न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और अग्निकांड की जांच
22 मार्च 2025 को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ एक गोपनीय जांच का आदेश दिया। यह आदेश 14 मार्च को उनके सरकारी आवास में लगी आग के बाद दिया गया, जहां जांचकर्ताओं ने कथित तौर पर बड़ी मात्रा में अघोषित नकदी बरामद की। यह जांच भारत के संविधान के तहत महाभियोग नहीं है, बल्कि न्यायपालिका की आंतरिक नैतिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जो उन गंभीर मामलों से निपटती है जो औपचारिक निष्कासन की श्रेणी में नहीं आते।
महाभियोग प्रक्रिया: संविधान का अनुच्छेद 124(4)
भारत के संविधान के तहत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की एक कठोर प्रक्रिया निर्धारित है। अनुच्छेद 124(4) (सुप्रीम कोर्ट) और अनुच्छेद 218 (हाई कोर्ट) के अनुसार, न्यायाधीश को केवल सिद्ध दुराचार या अक्षमता के मामलों में ही हटाया जा सकता है। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत—मौजूद और मतदान कर रहे सदस्यों के दो-तिहाई और सदन की कुल संख्या के 50% से अधिक का समर्थन आवश्यक होता है। यदि संसद इस बीच भंग हो जाती है, तो प्रस्ताव स्वतः समाप्त हो जाता है।
आंतरिक जांच प्रक्रिया: मध्य–स्तर की अनुशासनिक प्रणाली
हर प्रकार के कदाचार के लिए महाभियोग आवश्यक नहीं होता। 1995 में बंबई उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य पर अनुचित आचरण के आरोप लगे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में सी. रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति भट्टाचार्य मामले में एक आंतरिक जांच प्रणाली की सिफारिश की। इसके आधार पर 1999 में एक औपचारिक नैतिकता प्रोटोकॉल स्थापित किया गया, जिससे न्यायाधीशों को संवैधानिक प्रक्रिया के बिना भी जवाबदेह ठहराया जा सके।
कैसे कार्य करती है आंतरिक नैतिकता प्रणाली
इस प्रणाली की शुरुआत भारत के मुख्य न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या राष्ट्रपति द्वारा लिखित शिकायत से होती है। यदि प्रारंभिक जांच में मामला गंभीर प्रतीत होता है, तो मुख्य न्यायाधीश तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की एक समिति गठित करते हैं (आमतौर पर अन्य उच्च न्यायालयों से)। आरोपी न्यायाधीश को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के तहत जवाब देने का अवसर दिया जाता है। समिति की रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश को सौंपी जाती है, जो न्यायाधीश को इस्तीफा देने की सलाह दे सकते हैं। यदि वह इनकार करता है, तो मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति से महाभियोग की सिफारिश कर सकते हैं।
न्यायिक स्वतंत्रता बनाम जवाबदेही: संतुलन की आवश्यकता
यह आंतरिक प्रणाली न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कायम रखते हुए समय पर जवाबदेही सुनिश्चित करती है। यह प्रणाली न्यायपालिका की साख को बचाए रखते हुए अनुचित व्यवहार पर प्रभावी कार्रवाई का मार्ग प्रदान करती है। न्यायमूर्ति वर्मा जैसे मामलों में यह दिखाता है कि जनता की नजरों में न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता और नैतिकता कायम है।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान सारांश (STATIC GK SNAPSHOT – हिंदी में)
विषय | विवरण |
सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश निष्कासन अनुच्छेद | अनुच्छेद 124(4) |
हाई कोर्ट न्यायाधीश निष्कासन अनुच्छेद | अनुच्छेद 218 |
निष्कासन के वैध आधार | सिद्ध दुराचार या अक्षमता |
संसद में आवश्यक बहुमत | उपस्थित और मतदान करने वालों का दो-तिहाई + कुल संख्या का 50% |
प्रमुख संबंधित मामला | सी. रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य (1995) |
औपचारिक नैतिक प्रक्रिया की शुरुआत | दिसंबर 1999 |
प्रारंभिक समिति के सदस्य | एस.सी. अग्रवाल, ए.एस. आनंद, एस.पी. भरूचा, पी.एस. मिश्रा, डी.पी. मोहापात्र |
2025 की मुख्य घटना | न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की नकद बरामदगी से जुड़ी जांच |