सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या निर्वासन पर रोक लगाने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली से अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों के निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध प्रवास पर बढ़ती चिंताओं के बीच आया है। अदालत ने कहा कि भारत सरकार को मौजूदा कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत विदेशी नागरिकों को निष्कासित करने का पूरा अधिकार है।
निर्वासन की कानूनी आधारशिला
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 सभी व्यक्तियों को जीवन और समानता का अधिकार प्रदान करते हैं, भले ही वे नागरिक हों या नहीं। लेकिन अनुच्छेद 19(1)(e) — जो भारत में बसने और निवास करने का अधिकार देता है — केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होता है। मोहम्मद सलीमुल्लाह बनाम भारत सरकार (2021) मामले का हवाला देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि ऐसे मामलों में Foreigners Act प्रभावी होता है।
भारत की शरणार्थी नीति का ढांचा
भारत ने 1951 की संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधि और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इसके अलावा भारत के पास कोई समर्पित घरेलू शरणार्थी कानून भी नहीं है। ऐसे में हर शरणार्थी मामला प्रशासनिक विवेक और द्विपक्षीय समझौतों के आधार पर तय किया जाता है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाती है।
संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान
पासपोर्ट अधिनियम, 1920 भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को हटाने का अधिकार केंद्र सरकार को देता है। साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 258(1) और 239(1) के अंतर्गत, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश भी निर्वासन आदेशों के कार्यान्वयन में सहायता कर सकते हैं। इससे विकेंद्रीकृत क्रियान्वयन सुनिश्चित होता है।
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | विवरण |
चर्चित मामला | रोहिंग्या निर्वासन, सुप्रीम कोर्ट निर्णय (2025) |
प्रमुख संदर्भित केस | मोहम्मद सलीमुल्लाह बनाम भारत संघ (2021) |
संवैधानिक अनुच्छेद | अनुच्छेद 14, 21 (सभी व्यक्तियों हेतु), अनुच्छेद 19(1)(e) (केवल नागरिकों हेतु) |
लागू कानून | Foreigners Act 1946, Passport Act 1920 |
Refugee Convention स्थिति | भारत 1951 शरणार्थी संधि और 1967 प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरी नहीं है |
कानूनी परिभाषा | भारत में शरणार्थियों को विदेशी या ‘अलियन’ माना जाता है |
कार्यान्वयन अधिकार | अनुच्छेद 258(1), 239(1) के अंतर्गत केंद्र और राज्य सरकारों को |