भवानी नदी में खोज
तमिलनाडु के इरोड ज़िले की भवानी नदी में कोडिवेरी अणीकट के पास 14वीं शताब्दी की दुर्लभ पत्थर की प्रतिमा मिली। यह प्रतिमा रेत और गाद में दबे होने के कारण अब तक छिपी हुई थी और अब पुरातत्वविदों तथा धरोहर शोधकर्ताओं के लिए अध्ययन का केंद्र बन गई है।
प्रतिमा की विशेषताएँ
मूर्ति में देवी को तेज़ नेत्रों और असामान्य रूप से बड़े कानों के साथ दर्शाया गया है। यह शैली चोल युगीन मूर्तिकला परंपरा को दर्शाती है, जहाँ देवियों की शक्ति और रक्षणकारी स्वरूप पर विशेष बल दिया जाता था।
स्थैतिक जीके तथ्य: कोडिवेरी अणीकट का निर्माण मूलतः चोलों ने 12वीं शताब्दी में किया था और बाद में मैसूर वोडेयारों ने 17वीं शताब्दी में इसे मज़बूत किया।
चोल उपासना से संबंध
ऐतिहासिक स्रोत बताते हैं कि चोल राजाओं ने युद्ध पर जाने से पहले निसुंबा सूधनी की पूजा की। उन्हें विजय की देवी माना जाता था, जो पराक्रम और दैवीय सुरक्षा का प्रतीक थीं। यह खोज इस तथ्य को और मज़बूत करती है कि चोल साम्राज्य की सैन्य गतिविधियाँ धार्मिक परंपराओं से गहराई से जुड़ी थीं।
स्थैतिक जीके टिप: चोल वंश (9वीं–13वीं शताब्दी) दक्षिण भारत का एक दीर्घकालीन राजवंश था, जो मंदिर स्थापत्य और कांस्य मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध था।
खोज का महत्व
यह प्रतिमा तमिलनाडु की पुरातात्विक धरोहर को और समृद्ध करती है। इससे मध्यकालीन धार्मिक प्रथाओं और सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन पर नई रोशनी पड़ती है। ऐसी खोजें चोल युगीन मंदिर परंपराओं और उनकी सामाजिक–धार्मिक संरचना को समझने में अहम भूमिका निभाती हैं।
संरक्षण की आवश्यकता
इतिहासकारों और पुरातत्वविदों ने माँग की है कि प्रतिमा को तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग के संरक्षण में रखा जाए। इस तरह के धरोहर अवशेषों का संरक्षण तमिलनाडु की मंदिर संस्कृति की वैश्विक पहचान को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
स्थैतिक जीके तथ्य: तमिलनाडु में ग्रेट लिविंग चोल टेम्पल्स (तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर, गंगईकोंडा चोलापुरम मंदिर और दारासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर) को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला हुआ है।
निसुंबा सूधनी का प्रतीकात्मक महत्व
निसुंबा सूधनी शक्ति उपासना से जुड़ी हैं। उन्हें राक्षसों का वध कर बुराई पर विजय प्राप्त करने वाली देवी माना जाता है। उनका उग्र स्वरूप राज्यों की रक्षा और युद्ध में विजय दिलाने वाला समझा जाता था।
स्थैतिक जीके तथ्य: भारतीय मूर्तिशास्त्र में दुर्गा, चामुंडी और निसुंबा सूधनी जैसी देवियाँ शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं और इन्हें प्रायः उग्र रूपों में प्रदर्शित किया जाता है।
Static Usthadian Current Affairs Table
| विषय | विवरण |
| खोज का स्थान | भवानी नदी, कोडिवेरी अणीकट के पास, इरोड |
| प्रतिमा काल | 14वीं शताब्दी |
| देवी का नाम | निसुंबा सूधनी |
| विशेषताएँ | तेज़ आँखें, असामान्य रूप से बड़े कान |
| संबंधित वंश | चोल वंश |
| उपासना उद्देश्य | युद्ध से पूर्व विजय की देवी के रूप में |
| ऐतिहासिक स्थल | कोडिवेरी अणीकट (12वीं शताब्दी चोल, 17वीं शताब्दी वोडेयार) |
| संरक्षण की माँग | तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग |
| चोल से जुड़े यूनेस्को स्थल | बृहदेश्वर, गंगईकोंडा चोलापुरम, ऐरावतेश्वर मंदिर |
| धार्मिक महत्व | शक्ति उपासना, युद्ध और सुरक्षा का प्रतीक |





