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लोक संस्कृति की आत्मा को संजोते हुए
उत्तराखंड के चमोली जिले के जुड़वां गांव सालूर–डूंग्रा में हर वर्ष आयोजित होने वाला रम्मान महोत्सव लोक कला, सामुदायिक अनुष्ठानों और आध्यात्मिक कथावाचन का अद्भुत संगम है। वर्ष 2009 में इस महोत्सव को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में शामिल किया गया, जिससे यह वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त भारत के चुनिंदा पारंपरिक उत्सवों में शामिल हो गया। रम्मान केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि गढ़वाल क्षेत्र की सांस्कृतिक संपन्नता का जीवंत प्रतीक है।
रामायण पर आधारित अनुष्ठानात्मक प्रस्तुतियाँ
11 से 13 दिनों तक चलने वाला यह महोत्सव रामायण की कथाओं पर आधारित अनुष्ठानों, प्रार्थनाओं और नाटकीय प्रस्तुतियों से भरा होता है। हर जाति समूह की अपनी विशेष भूमिका होती है—ब्राह्मण पवित्र अनुष्ठान कराते हैं, जबकि भंडारी (क्षत्रिय वर्ग) पवित्र मुखौटों के साथ राम, हनुमान आदि के पात्रों की भूमिका निभाते हैं। उत्सव में सीता स्वयंवर और हनुमान-राम की पहली मुलाकात जैसे दृश्यों का नाट्यरूपांतरण किया जाता है, जो धार्मिकता और ग्रामीण जीवन का अनोखा संगम प्रस्तुत करता है।
संगीत की धड़कन: ढोल-दमाऊ और कथावाचन
रम्मान की जीवंतता का केंद्र संगीत है। ढोल और दमाऊ जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्र विभिन्न नृत्य शैलियों को गति देते हैं—जैसे मोर–मोरनी और ख्यालारी, जो प्रदर्शन की कथा संरचना को समृद्ध करते हैं। संगीत के माध्यम से समुदाय अपनी विरासत से भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से जुड़ता है। मुखौटा नृत्य और ढोल की थाप दर्शकों को रामायण की दुनिया में ले जाती है, जिससे प्रत्येक प्रदर्शन पवित्र और उत्सवमय बन जाता है।
सांस्कृतिक निरंतरता और सामुदायिक भागीदारी
रम्मान एक सामुदायिक आयोजन है, जिसमें पीढ़ियों के बीच सांस्कृतिक हस्तांतरण पर जोर दिया जाता है। युवा पीढ़ियों को इसमें शामिल करने के निरंतर प्रयास किए जाते हैं, ताकि यह प्राचीन परंपरा समय के साथ विलुप्त न हो। यह उत्सव धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से गांव के भीतर प्रासंगिक रहते हुए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान भी प्राप्त कर रहा है, जिससे यह आर्थिक रूप से टिकाऊ बने और क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित रख सके।
परीक्षा हेतु Static GK स्नैपशॉट
विषय | विवरण |
महोत्सव का नाम | रम्मान महोत्सव |
स्थान | सालूर-डूंग्रा, चमोली जिला, उत्तराखंड |
अवधि | 11–13 दिन |
यूनेस्को स्थिति | अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (2009 में शामिल) |
विषयवस्तु | रामायण की कथाएँ, लोक नृत्य, जाति आधारित भूमिकाएँ |
प्रमुख तत्व | मुखौटा नृत्य, ढोल-दमाऊ संगीत, ब्राह्मण अनुष्ठान |
मुख्य कलाकार | भंडारी (मुखौटा पहनने वाले), ब्राह्मण (पुरोहित) |
सांस्कृतिक महत्व | पीढ़ी-दर-पीढ़ी परंपरा, पर्यटन, सामुदायिक पहचान |
नृत्य शैलियाँ | मोर-मोरनी, ख्यालारी |
वाद्य यंत्र | ढोल, दमाऊ |