मद्रास हाईकोर्ट ने अंतर-धार्मिक विवाह की वैधता स्पष्ट की
मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने हालिया ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया है कि हिंदू और गैर–हिंदू के बीच हुआ अंतर–धार्मिक विवाह केवल विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत पंजीकृत होने पर ही वैध माना जाएगा। यह फैसला उस अपील पर सुनवाई करते हुए आया, जिसमें एक हिंदू महिला और ईसाई पुरुष के विवाह को न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किया गया था।
मामला क्या था?
यह मामला वर्ष 2005 में विवाह करने वाले एक हिंदू महिला और एक ईसाई पुरुष से संबंधित था। दोनों ने किसी भी कानूनी अधिनियम के तहत विवाह का पंजीकरण नहीं कराया—न तो ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 के तहत और न ही विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत। बाद में वैवाहिक विवादों के चलते विवाह को अमान्य घोषित करने की याचिका दायर की गई, जिसे फैमिली कोर्ट ने स्वीकार कर लिया और अब हाईकोर्ट ने भी उसे बरकरार रखा।
न्यायालय की व्याख्या और कानूनी आधार
न्यायमूर्ति आर.एम.टी. टीका रमन और न्यायमूर्ति एन. सेंथिलकुमार की खंडपीठ ने कहा कि जब विवाह अलग–अलग धर्मों के व्यक्तियों के बीच हो, तो उसे केवल विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत ही कानूनी मान्यता मिल सकती है।
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 केवल तब लागू होता है जब दोनों पक्ष हिंदू हों। अतः अगर एक पक्ष गैर-हिंदू है, तो हिंदू विधियों से किया गया विवाह अवैध माना जाएगा।
विशेष टिप्पणी
खंडपीठ ने विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी दो व्यक्ति, चाहे उनका धर्म कोई भी हो, इस अधिनियम के तहत सिविल विवाह कर सकते हैं। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक विवाह को वैधानिक मान्यता नहीं मिलेगी।
भारत में अंतर-धार्मिक जोड़ों के लिए संदेश
यह फैसला भारत के लाखों अंतर–धार्मिक जोड़ों के लिए एक चेतावनी के रूप में सामने आया है। विवाह का पंजीकरण किसी विधिक अधिनियम के तहत न होने पर न तो पति-पत्नी का कानूनी दर्जा मिलेगा, न ही संपत्ति अधिकार, न ही भरण-पोषण की मांग की जा सकती है।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सामाजिक स्वीकृति या पारिवारिक अनुष्ठान, विवाह की कानूनी मान्यता का स्थान नहीं ले सकते।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान सारांश (STATIC GK SNAPSHOT)
विषय | विवरण |
न्यायालय | मद्रास उच्च न्यायालय |
प्रमुख कानून | विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (धारा 15) |
संबंधित कानून | हिंदू विवाह अधिनियम, 1955; ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 |
मामला | सिविल अपील – विवाह अमान्यता |
निर्णय की तिथि | फरवरी 2025 |
मुख्य फैसला | हिंदू विधि से किया गया अंतर-धार्मिक विवाह अमान्य |
आवश्यक प्रक्रिया | विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकरण |
याचिकाकर्ता का धर्म | ईसाई |
उत्तरदाता का धर्म | हिंदू |
खंडपीठ | न्यायमूर्ति आर.एम.टी. टीका रमन और न्यायमूर्ति एन. सेंथिलकुमार |