?
AI-आधारित पूर्वानुमान प्रणाली भले ही उन्नत लगे, लेकिन सावधानी जरूरी है। मौसम गुब्बार प्रणाली ने वर्षों से खुद को विश्वसनीय साबित किया है। बजट कटौती के चलते अचानक उसका विकल्प लाना, खासकर तूफान प्रभावित क्षेत्रों में, पूर्वानुमान की विश्वसनीयता को खतरे में डाल सकता है। भारत जैसे देश अब भी गुब्बारा प्रणाली पर निर्भर हैं। सवाल यह है — क्या एआई, रेडियोसॉन्ड जैसी परीक्षित तकनीक की सटीकता को पार कर पाएगा?
स्थिर जीके स्नैपशॉट
विषय | विवरण |
पहली ऊपरी वायुमंडलीय माप | पतंगों से, ग्लासगो (1749) |
मौसम गुब्बारे के अग्रदूत | लियोन तेस्सेरेंक डे बोर, फ्रांस (19वीं सदी) |
रेडियोसॉन्ड का आविष्कार | 1930 का दशक; रीयल-टाइम डेटा ट्रांसमिशन |
वैश्विक गुब्बारा प्रक्षेपण समय | 0000 और 1200 UTC |
सामान्य गुब्बारा ऊंचाई | 115,000 फीट (~35 किमी) |
ट्रोपोपॉज़ की खोज | लियोन तेस्सेरेंक डे बोर द्वारा |
NOAA का फुल फॉर्म | नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (USA) |
भारत में रेडियोसॉन्ड उपयोग | हां; राष्ट्रीय वायुमंडलीय निगरानी प्रणाली का हिस्सा |