भारत की अक्षय ऊर्जा यात्रा में एक मील का पत्थर
एक ऐतिहासिक पहल के रूप में, अरुणाचल प्रदेश के दिरांग ने पूर्वोत्तर भारत का पहला सफल भूतापीय उत्पादन कुआं शुरू कर दिया है। यह परियोजना पृथ्वी विज्ञान और हिमालय अध्ययन केंद्र (CESHS) द्वारा संचालित की जा रही है। यह पूर्वी हिमालय क्षेत्र में पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम करने और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
दिरांग: भूतापीय ऊर्जा के लिए उपयुक्त स्थान क्यों?
पश्चिम कामेंग जिले में स्थित दिरांग एक मध्यम से उच्च एंथाल्पी भू–क्षेत्र में आता है, जहाँ भूमिगत जलाशयों का तापमान लगभग 115°C तक पहुँचता है। यह तापमान ग्रीनहाउस हीटिंग, कृषि उत्पादों को सुखाने, और घरेलू हीटिंग जैसे सीधे उपयोग के लिए उपयुक्त है। यह विशेष रूप से हिमालयी सर्दियों में अत्यधिक सहायक साबित होगा।
कृषि नवाचार और ग्रामीण विकास पर प्रभाव
यह भूतापीय ऊर्जा परियोजना स्थानीय कृषि को जलवायु–प्रतिरोधी बनाने में सहायता करेगी। तापमान नियंत्रित ग्रीनहाउस और स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों की उपलब्धता ग्रामीण समुदायों को डीज़ल और लकड़ी जैसे प्रदूषणकारी ईंधनों पर निर्भरता से छुटकारा दिलाएगी। यह पहल भारत के सतत और समावेशी ग्रामीण विकास के लक्ष्य के अनुरूप है।
वैश्विक भागीदारी और राष्ट्रीय महत्त्व
अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान सहयोग से समर्थित यह परियोजना पूर्वोत्तर भारत की पहली भूतापीय स्वच्छ ऊर्जा पहल है। यह राजस्थान की सौर ऊर्जा, तमिलनाडु की पवन ऊर्जा और हिमाचल प्रदेश की जल विद्युत परियोजनाओं की तरह भारत की ऊर्जा विविधता में एक और अध्याय जोड़ती है। अब दिरांग लद्दाख की पुगा घाटी और हिमाचल के मणिकरण जैसे प्रमुख भूतापीय स्थलों की श्रेणी में आ गया है।
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | विवरण |
परियोजना स्थल | दिरांग, पश्चिम कामेंग, अरुणाचल प्रदेश |
क्रियान्वयन एजेंसी | पृथ्वी विज्ञान और हिमालय अध्ययन केंद्र (CESHS) |
भू-क्षेत्र प्रकार | मध्यम से उच्च एंथाल्पी |
जलाशय तापमान | लगभग 115 डिग्री सेल्सियस |
उपयोग क्षेत्र | हीटिंग, कृषि तकनीक, ग्रामीण विद्युतीकरण, ऊर्जा उत्पादन |
विशिष्ट स्थिति | पूर्वोत्तर भारत का पहला भूतापीय उत्पादन कुआं |
अन्य भारतीय स्थल | पुगा घाटी (लद्दाख), मणिकरण (हिमाचल प्रदेश) |
ऊर्जा प्रकार | भूतापीय (अक्षय ऊर्जा) |
राष्ट्रीय महत्त्व | स्वच्छ ऊर्जा और ग्रामीण स्थिरता को बढ़ावा |