राष्ट्रपति का परामर्श सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा
22 जुलाई 2025 को भारत के सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ एक अहम राष्ट्रपति संदर्भ पर सुनवाई करेगी, जो अनुच्छेद 143 के तहत दायर किया गया है। यह कदम 8 अप्रैल 2025 के फैसले के बाद आया है, जिसमें राष्ट्रपति को उन विधेयकों पर तीन महीने के भीतर कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया था, जिन्हें राज्यपालों द्वारा सुरक्षित रखकर भेजा गया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अब सुप्रीम कोर्ट से विधेयकों पर सहमति देने या रोकने की समय–सीमा को स्पष्ट करने के लिए परामर्श मांगा है।
अनुच्छेद 143 का परामर्शाधिकार क्या है?
अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को सार्वजनिक महत्व के कानूनी या तथ्यात्मक मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगने का अधिकार देता है। यह राय बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन जटिल या अस्पष्ट मामलों में संविधानिक मार्गदर्शक के रूप में काम करती है। इस अधिकार क्षेत्र में फैसला देने के लिए कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ आवश्यक होती है।
Static GK fact: सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार 1951 में दिल्ली कानून मामला में अनुच्छेद 143 का उपयोग किया था।
8 अप्रैल का ऐतिहासिक फैसला
एक दो न्यायाधीशीय पीठ ने फैसला दिया था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने में निर्णय लेना अनिवार्य है। यह निर्णय तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा 10 राज्य विधेयकों पर सहमति में देरी के बाद आया। इस फैसले ने राज्यों को याचिका दायर करने का अधिकार दिया, जिससे कानूनी और राजनीतिक बहस शुरू हो गई।
Static GK Tip: अनुच्छेद 200 राज्यपाल को विधेयक रोकने या राष्ट्रपति के पास भेजने की अनुमति देता है, लेकिन समय-सीमा स्पष्ट नहीं है।
पीठ के समक्ष प्रमुख प्रश्न
राष्ट्रपति के परामर्श में 14 कानूनी प्रश्न शामिल हैं, जिनमें अप्रैल 8 के फैसले से जुड़े मुद्दे भी हैं। पीठ यह तय करेगी कि क्या छोटी पीठें भी संविधानिक मुद्दों पर फैसला दे सकती हैं या केवल बड़ी पीठें ही सक्षम हैं। साथ ही इसमें अनुच्छेद 131 (केंद्र-राज्य विवादों में मूल अधिकारिता) और अनुच्छेद 142 (पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने की शक्ति) से जुड़े सवाल भी शामिल हैं।
ऐतिहासिक संदर्भ
1950 से अब तक अनुच्छेद 143 का लगभग 15 बार उपयोग किया गया है। notably, 1993 में राम जन्मभूमि मुद्दे पर कोर्ट ने राय देने से इनकार कर दिया था क्योंकि मामला पहले से विचाराधीन था। परामर्श का मार्ग सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों की समीक्षा के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
केंद्र और राज्य के बीच राजनीतिक तनाव
यह मामला केंद्र और विपक्ष–शासित राज्यों के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है। आरोप है कि केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल विधेयकों की मंजूरी में देरी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की भूमिका इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में संवैधानिक संतुलन बनाए रखने के लिए अहम बन गई है।
न्यायपालिका बनाम संसद की सर्वोच्चता
इस मुद्दे ने संविधान के स्तंभों के बीच शक्ति संतुलन की बहस को फिर जीवित कर दिया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति पर समय-सीमा लागू करने की आलोचना करते हुए इसे न्यायिक अतिक्रमण बताया, जबकि कुछ विशेषज्ञ इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को स्थिरता देने के लिए आवश्यक बता रहे हैं।
Static GK fact: केसवानंद भारती मामला (1973) ने संसद की संशोधन शक्तियों की सीमा तय की और मौलिक ढांचे को संविधान का अभिन्न हिस्सा माना।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
अनुच्छेद 143 | राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से परामर्श ले सकते हैं |
संविधान पीठ | कम से कम 5 न्यायाधीश आवश्यक |
8 अप्रैल 2025 फैसला | राष्ट्रपति को विधेयकों पर 3 महीने में निर्णय देने का निर्देश |
अनुच्छेद 200 | राज्यपाल विधेयक रोक सकते हैं या राष्ट्रपति को भेज सकते हैं |
तमिलनाडु मामला | राज्यपाल ने 10 विधेयकों की मंजूरी रोकी थी |
अनुच्छेद 142 | सुप्रीम कोर्ट पूर्ण न्याय के लिए कोई भी आदेश दे सकता है |
अनुच्छेद 131 | केंद्र-राज्य विवादों में मूल अधिकारिता प्रदान करता है |
परामर्श इतिहास | 1950 से लगभग 15 बार अनुच्छेद 143 लागू हुआ |
राम जन्मभूमि मामला | सुप्रीम कोर्ट ने परामर्श देने से इनकार किया |
केसवानंद भारती मामला | संसद की शक्ति पर सीमा तय की |