उदमपट्टी में दुर्लभ मंदिर खोज
तमिलनाडु के उदमपट्टी गांव में कुछ स्थानीय लड़कों को ज़मीन के नीचे छिपा एक प्राचीन शिव मंदिर का आधार मिला। यह मंदिर सिर्फ एक प्राचीन ढांचा नहीं, बल्कि पांड्य वंश की विरासत से जुड़ा है—खासतौर पर 1217–1218 ईस्वी के बीच, जब मरवर्मन सुंदर पांड्य का शासन था। यह खोज इतिहासकारों के लिए पांड्य युग की समृद्ध सांस्कृतिक और प्रशासनिक झलक प्रदान करती है।
शिलालेखों में क्या जानकारी मिली?
इस मंदिर का नाम “थेननवनीश्वरम” था, जो स्वयं पांड्य राजाओं से जुड़ा हुआ था। शिलालेखों के अनुसार, उस समय गांव का नाम अत्तूर था। शिलालेखों से पता चलता है कि यह मंदिर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर था—यानी स्थानीय समाज में इसका बड़ा महत्व था। इसमें भूमि दान और कर संग्रह का उल्लेख मिलता है जो मंदिर संचालन के लिए होता था।
पांड्य वंश का उत्थान और पतन
पांड्य वंश दक्षिण भारत के प्रसिद्ध “मुवेंद्रों” (तीन राजवंशों) में से एक था—अन्य दो थे चोल और चेरा। इनका प्रारंभ 6वीं सदी ईस्वी में हुआ और इन्होंने कलाभ्र आक्रमण और चोलों से प्रतिद्वंद्विता के बावजूद कई बार पुनः सत्ता प्राप्त की। संगम साहित्य, विदेशी यात्रियों (जैसे मेगस्थनीज, मार्को पोलो) और शिलालेखों से इनकी महानता सिद्ध होती है।
पांड्य प्रशासन प्रणाली
पांड्यों का शासन व्यवस्था सुसंगठित थी। उनकी भूमि को वलनाडु, नाडु और कुर्रम जैसे इकाइयों में बाँटा गया था। मदुरै राजधानी थी। प्रमुख पदों के विशिष्ट नाम होते थे—जैसे प्रधान मंत्री को “उत्तरमंत्री” कहा जाता था। ब्राह्मण बस्तियों को संरक्षण देकर वे शिक्षा और सिंचाई को बढ़ावा देते थे।
उस काल की आर्थिक गतिविधियाँ
उस युग की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित थी, जिसमें उन्नत सिंचाई प्रणाली का योगदान था। मंदिर शिलालेखों से यह भी ज्ञात होता है कि भूमि कर और व्यापार से मंदिरों को आर्थिक सहायता मिलती थी। उस समय मन्नार की खाड़ी से मोती, मसाले और वस्त्रों का व्यापार दूर देशों तक होता था। कायलपट्टिनम उनका प्रमुख समुद्री बंदरगाह था।
धर्म और आस्था
प्रारंभिक पांड्य शासक जैन धर्म के अनुयायी थे, लेकिन बाद में वे शैव और वैष्णव धर्म को अपनाने लगे। इस बदलाव की झलक मंदिर निर्माण, वेदिक अनुष्ठान और भक्ति गीतों से मिलती है। हाल ही में मिला शिव मंदिर उनकी धार्मिक भक्ति और वास्तुकला कौशल का प्रमाण है।
तमिल संस्कृति पर प्रभाव
पांड्य शासकों ने केवल शासन नहीं किया बल्कि तमिल साहित्य, भक्ति काव्य और नाटक को भी प्रोत्साहन दिया। मंदिर केवल पूजास्थल नहीं थे—वे कला, शिक्षा और समाजिक जीवन के केंद्र थे। तमिलनाडु की आज की कई परंपराएं उसी युग से प्रेरित हैं।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
खोज का स्थान | उदमपट्टी, तमिलनाडु |
मंदिर का काल | 1217–1218 ईस्वी |
शासनकाल के राजा | मरवर्मन सुंदर पांड्य |
मंदिर का नाम | थेननवनीश्वरम |
गांव का प्राचीन नाम | अत्तूर |
पांड्य राजधानी | मदुरै |
प्रशासनिक इकाइयाँ | वलनाडु, नाडु, कुर्रम |
प्रधानमंत्री का पदनाम | उत्तरमंत्री |
व्यापार वस्तुएँ | मसाले, मोती, वस्त्र |
प्रमुख बंदरगाह | कायलपट्टिनम |
धार्मिक परिवर्तन | जैन धर्म से शैव और वैष्णव धर्म की ओर |
प्रमुख साहित्य स्रोत | संगम ग्रंथ, शिलालेख, विदेशी यात्रियों के वर्णन |