मदुरै की पहाड़ियों में चौंकाने वाली खोज
मदुरै के मेलावलावु स्थित सोमगिरी पहाड़ियों में हाल ही में हुआ एक पुरातात्विक अन्वेषण इतिहासकारों के बीच उत्साह का कारण बना है। यहां 1000 ईस्वी के आसपास के काल का एक प्राचीन शिलालेख मिला है, जो राजराज चोल प्रथम के शासनकाल से जुड़ा हुआ है। यह खोज इसलिए खास है क्योंकि यह स्थान पांड्य क्षेत्र के केंद्र में स्थित है, जिससे इस क्षेत्र में चोलों की सैन्य और प्रशासनिक उपस्थिति की पुष्टि होती है। इस शिलालेख में वीरनारण पल्लवरायन नामक सेनापति और मलैयप्पा संपु द्वारा बनाए गए एक मंदिर का उल्लेख है—यह दर्शाता है कि चोलों ने विजित क्षेत्रों में भी धार्मिक और राजनीतिक प्रभाव स्थापित किया था।
साम्राज्य निर्माता: राजराज चोल प्रथम
राजराज चोल प्रथम (985–1014 ई.), परंतक चोल द्वितीय के पुत्र थे। उनका शासन तमिल इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था। वे एक तीव्र रणनीतिक सोच वाले योद्धा थे जिन्होंने चारों दिशाओं में चोल साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होंने मदुरै को पांड्यों से जीतकर उसका नाम ‘राजराज मंडलम्’ रखा। 988 ई. की कंडलूर सलाई की लड़ाई और 993 ई. में श्रीलंका अभियान उनकी प्रमुख सफलताएँ थीं, जिससे उन्हें प्रमुख व्यापारिक मार्गों और सांस्कृतिक केंद्रों पर नियंत्रण मिला।
विजयों से आगे: एक दूरदर्शी प्रशासक
राजराज चोल की विशेषता सिर्फ युद्धों में नहीं, बल्कि उनके प्रशासनिक ढांचे में भी थी। उन्होंने वंशानुगत शासन प्रणाली को समाप्त कर नियुक्त अधिकारियों की प्रणाली शुरू की। साम्राज्य को 9 प्रांतों में विभाजित किया गया और प्रत्येक में स्थानीय परिषदें थीं। यह विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली गांवों को स्वशासन की सुविधा देती थी जबकि केंद्रीय राजसत्ता के प्रति उनकी निष्ठा बनी रहती थी—जो उस युग के लिए एक दुर्लभ प्रशासनिक उपलब्धि थी।
पत्थर और कांसे में उकेरी गई विरासत
राजराज चोल की सांस्कृतिक विरासत आज भी जीवित है। उन्होंने तंजावुर में भव्य बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया, जो द्रविड़ स्थापत्य शैली की अनुपम मिसाल है। यह मंदिर केवल पूजा स्थल ही नहीं बल्कि कोषागार, न्यायालय और कला केंद्र के रूप में भी कार्य करता था। उन्होंने अपने चित्र और एक आसन पर बैठी देवी की आकृति के साथ नाणे भी जारी किए, जो राजसत्ता और दैवीय वैधता का प्रतीक थे।
चोलों की व्यापारिक और आर्थिक समृद्धि
आर्थिक रूप से चोल काल जीवंत व्यापार और समृद्धि का युग था। साम्राज्य ने दक्षिण–पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया से वस्त्र, मसाले और कीमती पत्थरों का व्यापार किया। ‘मणिग्रामम’ और ‘ऐन्नूर्रुवर’ जैसे व्यापार संघों की भूमिका से आंतरिक वाणिज्य व्यवस्था सुव्यवस्थित रही। चोलों के समुद्री अभियान केवल विजय के लिए नहीं बल्कि व्यापार मार्ग खोलने के लिए भी थे।
STATIC GK SNAPSHOT TABLE
विषय | विवरण |
शासक | राजराज चोल प्रथम (985–1014 ई.) |
प्रमुख युद्ध | कंडलूर सलाई युद्ध (988 ई.) |
मदुरै का नया नाम | राजराज मंडलम् |
मंदिर योगदान | बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर |
व्यापारिक भागीदार | पश्चिम एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया |
सिक्कों की विशेषता | राजा की छवि और बैठी हुई देवी |
हाल की शिलालेख खोज | सोमगिरी पहाड़ियाँ, मेलावलावु, मदुरै (2025) |
उल्लेखित सेनापति | वीरनारण पल्लवरायन |
धार्मिक प्रशासनिक संबंध | मलैयप्पा संपु द्वारा मंदिर निर्माण |
यूनेस्को विरासत स्थल | बृहदेश्वर मंदिर |