भारतीय विज्ञान के लिए एक नया अध्याय
भारत जल्द ही अपना पहला स्वदेशी ध्रुवीय अनुसंधान पोत (PRV) बनाएगा। यह सिर्फ एक और जहाज नहीं है—यह वैज्ञानिक महत्वाकांक्षा और वैश्विक सहयोग का प्रतीक है। 3 जून 2025 को गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (GRSE) और नॉर्वे की कंपनी कोंग्सबर्ग के बीच हुए समझौता ज्ञापन (MoU) के साथ भारत अब स्वयं ध्रुवीय क्षेत्रों की खोज के लिए अपना पोत बनाएगा।
यह ऐतिहासिक समझौता केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल की उपस्थिति में संपन्न हुआ। यह न केवल विज्ञान के क्षेत्र में, बल्कि भारत की समुद्री नवाचार और जहाज निर्माण क्षमताओं के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि है।
यह साझेदारी कैसे बनी?
भारत लंबे समय से आर्कटिक और अंटार्कटिका अनुसंधान में सक्रिय है, लेकिन अभी तक उसे विदेशी जहाजों पर निर्भर रहना पड़ता था। इस MoU के माध्यम से GRSE, जो जटिल युद्धपोत और सर्वेक्षण जहाज बनाने में माहिर है, अब कोंग्सबर्ग के साथ मिलकर PRV डिजाइन और निर्माण करेगा।
नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) इस जहाज का प्रमुख उपयोगकर्ता होगा, और यह सुनिश्चित करेगा कि पोत उच्च वैज्ञानिक मानकों को पूरा करे।
PRV का कार्य क्या होगा?
PRV सिर्फ एक चलती प्रयोगशाला नहीं होगा, बल्कि इसे सबसे कठोर वातावरण में काम करने के लिए तैयार किया जाएगा। यह पोत निम्नलिखित कार्यों में सहयोग करेगा:
- गहरे समुद्र की खोज
- ध्रुवीय बर्फ और जलवायु अध्ययन
- समुद्री जैव विविधता अनुसंधान
- अंटार्कटिका और दक्षिणी महासागर में भारत के ध्रुवीय अभियानों को समर्थन
इसमें अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपकरण होंगे, जो विशेष रूप से ध्रुवीय क्षेत्रों की कठिन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाए जाएंगे।
भारत का महासागर विजन मजबूत हो रहा है
इस घोषणा के साथ MAHASAGAR विजन को और बल मिला है। यह दृष्टिकोण SAGAR पहल पर आधारित है और भारत को एक समुद्री शक्ति बनाने की दिशा में कार्य करता है।
नॉर्वे के Nor-Shipping 2025 इवेंट के दौरान श्री सोनोवाल ने हरित पोत निर्माण, डिजिटल समुद्री प्लेटफॉर्म और वैश्विक निवेश को भी बढ़ावा देने की बात कही।
भारत अब नॉर्वेजियन शिपओनर्स एसोसिएशन फ्लीट में दूसरा सबसे बड़ा नाविक योगदानकर्ता है। साथ ही, भारत के 87% जहाज पुनर्चक्रण यार्ड अब HKC-समर्थ हैं, जिससे भारत की वैश्विक स्थिति और सुदृढ़ हुई है।
इसका महत्त्व क्यों है?
PRV केवल वैज्ञानिकों के लिए नहीं, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत अभियान, वैज्ञानिक अवसंरचना, और वैश्विक सहयोग का प्रतीक है। यह भारत की क्षमता को दिखाता है कि वह जलवायु अनुसंधान, समुद्री पारिस्थितिकी, और सतत विकास में वैश्विक नेतृत्व निभाने को तैयार है।
Static Usthadian Current Affairs Table (Hindi)
विषय | विवरण |
समझौता साझेदार | GRSE (भारत) और कोंग्सबर्ग (नॉर्वे) |
परियोजना | भारत का पहला ध्रुवीय अनुसंधान पोत (PRV) |
उद्देश्य | गहरे समुद्र, जलवायु, समुद्री अनुसंधान और ध्रुवीय अभियानों में समर्थन |
मार्गदर्शक संस्था | राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागरीय अनुसंधान केंद्र (NCPOR) |
मिशन का भाग | मेक इन इंडिया, MAHASAGAR विजन |
केंद्रीय मंत्री उपस्थित | सर्बानंद सोनोवाल (MoPSW) |
आर्कटिक-अंटार्कटिका महत्व | ध्रुवीय विज्ञान में भारत की भूमिका को बढ़ावा |
अंतरराष्ट्रीय सहयोग | भारत-नॉर्वे समुद्री संबंध मजबूत |
कार्यक्रम | Nor-Shipping 2025, मंत्री बैठक और NSA राउंडटेबल |
Static GK तथ्य | भारत के 87% जहाज पुनर्चक्रण यार्ड HKC-समर्थ हैं |