जुलाई 21, 2025 8:03 अपराह्न

भारत में न्यायिक कदाचार से निपटने की प्रक्रिया: आंतरिक जांच बनाम महाभियोग

वर्तमान मामले: आंतरिक जांच बनाम महाभियोग: भारत न्यायिक कदाचार को कैसे संबोधित करता है, न्यायिक कदाचार जांच 2025, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा मामला, सीजेआई संजीव खन्ना जांच, अनुच्छेद 124 (4) न्यायिक निष्कासन, इन-हाउस एथिक्स प्रक्रिया, दिल्ली एचसी जज विवाद, सुप्रीम कोर्ट की जवाबदेही, न्यायपालिका अनुशासन तंत्र

Internal Inquiry vs Impeachment: How India Addresses Judicial Misconduct

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और अग्निकांड की जांच

22 मार्च 2025 को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ एक गोपनीय जांच का आदेश दिया। यह आदेश 14 मार्च को उनके सरकारी आवास में लगी आग के बाद दिया गया, जहां जांचकर्ताओं ने कथित तौर पर बड़ी मात्रा में अघोषित नकदी बरामद की। यह जांच भारत के संविधान के तहत महाभियोग नहीं है, बल्कि न्यायपालिका की आंतरिक नैतिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जो उन गंभीर मामलों से निपटती है जो औपचारिक निष्कासन की श्रेणी में नहीं आते।

महाभियोग प्रक्रिया: संविधान का अनुच्छेद 124(4)

भारत के संविधान के तहत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की एक कठोर प्रक्रिया निर्धारित है। अनुच्छेद 124(4) (सुप्रीम कोर्ट) और अनुच्छेद 218 (हाई कोर्ट) के अनुसार, न्यायाधीश को केवल सिद्ध दुराचार या अक्षमता के मामलों में ही हटाया जा सकता है। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत—मौजूद और मतदान कर रहे सदस्यों के दो-तिहाई और सदन की कुल संख्या के 50% से अधिक का समर्थन आवश्यक होता है। यदि संसद इस बीच भंग हो जाती है, तो प्रस्ताव स्वतः समाप्त हो जाता है।

आंतरिक जांच प्रक्रिया: मध्यस्तर की अनुशासनिक प्रणाली

हर प्रकार के कदाचार के लिए महाभियोग आवश्यक नहीं होता। 1995 में बंबई उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य पर अनुचित आचरण के आरोप लगे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में सी. रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति भट्टाचार्य मामले में एक आंतरिक जांच प्रणाली की सिफारिश की। इसके आधार पर 1999 में एक औपचारिक नैतिकता प्रोटोकॉल स्थापित किया गया, जिससे न्यायाधीशों को संवैधानिक प्रक्रिया के बिना भी जवाबदेह ठहराया जा सके।

कैसे कार्य करती है आंतरिक नैतिकता प्रणाली

इस प्रणाली की शुरुआत भारत के मुख्य न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या राष्ट्रपति द्वारा लिखित शिकायत से होती है। यदि प्रारंभिक जांच में मामला गंभीर प्रतीत होता है, तो मुख्य न्यायाधीश तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की एक समिति गठित करते हैं (आमतौर पर अन्य उच्च न्यायालयों से)। आरोपी न्यायाधीश को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के तहत जवाब देने का अवसर दिया जाता है। समिति की रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश को सौंपी जाती है, जो न्यायाधीश को इस्तीफा देने की सलाह दे सकते हैं। यदि वह इनकार करता है, तो मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति से महाभियोग की सिफारिश कर सकते हैं।

न्यायिक स्वतंत्रता बनाम जवाबदेही: संतुलन की आवश्यकता

यह आंतरिक प्रणाली न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कायम रखते हुए समय पर जवाबदेही सुनिश्चित करती है। यह प्रणाली न्यायपालिका की साख को बचाए रखते हुए अनुचित व्यवहार पर प्रभावी कार्रवाई का मार्ग प्रदान करती है। न्यायमूर्ति वर्मा जैसे मामलों में यह दिखाता है कि जनता की नजरों में न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता और नैतिकता कायम है।

स्थैतिक सामान्य ज्ञान सारांश (STATIC GK SNAPSHOT – हिंदी में)

विषय विवरण
सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश निष्कासन अनुच्छेद अनुच्छेद 124(4)
हाई कोर्ट न्यायाधीश निष्कासन अनुच्छेद अनुच्छेद 218
निष्कासन के वैध आधार सिद्ध दुराचार या अक्षमता
संसद में आवश्यक बहुमत उपस्थित और मतदान करने वालों का दो-तिहाई + कुल संख्या का 50%
प्रमुख संबंधित मामला सी. रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य (1995)
औपचारिक नैतिक प्रक्रिया की शुरुआत दिसंबर 1999
प्रारंभिक समिति के सदस्य एस.सी. अग्रवाल, ए.एस. आनंद, एस.पी. भरूचा, पी.एस. मिश्रा, डी.पी. मोहापात्र
2025 की मुख्य घटना न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की नकद बरामदगी से जुड़ी जांच

 

Internal Inquiry vs Impeachment: How India Addresses Judicial Misconduct
  1. 22 मार्च 2025 को CJI संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ एक आग की घटना और नकदी बरामदगी के बाद जांच का आदेश दिया।
  2. यह जांच संविधान के तहत महाभियोग नहीं, बल्कि जुडिशियल इनहाउस मैकेनिज्म का हिस्सा है।
  3. अनुच्छेद 124(4) सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
  4. अनुच्छेद 218, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने से संबंधित है।
  5. न्यायाधीश को केवल सिद्ध दुराचार या अयोग्यता के आधार पर हटाया जा सकता है
  6. हटाने की प्रक्रिया में दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।
  7. यदि संसद भंग हो जाती है, तो महाभियोग प्रस्ताव स्वतः समाप्त हो जाता है
  8. 1995 में न्यायमूर्ति .एम. भट्टाचार्य पर लगे आरोपों के बाद आंतरिक सुधारों की शुरुआत हुई।
  9. सी. रविचंद्रन अय्यर मामला (1997) के निर्णय ने इनहाउस जांच प्रणाली की नींव रखी।
  10. औपचारिक इनहाउस आचार संहिता प्रणाली दिसंबर 1999 में अपनाई गई
  11. यह प्रणाली मध्यम स्तर के न्यायिक दुराचार को बिना महाभियोग के निपटाने के लिए बनाई गई थी।
  12. तीन न्यायाधीशों की समिति, CJI के निर्देश पर गंभीर शिकायतों की जांच करती है।
  13. न्यायाधीश को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के तहत अपना पक्ष रखने का अधिकार होता है।
  14. यदि आरोप प्रमाणित हों, तो CJI इस्तीफा देने या महाभियोग की सिफारिश कर सकते हैं।
  15. पहली आचार संहिता समिति में न्यायमूर्ति एस.सी. अग्रवाल, .एस. आनंद और एस.पी. भरूचा शामिल थे।
  16. इन-हाउस प्रणाली न्यायिक स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाए बिना जवाबदेही सुनिश्चित करती है।
  17. न्यायमूर्ति वर्मा का मामला, इस आंतरिक प्रणाली के सक्रिय उपयोग को दर्शाता है।
  18. यह व्यवस्था न्यायिक अखंडता में जनता का विश्वास बनाए रखने में सहायक है।
  19. भारत की न्यायपालिका अनुशासनात्मक नियंत्रण और संवैधानिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाती है।
  20. ऐसी जांचें न्यायपालिका की विश्वसनीयता को सुरक्षित रखती हैं और लोकतांत्रिक विश्वास को बनाए रखती हैं

 

Q1. भारत में किसी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाने का प्रावधान किस अनुच्छेद के तहत है?


Q2. न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना के बाद क्या बरामद हुआ?


Q3. न्यायिक नैतिकता के लिए औपचारिक इन-हाउस प्रक्रिया की शुरुआत कब हुई थी?


Q4. संसद में किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए क्या आवश्यक होता है?


Q5. किस ऐतिहासिक मामले ने न्यायिक दुराचार से निपटने में सुधार की दिशा में मार्ग प्रशस्त किया?


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