भारत के जंगलों की सुरक्षा के लिए कानूनी पहल
भारत की वन प्रशासन प्रणाली को मजबूत करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों को निर्देश दिया है कि वे विशेषज्ञ समितियों का गठन कर वन क्षेत्रों की पहचान करें। मार्च 2025 में जारी इस आदेश की नींव 1996 के गोडावर्मन निर्णय में है, जिसने ‘जंगल’ की परिभाषा को केवल अधिसूचित भूमि तक सीमित नहीं रखा। अब, अविकसित या अप्रतिबंधित जंगल जैसी भूमि भी कानूनी सुरक्षा के दायरे में आएगी, जिससे हरित आवरण को बचाने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाया गया है।
भारत में वन कानूनों का विकास
भारत में वन संरक्षण अधिनियम 1980 से कानूनी रूप से जंगलों की रक्षा की जा रही है, लेकिन असली परिवर्तन 1996 में हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शब्दकोश की परिभाषा के अनुसार कोई भी भूमि, या जो किसी सरकारी दस्तावेज़ में ‘जंगल’ के रूप में दर्ज है, उसे संरक्षित माना जाएगा। इससे कई निजी और क्षतिग्रस्त वन क्षेत्र भी कानून के अंतर्गत आ गए। यह निर्णय जैव विविधता और जलवायु लक्ष्यों के संरक्षण के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा।
नए आदेशों में क्या कहा गया है?
नवंबर 2023 से मार्च 2025 तक सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह दोहराया कि सभी राज्य जंगलों की विस्तृत परिभाषा को लागू करें। अब राज्यों को बिना देर किए कार्रवाई करनी होगी। यदि आदेशों का पालन नहीं हुआ, तो शीर्ष अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इससे यह संकेत मिलता है कि अदालत अब केवल नीतियों की घोषणा से आगे बढ़कर प्रभावी कार्यान्वयन पर जोर दे रही है।
विशेषज्ञ समितियाँ और भविष्य की योजना
कोर्ट द्वारा निर्देशित विशेषज्ञ समितियों को अब जंगल जैसी भूमि, जैसे कि प्लांटेशन, क्षतिग्रस्त क्षेत्र और निजी हरित भूमि की पहचान करनी होगी। यह सूचियाँ पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) को भेजी जाएँगी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा समीक्षा की जाएगी। यह एकीकृत डेटा संग्रह पुनर्वनीकरण, जैव विविधता निगरानी और जलवायु नीति की योजना बनाने में उपयोगी सिद्ध होगा।
2023 संशोधन पर विवाद
इस आदेश की पृष्ठभूमि में 2023 के वन अधिनियम संशोधन को लेकर पर्यावरणविदों की चिंता भी शामिल है। उनका कहना है कि नई, संकीर्ण परिभाषा के कारण गैर–अधिसूचित जंगलों को कानूनी सुरक्षा से बाहर किया जा सकता है, जिससे बिना नियंत्रण के बुनियादी ढाँचा और खनन गतिविधियाँ तेज़ हो सकती हैं। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को आगाह किया कि यह भारत के पर्यावरण सुरक्षा तंत्र को कमजोर कर सकता है।
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | विवरण |
सुप्रीम कोर्ट आदेश वर्ष | मार्च 2025 |
प्रमुख कानूनी आधार | गोडावर्मन निर्णय, दिसंबर 1996 |
संबंधित कानून | वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 (संशोधित 2023) |
मुख्य निर्देश | वन भूमि की पहचान हेतु विशेषज्ञ समिति का गठन |
कार्यान्वयन एजेंसियाँ | राज्य सरकारें, केंद्रशासित प्रदेश, MoEFCC |
जंगलों की पारिस्थितिक भूमिका | जैव विविधता, जलवायु नियंत्रण, जनजातीय जीवनयापन |
याचिकाकर्ताओं की चिंता | 2023 संशोधन में संकुचित परिभाषा |
डेटा रिपोर्ट अनिवार्यता | समेकित वन रिकॉर्ड सुप्रीम कोर्ट को सौंपना |