विरोधाभासी फैसलों से पुनः शुरू हुई मृत्युदंड बहस
जनवरी 2025 में दो चर्चित हत्या मामलों ने भारत में मृत्युदंड को लेकर जारी असंगति को उजागर किया। एक मामले में बलात्कार और हत्या के दोषी एक नागरिक स्वयंसेवक को आजीवन कारावास की सजा दी गई, जबकि दूसरे मामले में एक महिला को अपने साथी को ज़हर देने के आरोप में मृत्युदंड सुनाया गया। इन विरोधाभासी निर्णयों ने फिर से ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ सिद्धांत की प्रासंगिकता और न्यायिक असंगति पर बहस को जन्म दिया।
सिद्धांत की उत्पत्ति की पड़ताल
‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ (सबसे दुर्लभ मामलों) में ही मृत्युदंड देने की अवधारणा बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980) के सुप्रीम कोर्ट फैसले से निकली थी। कोर्ट ने कहा कि मृत्युदंड केवल असाधारण मामलों में दिया जाना चाहिए, लेकिन इस वाक्यांश की स्पष्ट परिभाषा नहीं दी, जिससे निर्णय का आधार न्यायिक विवेक बन गया।
ऐतिहासिक निर्णय और कानूनी मील के पत्थर
बचन सिंह से पहले जगमोहन सिंह बनाम उत्तर प्रदेश (1972) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड की संवैधानिक वैधता को स्वीकार किया था। बाद में मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य (1983) में कोर्ट ने पाँच मानक बताए जो मृत्युदंड को उचित ठहरा सकते हैं:
- अपराध की क्रूरता
- अपराध का उद्देश्य
- सामाजिक प्रभाव
- पीड़ितों की संख्या
- पीड़ित की संवेदनशीलता।
इसी वर्ष मिथु बनाम पंजाब राज्य (1983) में कोर्ट ने अनिवार्य मृत्युदंड को असंवैधानिक ठहराया और कहा कि प्रत्येक मामले में प्रतिकूल परिस्थितियों को ध्यान में रखना आवश्यक है, जिससे अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) को बल मिला।
न्यायिक असंगति अब भी बनी हुई है
हालांकि उपरोक्त फैसलों ने दिशानिर्देश दिए हैं, फिर भी भारत में पूंजी दंड देना विवेकाधीन और असंगत बना हुआ है। अलग-अलग जज एक ही प्रकार के अपराध में अलग निष्कर्ष निकालते हैं। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने एक नई प्रक्रिया का प्रारूप तैयार करना शुरू किया ताकि मृत्युदंड से पहले दया याचिका और परिस्थितिजन्य मूल्यांकन सुनिश्चित किया जा सके, लेकिन यह प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है।
नैतिक प्रश्न और जनमानस की सोच
मृत्युदंड को लेकर समाज में आज भी गहरी दोराय है। एक पक्ष इसे बलात्कार या आतंकवाद जैसे जघन्य अपराधों के लिए आवश्यक मानता है, तो दूसरा पक्ष इसे त्रुटिपूर्ण और अपूरणीय सजा मानता है, विशेषकर उस न्याय व्यवस्था में जहां गलत फैसले की संभावना बनी रहती है। भारत को अब ऐसा न्यायिक ढांचा बनाना होगा जो सजा की गंभीरता को कानूनी और नैतिक दोनों मानकों से संतुलित करे।
STATIC GK SNAPSHOT: ‘रेयरेस्ट ऑफ द रेयर’ सिद्धांत – प्रमुख तथ्य
विषय | विवरण |
सिद्धांत का नाम | रेयरेस्ट ऑफ द रेयर (बचन सिंह केस, 1980 में विकसित) |
प्रारंभिक संदर्भ | जगमोहन सिंह बनाम उत्तर प्रदेश, 1972 |
दिशानिर्देश निर्धारित केस | मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य, 1983 |
अनिवार्य मृत्युदंड रद्द | मिथु बनाम पंजाब राज्य, 1983 |
संवैधानिक आधार | अनुच्छेद 21 – जीवन का अधिकार |
हालिया सुधार प्रयास | 2022 – सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रक्रियात्मक ढांचे का प्रारूप |
वर्तमान विवाद | जनवरी 2025 – बलात्कार बनाम ज़हर मामले के अलग फैसले |