राज्य सरकार की नीति पर उठा विवाद
हरियाणा सरकार ने हाल ही में नर नीलगायों के शिकार (क़त्ल) को मंज़ूरी दी है, जिसे किसानों द्वारा फसलों को नुकसान पहुँचाने की बढ़ती घटनाओं और मानव-वन्यजीव संघर्ष के चलते आवश्यक बताया गया है। यह निर्णय राज्य के वन्यजीव (संरक्षण) नियमों में संशोधन के माध्यम से लिया गया है। हालांकि सरकार का उद्देश्य किसानों की आजीविका की रक्षा करना है, इस फैसले ने पर्यावरणविदों और धार्मिक समुदायों में गहरा रोष पैदा कर दिया है।
नीलगाय और उसकी सांस्कृतिक महत्ता
नीलगाय (Boselaphus tragocamelus) एशिया की सबसे बड़ी मृग प्रजाति है और भारतीय उपमहाद्वीप की मूल निवासी है। यह भले ही संकटग्रस्त नहीं है, लेकिन इसे विशेष रूप से राजस्थान और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में हिंदू परंपरा में पवित्र माना जाता है। नर नीलगाय का रंग नीला-भूरा और उसमें नुकीले सींग होते हैं, जबकि मादा का रंग हल्का भूरा होता है। ये प्राणी अक्सर खेतों के पास छोटे झुंडों में दिन के समय देखे जाते हैं।
ग्रामीण इलाकों में बढ़ता संघर्ष
पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में नीलगायों की आबादी में वृद्धि देखी गई है, जिसके कारण गेहूं और गन्ने जैसी फसलों को भारी नुकसान हो रहा है। किसान लंबे समय से नीलगायों के कारण हो रहे नुकसान की शिकायत कर रहे थे। बिहार जैसे राज्यों में भी नीलगायों को कुछ जिलों में ‘हानिकारक जीव’ घोषित कर इस तरह की कार्रवाई की गई है। फिर भी, कई विशेषज्ञों का मानना है कि शिकार केवल अस्थायी समाधान है, और इससे समस्या की जड़ नहीं सुलझती।
कानूनी और पारिस्थितिक परिप्रेक्ष्य
भारतीय कानून के अनुसार नीलगाय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची III में शामिल है, जो कुछ हद तक हस्तक्षेप की अनुमति देता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह IUCN की “Least Concern” श्रेणी में आती है। लेकिन इस जीव की धार्मिक मान्यता और पारिस्थितिक भूमिका को देखते हुए यह बहस और भी जटिल हो जाती है। इसलिए कानूनी छूट और नैतिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है।
विश्नोई समुदाय का तीव्र विरोध
सबसे तीव्र विरोध विश्नोई समुदाय की ओर से आया है, जिनके धर्म में प्रकृति और जीवों की रक्षा को पवित्र कर्तव्य माना गया है। गुरु जंभेश्वर द्वारा स्थापित यह समुदाय सदियों से पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी रहा है। उनके लिए नीलगाय का शिकार न केवल एक पारिस्थितिक भूल है, बल्कि यह उनकी आस्था और विरासत का अपमान भी है। उनका विरोध देशभर में वैकल्पिक और मानवीय संरक्षण उपायों की माँग को बल देता है।
वन्यजीव प्रबंधन के नए दृष्टिकोण
पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने गैर–घातक उपायों की सलाह दी है जैसे कि नीलगायों को संरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित करना, वन्यजीव गलियारों का निर्माण, और खेतों के आसपास प्राकृतिक अवरोध लगाना। कुछ विशेषज्ञ प्राकृतिक आवासों के पुनर्स्थापन पर ज़ोर दे रहे हैं ताकि जानवर मानव बस्तियों में न आएं। ये सभी उपाय संरक्षण और कृषि सुरक्षा दोनों को संतुलित करने की दिशा में हैं।
विश्नोई विरासत: भारत की सबसे पुरानी पर्यावरण परंपरा
विश्नोई समुदाय को भारत के प्रथम पर्यावरणविदों में गिना जाता है। 1730 में खेजड़ली हत्याकांड जैसी ऐतिहासिक घटनाएं इस समुदाय के प्रकृति के लिए बलिदान का प्रतीक हैं। नीलगाय को लेकर उनका विरोध उनके लंबे इतिहास और विचारधारा का ही विस्तार है। वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि संवेदनशील और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से युक्त उपाय अपनाए जाएं।
STATIC GK SNAPSHOT: नीलगाय शिकार नीति
विषय | विवरण |
प्राणी का नाम | नीलगाय (ब्लू बुल) |
वैज्ञानिक नाम | Boselaphus tragocamelus |
IUCN स्थिति | Least Concern |
कानूनी सुरक्षा | अनुसूची III, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 |
पाई जाने वाली जगह | भारत, नेपाल, पाकिस्तान |
राज्य कार्यवाही (2025) | हरियाणा सरकार ने नर नीलगायों के शिकार की अनुमति दी |
विरोधी समुदाय | विश्नोई समुदाय |
संघर्ष का कारण | फसलों को नुकसान, मानव-वन्यजीव संघर्ष |
वैकल्पिक समाधान | पुनर्वास, आवास प्रबंधन, गैर-घातक अवरोध |
सांस्कृतिक महत्व | हिंदू और विश्नोई परंपरा में पवित्र |