केंद्र और राज्यों के वित्तीय संतुलन में बदलाव
केंद्र सरकार ने 2026–27 से राज्यों को मिलने वाली केंद्रीय करों की हिस्सेदारी को 41% से घटाकर 40% करने का प्रस्ताव रखा है। यह परिवर्तन देखने में मामूली लगता है, लेकिन केवल 1% की कटौती से भी राज्यों को हर साल लगभग ₹3.5 लाख करोड़ का नुकसान हो सकता है। इससे राज्यों की कल्याणकारी योजनाओं और विकास कार्यों के वित्तपोषण की क्षमता पर असर पड़ेगा। इस प्रस्ताव की समीक्षा अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता वाली वित्त आयोग द्वारा की जाएगी, जो 31 अक्टूबर 2025 तक अपनी रिपोर्ट सौंपेगा।
केंद्र ऐसा क्यों करना चाहता है?
केंद्र ने बढ़ते खर्च और 2024–25 में 4.8% के संभावित राजकोषीय घाटे को इस कटौती के पीछे मुख्य कारण बताया है। इसके विपरीत, राज्यों का घाटा अनुमानतः 3.2% रहेगा। वर्ष 1980 में राज्यों को केंद्रीय करों में 20% हिस्सा मिलता था, जो आज 41% हो गया है। लेकिन कोविड महामारी के बाद की आर्थिक चुनौतियां और वैश्विक अनिश्चितताएं केंद्र को अपने खर्चों की प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर रही हैं। इसके अलावा, उपकर और अधिभार, जो केंद्र के कर राजस्व का 15% से अधिक हैं, राज्यों के साथ साझा नहीं किए जाते, जिससे वित्तीय असमानता और बढ़ जाती है।
राज्यों के लिए संभावित प्रभाव
भारत में सार्वजनिक व्यय का लगभग 60% राज्यों द्वारा किया जाता है, विशेष रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक कल्याण के क्षेत्रों में। ऐसे में यदि केंद्र का हस्तांतरण घटता है, तो कई राज्य—जैसे तमिलनाडु, केरल, और पश्चिम बंगाल—आर्थिक संकट में आ सकते हैं। GST के लागू होने से राज्यों की कर लगाने की स्वतंत्रता पहले ही सीमित हो चुकी है, जिससे राजस्व बढ़ाने की क्षमता घट गई है।
मुफ्त योजनाओं पर नियंत्रण की कोशिश
इस प्रस्ताव के तहत केंद्र राजस्व घाटा अनुदान को राजकोषीय अनुशासन से जोड़ना चाहता है, जिससे राज्यों को ऋण माफी या नकद प्रोत्साहन जैसी लोकलुभावन योजनाओं से रोका जा सके। इसका उद्देश्य राज्यों को बजटीय अनुशासन के लिए प्रेरित करना है, लेकिन आलोचक इसे संघीय स्वायत्तता के विरुद्ध मानते हैं। प्रस्तावित व्यवस्था के तहत जो राज्य “फ्रीबीज़” देंगे, उन्हें केंद्रीय अनुदान से वंचित किया जा सकता है।
संघीय टकराव की आशंका
हालाँकि वित्त आयोग की सिफारिशें सलाहात्मक होती हैं, लेकिन वे केंद्रीय बजट और अंतर–सरकारी वित्तीय संबंधों को गहराई से प्रभावित करती हैं। कई विपक्षी शासित राज्य पहले से ही संसाधन आवंटन को लेकर केंद्र से नाराज़ हैं, और यह प्रस्ताव इस विवाद को और बढ़ा सकता है। अंतिम निर्णय आयोग की रिपोर्ट, कैबिनेट की मंजूरी, और संसद की स्वीकृति पर निर्भर करेगा।
STATIC GK SNAPSHOT – प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु संक्षिप्त जानकारी
विषय | विवरण |
प्रस्तावित परिवर्तन | राज्यों की हिस्सेदारी 41% से घटाकर 40% करना |
लागू होने का वर्ष | 2026–27 वित्तीय वर्ष |
वित्त आयोग अध्यक्ष | अरविंद पनगढ़िया |
केंद्र का राजकोषीय घाटा (2024–25) | 4.8% GDP |
राज्यों का राजकोषीय घाटा (2024–25) | 3.2% GDP |
अनुमानित राजस्व लाभ केंद्र को | ₹3.5 लाख करोड़ प्रति वर्ष (1% कटौती से) |
राज्यों का प्रमुख व्यय क्षेत्र | स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक कल्याण |
GST का असर | कर स्वतंत्रता में कमी |
राजस्व घाटा अनुदान में गिरावट | ₹1.18 ट्रिलियन (2021–22) से ₹137 बिलियन (2025–26) तक |
विवादास्पद शर्त | मुफ्त योजनाएं देने वाले राज्यों को अनुदान से वंचित किया जा सकता है |