एक पवित्र पहाड़ी, दो समुदायों की आस्था
पारसनाथ पहाड़ी, जिसे मरांग बुरू के नाम से भी जाना जाता है, झारखंड में एक सांस्कृतिक संघर्ष का केंद्र बन गई है। यह पहाड़ी जैन समुदाय के लिए पवित्र तीर्थ स्थल है, वहीं संथाल आदिवासियों के लिए यह उनके देवता मरांग बुरू का वास स्थल है। दोनों समुदाय इस पर आध्यात्मिक दावा करते हैं, जिससे यह क्षेत्र सांस्कृतिक विवाद का कारण बन गया है।
जैन तीर्थ और संथाल परंपरा
जैन धर्म के अनुसार, इस पहाड़ी पर उनके 24 में से 20 तीर्थंकरों को निर्वाण प्राप्त हुआ था। यहां 40 से अधिक जैन मंदिर हैं, जो हर साल हजारों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते हैं। दूसरी ओर, संथाल समुदाय इस पहाड़ी को मरांग बुरू का निवास स्थान मानता है और सेंदरा त्योहार जैसे पारंपरिक शिकार अनुष्ठान मनाता है। जहां जैन धर्म शाकाहार को मानता है, वहीं सेंदरा में मांसाहार शामिल होता है, जिससे दोनों समुदायों के बीच संवेदनशील टकराव उत्पन्न होता है।
संघर्ष का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
यह पहाड़ी ब्रिटिश काल से विवादित रही है। 1911 के दस्तावेज संथाल अधिकारों को मान्यता देते हैं, लेकिन स्वतंत्रता के बाद धीरे-धीरे ये अधिकार कमज़ोर होते गए। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत इसे अभयारण्य घोषित करने के कारण आदिवासियों की पहुँच सीमित हो गई, जिससे धार्मिक और सांस्कृतिक हाशियाकरण बढ़ा।
अदालती फैसले और सरकारी प्रतिबंध
विवाद 2023 में तब और बढ़ गया जब पर्यावरण मंत्रालय (MOEFCC) ने पहाड़ी के 25 किमी क्षेत्र में मांस और शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया। झारखंड उच्च न्यायालय ने 2024 में इस आदेश को मान्य कर दिया, जिससे संथाल समुदाय की नाराज़गी और बढ़ गई। उन्हें यह निर्णय धार्मिक सह–अस्तित्व के बजाय उनके अधिकारों का उल्लंघन लगता है।
समुदायों के संबंध और भविष्य की राह
कई वर्षों तक जैन और संथाल समुदायों ने इस पहाड़ी पर साथ–साथ पूजा की थी। लेकिन हाल के कानूनी और प्रशासनिक हस्तक्षेपों ने इस संतुलन को बिगाड़ दिया। अब स्थानीय आदिवासी समूह अपने धार्मिक अधिकारों की पुन:स्थापना के लिए संगठित हो रहे हैं और नीतियों की पुनः समीक्षा की मांग कर रहे हैं। ज़रूरत है एक ऐसे दृष्टिकोण की जो पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक विविधता दोनों का सम्मान करे।
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | विवरण |
वैकल्पिक नाम | पारसनाथ हिल / मरांग बुरू |
स्थान | गिरिडीह जिला, झारखंड |
जैन महत्त्व | 20 तीर्थंकरों को यहां निर्वाण प्राप्त हुआ |
आदिवासी त्योहार | सेंदरा (पारंपरिक शिकार अनुष्ठान) |
कानूनी प्रतिबंध | वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, 25 किमी मांस प्रतिबंध |
शामिल समुदाय | जैन और संथाल आदिवासी |
अदालत की भूमिका | झारखंड हाई कोर्ट का 2024 का फैसला |
सरकारी निर्णय | 2023 में MOEFCC का मांस/शराब बिक्री प्रतिबंध |
ऐतिहासिक विद्रोह जुड़ा हुआ | संथाल हूल विद्रोह, 1855 |