जुलाई 21, 2025 1:54 पूर्वाह्न

हरियाणा की नीलगाय शिकार नीति: नैतिक और पर्यावरणीय चिंताएं

करेंट अफेयर्स: नीलगाय वध हरियाणा 2025, ब्लू बुल फसल संघर्ष, वन्यजीव नियम संशोधन भारत, बिश्नोई वन्यजीव विरोध, मानव-वन्यजीव तनाव भारत, अनुसूची III डब्ल्यूपीए, आईयूसीएन नीलगाय संरक्षण, भारतीय मृग विरासत, नैतिक संरक्षण भारत

Haryana’s Nilgai Culling Policy Triggers Ethical and Environmental Concerns

राज्य सरकार की नीति पर उठा विवाद

हरियाणा सरकार ने हाल ही में नर नीलगायों के शिकार (क़त्ल) को मंज़ूरी दी है, जिसे किसानों द्वारा फसलों को नुकसान पहुँचाने की बढ़ती घटनाओं और मानव-वन्यजीव संघर्ष के चलते आवश्यक बताया गया है। यह निर्णय राज्य के वन्यजीव (संरक्षण) नियमों में संशोधन के माध्यम से लिया गया है। हालांकि सरकार का उद्देश्य किसानों की आजीविका की रक्षा करना है, इस फैसले ने पर्यावरणविदों और धार्मिक समुदायों में गहरा रोष पैदा कर दिया है।

नीलगाय और उसकी सांस्कृतिक महत्ता

नीलगाय (Boselaphus tragocamelus) एशिया की सबसे बड़ी मृग प्रजाति है और भारतीय उपमहाद्वीप की मूल निवासी है। यह भले ही संकटग्रस्त नहीं है, लेकिन इसे विशेष रूप से राजस्थान और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में हिंदू परंपरा में पवित्र माना जाता है। नर नीलगाय का रंग नीला-भूरा और उसमें नुकीले सींग होते हैं, जबकि मादा का रंग हल्का भूरा होता है। ये प्राणी अक्सर खेतों के पास छोटे झुंडों में दिन के समय देखे जाते हैं।

ग्रामीण इलाकों में बढ़ता संघर्ष

पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में नीलगायों की आबादी में वृद्धि देखी गई है, जिसके कारण गेहूं और गन्ने जैसी फसलों को भारी नुकसान हो रहा है। किसान लंबे समय से नीलगायों के कारण हो रहे नुकसान की शिकायत कर रहे थे। बिहार जैसे राज्यों में भी नीलगायों को कुछ जिलों में ‘हानिकारक जीव’ घोषित कर इस तरह की कार्रवाई की गई है। फिर भी, कई विशेषज्ञों का मानना है कि शिकार केवल अस्थायी समाधान है, और इससे समस्या की जड़ नहीं सुलझती।

कानूनी और पारिस्थितिक परिप्रेक्ष्य

भारतीय कानून के अनुसार नीलगाय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची III में शामिल है, जो कुछ हद तक हस्तक्षेप की अनुमति देता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह IUCN की “Least Concern” श्रेणी में आती है। लेकिन इस जीव की धार्मिक मान्यता और पारिस्थितिक भूमिका को देखते हुए यह बहस और भी जटिल हो जाती है। इसलिए कानूनी छूट और नैतिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है।

विश्नोई समुदाय का तीव्र विरोध

सबसे तीव्र विरोध विश्नोई समुदाय की ओर से आया है, जिनके धर्म में प्रकृति और जीवों की रक्षा को पवित्र कर्तव्य माना गया है। गुरु जंभेश्वर द्वारा स्थापित यह समुदाय सदियों से पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी रहा है। उनके लिए नीलगाय का शिकार न केवल एक पारिस्थितिक भूल है, बल्कि यह उनकी आस्था और विरासत का अपमान भी है। उनका विरोध देशभर में वैकल्पिक और मानवीय संरक्षण उपायों की माँग को बल देता है।

वन्यजीव प्रबंधन के नए दृष्टिकोण

पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने गैरघातक उपायों की सलाह दी है जैसे कि नीलगायों को संरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित करना, वन्यजीव गलियारों का निर्माण, और खेतों के आसपास प्राकृतिक अवरोध लगाना। कुछ विशेषज्ञ प्राकृतिक आवासों के पुनर्स्थापन पर ज़ोर दे रहे हैं ताकि जानवर मानव बस्तियों में न आएं। ये सभी उपाय संरक्षण और कृषि सुरक्षा दोनों को संतुलित करने की दिशा में हैं।

विश्नोई विरासत: भारत की सबसे पुरानी पर्यावरण परंपरा

विश्नोई समुदाय को भारत के प्रथम पर्यावरणविदों में गिना जाता है। 1730 में खेजड़ली हत्याकांड जैसी ऐतिहासिक घटनाएं इस समुदाय के प्रकृति के लिए बलिदान का प्रतीक हैं। नीलगाय को लेकर उनका विरोध उनके लंबे इतिहास और विचारधारा का ही विस्तार है। वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि संवेदनशील और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से युक्त उपाय अपनाए जाएं।

STATIC GK SNAPSHOT: नीलगाय शिकार नीति

विषय विवरण
प्राणी का नाम नीलगाय (ब्लू बुल)
वैज्ञानिक नाम Boselaphus tragocamelus
IUCN स्थिति Least Concern
कानूनी सुरक्षा अनुसूची III, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
पाई जाने वाली जगह भारत, नेपाल, पाकिस्तान
राज्य कार्यवाही (2025) हरियाणा सरकार ने नर नीलगायों के शिकार की अनुमति दी
विरोधी समुदाय विश्नोई समुदाय
संघर्ष का कारण फसलों को नुकसान, मानव-वन्यजीव संघर्ष
वैकल्पिक समाधान पुनर्वास, आवास प्रबंधन, गैर-घातक अवरोध
सांस्कृतिक महत्व हिंदू और विश्नोई परंपरा में पवित्र
Haryana’s Nilgai Culling Policy Triggers Ethical and Environmental Concerns
  1. 2025 में हरियाणा सरकार ने फसलों को हो रहे नुकसान के कारण नीलगाय (नर) के वध की अनुमति दी।
  2. यह निर्णय राज्य वन्यजीव (संरक्षण) नियमों में संशोधन के तहत लिया गया।
  3. नीलगाय, जिसे ब्लू बुल भी कहा जाता है, भारत की सबसे बड़ी मृग प्रजाति है।
  4. यह प्रजाति वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची III के अंतर्गत संरक्षित है।
  5. IUCN रेड लिस्ट में नीलगाय को कम चिंता (Least Concern)” की श्रेणी में रखा गया है।
  6. बिश्नोई समुदाय, जो वन्यजीव संरक्षण के लिए जाना जाता है, ने इस निर्णय का तीव्र विरोध किया।
  7. गुरु जंभेश्वर के अनुयायी बिश्नोई, नीलगाय को पवित्र मानते हैं
  8. हरियाणा के गाँवों में गेहूँ और गन्ने की फसलों में नीलगायों की मौजूदगी आम है।
  9. ये जानवर अक्सर भारी फसल नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे किसानों का विरोध शुरू हुआ।
  10. बिहार में भी पूर्व में नीलगाय को हानिकारक (vermin) घोषित कर वध की अनुमति दी गई थी।
  11. हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि धार्मिक परंपराएँ कानून से ऊपर नहीं हो सकतीं।
  12. विशेषज्ञों ने स्थानांतरण, गलियारे, और प्राकृतिक रोकथाम उपायों को वैकल्पिक समाधान बताया।
  13. आवास विखंडन मानव-वन्यजीव संघर्ष का एक प्रमुख कारण है।
  14. 1730 के खेजड़ली हत्याकांड में बिश्नोई समुदाय ने वृक्ष संरक्षण के लिए जान दी थी।
  15. नीलगाय का हिंदू संस्कृति और लोक परंपराओं में विशेष धार्मिक महत्व है।
  16. संरक्षण विशेषज्ञों ने नीति को कम समय का हल और दीर्घकालिक पारिस्थितिक नुकसान वाला बताया।
  17. वन्यजीव गलियारों और प्राकृतिक आवासों की बहाली को टिकाऊ समाधान माना गया है।
  18. नीलगायें दिनचर और सतर्क झुंडों में चलने वाली प्रजाति हैं।
  19. यह नीति नैतिक संरक्षण बनाम जीविका संरक्षण की बहस को जन्म देती है।
  20. यह विवाद भारत की जैव विविधता संरक्षण और कृषि सुरक्षा के बीच संतुलन की चुनौती को उजागर करता है।

Q1. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की किस अनुसूची में नीलगाय सूचीबद्ध है?


Q2. हरियाणा में नीलगायों के वध का किस समुदाय ने तीव्र विरोध किया है?


Q3. नीलगाय की IUCN संरक्षण स्थिति क्या है?


Q4. नीलगाय (ब्लू बुल) का वैज्ञानिक नाम क्या है?


Q5. किस राज्य ने भी नीलगाय को कुछ जिलों में हानिकारक जानवर (Vermin) घोषित किया है?


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