भविष्य की स्वच्छ सवारी की ओर
IIT रुड़की और International Council on Clean Transportation (ICCT) द्वारा किए गए हालिया अध्ययन ने भारत में वाहनों से उत्सर्जन को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी दी है। इस शोध में बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों (BEVs) और पारंपरिक इंटरनल कंबशन इंजन (ICE) वाहनों की तुलना की गई। निष्कर्ष यह है कि BEVs प्रति किलोमीटर 38% तक कम CO₂ उत्सर्जन करते हैं। यह जलवायु परिवर्तन और शहरी वायु गुणवत्ता के लिहाज़ से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उत्सर्जन में भिन्नता क्यों?
अध्ययन ने तीन प्रमुख कारणों को चिन्हित किया है जिनसे उत्सर्जन के स्तर में भिन्नता आती है। पहला है ग्रिड की कार्बन तीव्रता — यानी बिजली कितनी स्वच्छ है। दूसरा कारण है प्रयोगशाला परीक्षण की धारणाएं, जो कई बार वास्तविक जीवन से मेल नहीं खातीं। तीसरा है वास्तविक ड्राइविंग स्थितियां। इन तीन कारणों की वजह से उत्सर्जन में 368 ग्राम CO₂e/किमी तक का अंतर देखा गया।
BEVs क्यों आगे हैं?
अगर हम वाहनों के पूरे जीवनकाल — यानी निर्माण से लेकर निपटान तक — की बात करें, तो BEVs लगातार ICE और हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों (HEVs) से बेहतर साबित होते हैं। BEVs की श्रेष्ठता तब और स्पष्ट हो जाती है जब प्रयोगशाला के बजाय वास्तविक उपयोग को ध्यान में रखा जाए। अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि BEV को अपनाने में देरी नुकसानदायक होगी, क्योंकि वर्तमान में बेचे जा रहे ICE वाहन 10–15 वर्षों तक प्रदूषण करते रहेंगे।
परीक्षण यथार्थ से मेल खाएं
अक्सर प्रयोगशाला परीक्षणों और सड़कों पर वाहन के व्यवहार में फर्क होता है। HEVs के लिए लैब में मापी गई ईंधन दक्षता भ्रामक हो सकती है। इसलिए विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि वास्तविक दुनिया के सुधार कारकों (correction factors) का उपयोग जरूरी है। BEVs की ऊर्जा दक्षता सच्चाई के करीब होती है, पर उनकी चार्जिंग के दौरान होने वाली हानि को अक्सर अनदेखा किया जाता है, जो मूल्यांकन में जोड़ा जाना चाहिए।
भूमि उपयोग परिवर्तन की अनदेखी
अधिकांश उत्सर्जन मूल्यांकन अध्ययनों में भूमि उपयोग परिवर्तन को नजरअंदाज कर दिया जाता है, खासकर बायोफ्यूल के मामले में। उदाहरण के लिए, अगर डीज़ल बनाने के लिए जंगल काटकर ईंधन फसलें उगाई जाएं, तो उत्सर्जन कहीं अधिक होता है। इस तथ्य की अनदेखी बायोफ्यूल को झूठा पर्यावरण-अनुकूल साबित कर सकती है।
नीति निर्माताओं के लिए सुझाव
इस अध्ययन के आधार पर कुछ ठोस नीतिगत सुझाव सामने आए हैं:
पहला, BEVs को जल्द से जल्द अपनाने की प्रक्रिया तेज़ की जाए — बिजली ग्रिड के आदर्श बनने का इंतज़ार न किया जाए। दूसरा, ईंधन दक्षता मानकों को मजबूत करें और सभी प्रकार के वाहनों में ऑन-बोर्ड ऊर्जा मीटर को अनिवार्य बनाएं। तीसरा, बायोफ्यूल के मूल्यांकन में भूमि उपयोग परिवर्तन का प्रभाव अवश्य शामिल किया जाए।
स्थैतिक उस्थादियन समसामयिक जानकारी तालिका
विषय | विवरण |
अध्ययन संस्थान | IIT रुड़की और ICCT |
BEV उत्सर्जन लाभ | ICE की तुलना में 38% तक कम CO₂e/किमी |
उत्सर्जन में अंतर के कारण | ग्रिड कार्बन तीव्रता, लैब धारणाएं, वास्तविक ड्राइविंग |
अधिकतम उत्सर्जन अंतर | 368 ग्राम CO₂e/किमी |
लैब बनाम यथार्थ प्रदर्शन | HEVs के लिए असंगति, BEVs में अधिक सटीकता |
बायोफ्यूल चिंता | भूमि उपयोग परिवर्तन की अनदेखी |
ICE वाहन जीवनकाल | 10–15 साल |
सुझाई गई नीतियां | BEV को तेजी से अपनाएं, ईंधन मानक सुधारें, वास्तविक डेटा मापें |