फोन टेपिंग के लिए कानूनी आधार
भारत में फोन बातचीत को इंटरसेप्ट करने की सरकारी शक्ति तीन प्रमुख कानूनों पर आधारित है:
- इंडियन टेलीग्राफ एक्ट, 1885
- पोस्ट ऑफिस एक्ट, 1898
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000
इनमें टेलीग्राफ अधिनियम प्रमुख भूमिका निभाता है। इसकी धारा 5(2) के तहत फोन निगरानी सिर्फ सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा से संबंधित गंभीर स्थिति में की जा सकती है।
Static GK Fact: टेलीग्राफ अधिनियम मूल रूप से टेलीग्राम के नियमन के लिए बना था, लेकिन अब यही फोन निगरानी का मुख्य आधार है।
संविधान में सीमित निगरानी अनुमति
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(2) सरकार को स्वतंत्र भाषण और निजता के अधिकार को सीमित करने की अनुमति देता है — लेकिन केवल राष्ट्रीय अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, या अपराध उकसाने से रोकने जैसे मामलों में।
निगरानी केवल कड़े कानूनी और प्रक्रियात्मक ढांचे के तहत ही की जा सकती है।
2025 में दो उच्च न्यायालयों के विपरीत फैसले
हाल ही में दो उच्च न्यायालयों के फैसलों ने फोन निगरानी पर विचारधारा की टकराव को उजागर किया:
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने ₹2,000 करोड़ के भ्रष्टाचार मामले में निगरानी को सार्वजनिक विश्वास और शासन के लिए खतरा मानते हुए वैध ठहराया।
- जबकि मद्रास उच्च न्यायालय ने ₹50 लाख की रिश्वत के मामले में निगरानी आदेश को अवैध और प्रक्रिया के उल्लंघन के रूप में रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का 1997 का ऐतिहासिक मार्गदर्शन
People’s Union for Civil Liberties बनाम भारत संघ (1997) केस में सर्वोच्च न्यायालय ने निगरानी शक्तियों पर कड़े प्रतिबंध लगाए:
- केवल केंद्रीय या राज्य स्तर के गृह सचिव ही फोन टेपिंग का आदेश दे सकते हैं।
- यह आदेश किसी कनिष्ठ अधिकारी को नहीं सौंपा जा सकता।
- निगरानी का आदेश केवल तब दिया जा सकता है जब सूचना प्राप्त करने का कोई और तरीका न हो।
- आदेश पर 2 महीने के भीतर उच्च स्तरीय समीक्षा समिति (जिसमें कैबिनेट सचिव भी होते हैं) की समीक्षा आवश्यक है।
Static GK Tip: यह फैसला फोन निगरानी के लिए भारत में बुनियादी आधार बना और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा सुनिश्चित करता है।
दो दृष्टिकोणों के बीच संतुलन की चुनौती
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आर्थिक अपराधों को भी सार्वजनिक सुरक्षा की श्रेणी में रखा, जबकि मद्रास उच्च न्यायालय ने कानूनी प्रक्रिया की कठोर पालना और निजता अधिकार की रक्षा को प्रमुख माना।
यह टकराव भविष्य में निगरानी के औचित्य और दायरे को लेकर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है, खासकर जब अपराध घटने से पहले ही निगरानी शुरू की जाए।
डिजिटल युग की निगरानी चुनौतियाँ
आज अधिकांश संचार एन्क्रिप्टेड डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर होता है — जैसे ईमेल, चैट और मैसेजिंग ऐप्स। इन पर निगरानी का संचालन IT अधिनियम, 2000 के अंतर्गत किया जाता है।
हालाँकि, निजी संवादों की निगरानी और निजता की संवैधानिक गारंटी के बीच संतुलन बनाना आज भी एक कानूनी और नैतिक चुनौती बना हुआ है।
Static GK Fact: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 भारत का पहला साइबर और डिजिटल डेटा नियमन कानून था।
Static Usthadian Current Affairs Table (हिंदी संस्करण)
विषय | विवरण |
मुख्य कानून | इंडियन टेलीग्राफ एक्ट, 1885 (धारा 5(2)) |
अन्य लागू कानून | पोस्ट ऑफिस एक्ट, 1898 और आईटी एक्ट, 2000 |
ऐतिहासिक फैसला | People’s Union for Civil Liberties बनाम भारत संघ (1997) |
दिल्ली उच्च न्यायालय | ₹2,000 करोड़ घोटाले में निगरानी वैध घोषित |
मद्रास उच्च न्यायालय | ₹50 लाख रिश्वत मामले में निगरानी अमान्य घोषित |
प्राधिकृत अधिकारी | केवल गृह सचिव (राज्य या केंद्र स्तर) |
समीक्षा समिति | कैबिनेट सचिव सहित समिति; 2 महीने में समीक्षा अनिवार्य |
प्रमुख चिंता | राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम व्यक्तिगत निजता का संतुलन |
टेलीग्राफ अधिनियम की उत्पत्ति | मूल रूप से टेलीग्राम नियमन के लिए |
डिजिटल निगरानी कानून | सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 |