जुलाई 19, 2025 5:28 पूर्वाह्न

सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगजन अधिकारों को मूल संवैधानिक संरक्षण घोषित किया

समसामयिक मामले: सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगता अधिकारों को मुख्य संवैधानिक संरक्षण माना, सुप्रीम कोर्ट का दिव्यांगता निर्णय 2025, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016, दृष्टिबाधितों के लिए न्यायिक सेवाएं, समान अवसर मौलिक अधिकार, भारत में उचित समायोजन, मध्य प्रदेश न्यायिक नियम निरस्त, सार्वजनिक परीक्षाओं तक दिव्यांगजनों की पहुंच

Supreme Court Recognizes Disability Rights as Core Constitutional Protection

ऐतिहासिक निर्णय ने दिव्यांगजनों की समानता को किया सुदृढ़

4 मार्च 2025 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसमें कहा गया कि दिव्यांगता के आधार पर भेदभाव से मुक्ति संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के अंतर्गत आता है। यह निर्णय दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act) पर आधारित है और विशेष रूप से न्यायिक सेवाओं एवं सार्वजनिक नियुक्तियों में दिव्यांगजनों के समावेश को मजबूती देगा।

न्यायिक सेवाओं में समावेश को मिली संवैधानिक मान्यता

न्यायालय ने दृष्टिहीन अभ्यर्थियों की याचिका पर सहमति जताई, जो मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसी राज्यों की न्यायिक सेवा भर्ती में सम्मिलित होना चाहते थे। कोर्ट ने संबंधित राज्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया कि वे तीन महीने के भीतर चयन प्रक्रिया पूरी करें, ताकि किसी भी दिव्यांग उम्मीदवार को अनुचित नियमों या पक्षपात के आधार पर वंचित न किया जाए।

भेदभावकारी नियमों को किया असंवैधानिक घोषित

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने मध्यप्रदेश न्यायिक सेवा नियम, 1994 की नियम 6A को असंवैधानिक घोषित किया क्योंकि यह दृष्टिहीन उम्मीदवारों को पूर्ण रूप से अयोग्य ठहराता था। नियम 7, जिसमें 70% अंक पहले प्रयास में या तीन वर्ष की वकालत जैसी शर्तें थीं, को भी संविधान के समानता के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया गया।

सरकार की जिम्मेदारी: उचित सुविधा उपलब्ध कराना

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दिव्यांगजनों को उचित सुविधा (Reasonable Accommodation) देना राज्य की कानूनी और संवैधानिक जिम्मेदारी है। इसके अंतर्गत योग्यता मानकों में ढील, कटऑफ में छूट और सुविधाजनक पहुँच सुनिश्चित करना शामिल है। यह सहायक कदम सक्रिय समर्थन (Affirmative Action) का हिस्सा है, जो अब वैकल्पिक नहीं बल्कि संवैधानिक कर्तव्य है।

बराबर की छूट और पृथक मेरिट सूची का निर्देश

दिव्यांग अभ्यर्थियों को SC/ST वर्ग के समान छूट देने का आदेश देते हुए न्यायालय ने निर्देश दिया कि दृष्टिहीन उम्मीदवारों के लिए पृथक कटऑफ सूची तैयार की जाए। इससे उन्हें सार्वजनिक सेवा में निष्पक्ष अवसर मिलेगा और सामाजिक न्याय का सिद्धांत प्रभावी रूप से लागू होगा।

दृष्टिहीन वकीलों की उपलब्धियाँ बनीं प्रेरणा

अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दृष्टिहीन कानूनी पेशेवरों की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए कहा कि दिव्यांगता किसी की बौद्धिक या कानूनी क्षमता में बाधा नहीं बनती। यह फैसला समाज को एक मजबूत संदेश देता है कि लोकतांत्रिक संस्थानों में समावेश और विविधता को महत्व देना चाहिए।

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विषय विवरण
निर्णय की प्रमुख बात दिव्यांग अधिकार मौलिक अधिकार घोषित
निर्णय की तारीख 4 मार्च 2025
पीठ में शामिल न्यायाधीश जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस आर महादेवन
लागू कानून दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
रद्द किए गए नियम एमपी न्यायिक सेवा नियम 6A और 7
राहत दृष्टिहीन अभ्यर्थियों को न्यायिक भर्ती में अनुमति
कोर्ट की समयसीमा भर्ती प्रक्रिया 3 महीनों में पूरी करनी होगी
सिद्धांत उचित सुविधा, सकारात्मक समर्थन
व्यापक प्रभाव समानता, पहुँच और कानूनी सशक्तिकरण को बढ़ावा

 

Supreme Court Recognizes Disability Rights as Core Constitutional Protection
  1. 4 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग अधिकारों को मौलिक अधिकार घोषित किया।
  2. यह फैसला दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (RPwD) 2016 पर आधारित है।
  3. न्यायालय ने दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के न्यायिक भर्ती में अधिकारों को मान्यता दी।
  4. मामला मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम 1994 की विभेदकारी धाराओं से जुड़ा था।
  5. नियम 6A, जो दृष्टिबाधितों को वंचित करता था, असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर दिया गया।
  6. नियम 7, जिसमें मनमाने अंक और अभ्यास की सीमाएं थीं, उसे भी अमान्य किया गया।
  7. न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
  8. फैसला सार्वजनिक सेवाओं में सभी दिव्यांगों के लिए उचित सुविधा अनिवार्य करता है।
  9. राज्य सरकारों को पात्रता मानदंड, अंक सीमा और पहुंच मानकों में समायोजन करना होगा।
  10. सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) को विशेषाधिकार नहीं, संवैधानिक कर्तव्य बताया गया।
  11. तीन महीनों के भीतर भर्ती प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया गया।
  12. SC/ST की तरह दिव्यांगों को भी समान छूट देने का आदेश दिया गया।
  13. दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के लिए अलग मेरिट सूची बनाए रखना अनिवार्य किया गया।
  14. कोर्ट ने सफल दृष्टिबाधित विधि पेशेवरों के उदाहरण प्रस्तुत किए।
  15. फैसला समानता, गरिमा और समावेशन को सार्वजनिक संस्थानों में मजबूत करता है।
  16. यह निर्णय संरचनात्मक भेदभाव को चुनौती देता है और न्याय तक पहुंच को बढ़ावा देता है।
  17. RPwD अधिनियम शिक्षा, रोजगार और सामाजिक भागीदारी में अधिकार सुनिश्चित करता है।
  18. यह मामला दिव्यांगों के नागरिक सेवाओं में प्रतिनिधित्व के लिए मजबूत उदाहरण बनाता है।
  19. यह निर्णय समावेशी शासन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है।
  20. यह फैसला दिव्यांगजनों के संवैधानिक सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम है।

 

Q1. सुप्रीम कोर्ट ने विकलांगता अधिकारों पर ऐतिहासिक निर्णय किस तारीख को सुनाया था?


Q2. सुप्रीम कोर्ट ने कौन से भेदभावपूर्ण प्रावधानों को निरस्त कर दिया?


Q3. सुप्रीम कोर्ट के 2025 के विकलांगता निर्णय का कानूनी आधार कौन सा अधिनियम था?


Q4. कोर्ट ने विकलांग व्यक्तियों (PwDs) के लिए किस संवैधानिक सिद्धांत को बनाए रखा?


Q5. न्यायिक भर्ती में दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को क्या राहत प्रदान की गई?


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