प्रीमियम कॉटन बाज़ार में भारत की स्थिति सुदृढ़ करने की योजना
केंद्रीय बजट 2025 में भारत सरकार ने एक्स्ट्रा–लॉन्ग स्टेपल (ELS) कॉटन के उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु पांच वर्षीय मिशन शुरू किया है। इस विशेष किस्म के कपास को इसकी असाधारण मजबूती और रेशमी बनावट के लिए जाना जाता है। इसका उद्देश्य है—फाइबर गुणवत्ता सुधारना, किसानों की आमदनी बढ़ाना, और महंगे आयातित कपास पर निर्भरता घटाना।
ईजिप्शियन और पीमा कॉटन जैसी ईएलएस किस्में 30 मिमी से अधिक रेशे की लंबाई के लिए जानी जाती हैं। जबकि मिस्र, ऑस्ट्रेलिया, चीन, और पेरू जैसे देश वैश्विक उत्पादन में अग्रणी हैं, भारत अभी भी मुख्यतः मध्यम स्टेपल कपास (Gossypium hirsutum) पर निर्भर है।
भारत में ईएलएस कपास की वर्तमान स्थिति और सीमाएं
भारत में ईएलएस कपास का उत्पादन सीमित क्षेत्र में होता है—मुख्यतः महाराष्ट्र के अटपाड़ी और तमिलनाडु के कोयंबटूर क्षेत्रों में। इसकी वैश्विक मांग के बावजूद, किसान इसके उत्पादन में संकोच करते हैं।
किसान ईएलएस कपास क्यों नहीं उगाते?
प्रमुख कारण है उत्पादकता में कमी—ईएलएस कपास की औसत उपज 7–8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है, जबकि सामान्य किस्में 10–12 क्विंटल देती हैं। इसके अलावा, प्रभावी खरीद तंत्र की कमी के कारण किसानों को प्रीमियम मूल्य नहीं मिलता, जिससे यह आर्थिक रूप से जोखिम भरी फसल बन जाती है।
सरकार की कार्ययोजना: उत्पादकता से लेकर निर्यात तक
इन समस्याओं को हल करने के लिए सरकार ने ईएलएस कॉटन मिशन की घोषणा की है, जिसमें शामिल हैं:
- बेहतर गुणवत्ता वाले बीजों की आपूर्ति
- आधुनिक खेती तकनीकों का उपयोग
- कीट और खरपतवार प्रबंधन
- बाजार और बुनियादी ढांचे की उपलब्धता
एचटीबीटी (Herbicide-Tolerant Bt) कपास तकनीक पर भी विचार हो रहा है, जिससे किसानों को खरपतवार नियंत्रण में मदद और श्रम की आवश्यकता में कमी हो सकेगी।
यह पहल सरकार के ‘5F सिद्धांत’ पर आधारित है—Farm → Fibre → Factory → Fashion → Foreign, जो पूरे कॉटन मूल्य श्रृंखला को मजबूत करने और भारत को उच्च गुणवत्ता वाला कपास आपूर्तिकर्ता बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है।
कपड़ा क्षेत्र को मिला बजटीय समर्थन
कपड़ा मंत्रालय के बजट में 19% की वृद्धि के साथ वर्ष 2025–26 के लिए ₹5,272 करोड़ का आवंटन किया गया है। यह कदम ₹3.5 लाख करोड़ मूल्य वाले भारतीय कपड़ा उद्योग, विशेषकर MSME क्षेत्रों, के आधुनिकीकरण को गति देगा।
अतिरिक्त बजटीय सुधार:
- तकनीकी कपड़ा क्षेत्र (रक्षा, स्वास्थ्य, कृषि) का विस्तार
- हाई–एफिशिएंसी शटल–लेस लूम पर कस्टम ड्यूटी समाप्त
- निटेड फैब्रिक पर आयात शुल्क बढ़ाकर 20% या ₹115/किग्रा
- हथकरघा निर्यातकों को ड्यूटी-फ्री इनपुट अवधि और प्रक्रियात्मक सरलीकरण
भविष्य की दिशा: वैश्विक कपास नेतृत्व की ओर भारत
ईएलएस कॉटन मिशन केवल उत्पादन नहीं, बल्कि आर्थिक लचीलापन, नवाचार, और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है। किसानों को सशक्त बनाकर, जलवायु–संवेदनशील तरीकों को अपनाकर, और वैल्यू चेन को उन्नत करके, भारत एक वैश्विक प्रीमियम कपास केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है।
स्टैटिक GK स्नैपशॉट: भारत में कपास और कपड़ा सुधार
श्रेणी | विवरण |
ईएलएस कपास की रेशा लंबाई | 30 मिमी से अधिक (Gossypium barbadense) |
भारत में प्रमुख उत्पादन क्षेत्र | अटपाड़ी (महाराष्ट्र), कोयंबटूर (तमिलनाडु) |
ईएलएस कॉटन मिशन की घोषणा | 2025 (केंद्रीय बजट में) |
कपड़ा मंत्रालय का बजट (2025–26) | ₹5,272 करोड़ (19% वृद्धि) |
वैश्विक प्रमुख उत्पादक | मिस्र, ऑस्ट्रेलिया, चीन, पेरू |
नीति ढांचा | 5F: खेत → रेशा → फैक्ट्री → फैशन → विदेशी बाज़ार |
एचटीबीटी कपास | खरपतवार नियंत्रण व श्रम कटौती हेतु विचाराधीन |