ऐतिहासिक निर्णय ने दिव्यांगजनों की समानता को किया सुदृढ़
4 मार्च 2025 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसमें कहा गया कि दिव्यांगता के आधार पर भेदभाव से मुक्ति संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के अंतर्गत आता है। यह निर्णय दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act) पर आधारित है और विशेष रूप से न्यायिक सेवाओं एवं सार्वजनिक नियुक्तियों में दिव्यांगजनों के समावेश को मजबूती देगा।
न्यायिक सेवाओं में समावेश को मिली संवैधानिक मान्यता
न्यायालय ने दृष्टिहीन अभ्यर्थियों की याचिका पर सहमति जताई, जो मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसी राज्यों की न्यायिक सेवा भर्ती में सम्मिलित होना चाहते थे। कोर्ट ने संबंधित राज्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया कि वे तीन महीने के भीतर चयन प्रक्रिया पूरी करें, ताकि किसी भी दिव्यांग उम्मीदवार को अनुचित नियमों या पक्षपात के आधार पर वंचित न किया जाए।
भेदभावकारी नियमों को किया असंवैधानिक घोषित
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा नियम, 1994 की नियम 6A को असंवैधानिक घोषित किया क्योंकि यह दृष्टिहीन उम्मीदवारों को पूर्ण रूप से अयोग्य ठहराता था। नियम 7, जिसमें 70% अंक पहले प्रयास में या तीन वर्ष की वकालत जैसी शर्तें थीं, को भी संविधान के समानता के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया गया।
सरकार की जिम्मेदारी: उचित सुविधा उपलब्ध कराना
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दिव्यांगजनों को उचित सुविधा (Reasonable Accommodation) देना राज्य की कानूनी और संवैधानिक जिम्मेदारी है। इसके अंतर्गत योग्यता मानकों में ढील, कटऑफ में छूट और सुविधाजनक पहुँच सुनिश्चित करना शामिल है। यह सहायक कदम सक्रिय समर्थन (Affirmative Action) का हिस्सा है, जो अब वैकल्पिक नहीं बल्कि संवैधानिक कर्तव्य है।
बराबर की छूट और पृथक मेरिट सूची का निर्देश
दिव्यांग अभ्यर्थियों को SC/ST वर्ग के समान छूट देने का आदेश देते हुए न्यायालय ने निर्देश दिया कि दृष्टिहीन उम्मीदवारों के लिए पृथक कटऑफ सूची तैयार की जाए। इससे उन्हें सार्वजनिक सेवा में निष्पक्ष अवसर मिलेगा और सामाजिक न्याय का सिद्धांत प्रभावी रूप से लागू होगा।
दृष्टिहीन वकीलों की उपलब्धियाँ बनीं प्रेरणा
अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दृष्टिहीन कानूनी पेशेवरों की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए कहा कि दिव्यांगता किसी की बौद्धिक या कानूनी क्षमता में बाधा नहीं बनती। यह फैसला समाज को एक मजबूत संदेश देता है कि लोकतांत्रिक संस्थानों में समावेश और विविधता को महत्व देना चाहिए।
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | विवरण |
निर्णय की प्रमुख बात | दिव्यांग अधिकार मौलिक अधिकार घोषित |
निर्णय की तारीख | 4 मार्च 2025 |
पीठ में शामिल न्यायाधीश | जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस आर महादेवन |
लागू कानून | दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 |
रद्द किए गए नियम | एमपी न्यायिक सेवा नियम 6A और 7 |
राहत | दृष्टिहीन अभ्यर्थियों को न्यायिक भर्ती में अनुमति |
कोर्ट की समयसीमा | भर्ती प्रक्रिया 3 महीनों में पूरी करनी होगी |
सिद्धांत | उचित सुविधा, सकारात्मक समर्थन |
व्यापक प्रभाव | समानता, पहुँच और कानूनी सशक्तिकरण को बढ़ावा |