छिपे हुए जीव, बड़ी खोजें
वेस्टर्न घाट के घने जंगलों में वैज्ञानिकों ने हाल ही में चार नई टारन्टुला प्रजातियाँ खोजीं, जिनमें सिलांटिका (Cilantica) नामक एक बिल्कुल नया वंश भी शामिल है। यह खोज इस क्षेत्र की पहले से ज्ञात 60 से अधिक प्रजातियों में और इज़ाफा करती है। ये जीव भले ही बाघों या हाथियों की तरह सुर्खियाँ न बटोरें, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं।
हैरानी की बात यह है कि ये मकड़ियाँ चाय बागानों, पेड़ों के खोखलों और जंगल की पगडंडियों में ‘आम नजरों’ के सामने ही मौजूद थीं। यह दर्शाता है कि भारत के जंगलों में अब भी बहुत कुछ जानने को बाकी है।
टारन्टुला: जंगल के मौन संरक्षक
टारन्टुला केवल डरावनी दिखने वाली मकड़ियाँ नहीं हैं। वे प्राकृतिक कीट नियंत्रक हैं—ये कीड़ों और छोटे जीवों को खाकर पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखती हैं। मादा टारन्टुला अपने अंडों की थैली को मुँह के नीचे रखती है और बच्चों के लिए विशेष जाल से झूले (हैम्मॉक) भी बनाती है—जो मकड़ियों में दुर्लभ व्यवहार है। इनका अस्तित्व स्वस्थ वन पारिस्थितिकी का संकेत देता है।
लेकिन जब जंगल काटे जाते हैं या उनका आवास नष्ट होता है, तो इनके लिए छिपने और प्रजनन करने की कोई जगह नहीं बचती।
नये मेहमानों से मिलिए: ब्रैटोकोलोनस, मोंटानस और सिलांटिका
इनमें सबसे खास प्रजाति है Haploclastus bratocolonus, जो नदी किनारे के खोखले पेड़ों में रहती है। Haploclastus montanus, 2,000 मीटर की ऊंचाई पर पाई गई है—यह भारत की सबसे ऊँचाई पर रहने वाली टारन्टुला में से एक है।
सिलांटिका, जो एक नया वंश है, तमिल शब्द “சிலந்தி” (मकड़ी) से लिया गया है। इसकी पहचान घुमावदार ब्रिसल्स से होती है, जो इसे अन्य प्रजातियों से अलग बनाती हैं। ये सूक्ष्म विशेषताएँ वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करती हैं कि प्रजातियाँ विभिन्न आवासों में कैसे विकसित होती हैं।
खतरा: व्यापार, तस्करी और आवास विनाश
सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि 2000 के बाद खोजी गई टारन्टुला की 25% प्रजातियाँ अब अंतरराष्ट्रीय पालतू व्यापार का हिस्सा बन चुकी हैं। केरल में पाई गई Haploclastus devamatha को खोज के केवल 8 महीने बाद ही ऑनलाइन बेचा गया। चूँकि इन मकड़ियों की हड्डियाँ नहीं होतीं, इन्हें एक्स–रे में पकड़ना मुश्किल होता है, जिससे ये तस्करों के लिए आसान शिकार बन जाती हैं।
इनकी धीमी प्रजनन दर और सीमित क्षेत्र इन्हें और भी संवेदनशील बनाते हैं। एक बार जंगल की कटाई या तस्करी बढ़ने से ये हमेशा के लिए लुप्त हो सकती हैं।
संरक्षण: सभी की साझी ज़िम्मेदारी
विशेषज्ञों का सुझाव है कि प्रशिक्षित कस्टम अधिकारी, स्निफर डॉग्स और स्थानीय निगरानी तंत्र के माध्यम से तस्करी पर लगाम लगाई जा सकती है। जंगली मकड़ियों को खरीदने से बचने और कैप्टिव ब्रीडिंग को बढ़ावा देने से भी बड़ा अंतर आएगा।
कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि टारन्टुला को भारत के अकशेरुकी प्राणियों के संरक्षण प्रतीक (flagship species) के रूप में प्रचारित किया जाना चाहिए—जैसे बाघ स्तनधारियों के लिए हैं।
Static GK Snapshot (प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु)
विषय | तथ्य |
भारत में टारन्टुला प्रजातियाँ | वेस्टर्न घाट में 60+ प्रजातियाँ |
2025 की नई खोजें | Haploclastus bratocolonus, Haploclastus montanus, Cilantica वंश |
व्यापार में खतरा | 2000 के बाद खोजी गई 25% प्रजातियाँ पालतू व्यापार में |
टारन्टुला की आयु | 10–20 वर्ष |
संरक्षण सुझाव | स्निफर डॉग्स, प्रशिक्षित कस्टम अधिकारी, समुदाय भागीदारी, कैप्टिव ब्रीडिंग |