भारत की हरित विमानन यात्रा की शुरुआत
भारत ने अब ई–हंसा इलेक्ट्रिक ट्रेनर एयरक्राफ्ट के लॉन्च के साथ हरित और आत्मनिर्भर विमानन युग में प्रवेश कर लिया है। सीएसआईआर–नेशनल एयरोस्पेस लैब्स (NAL), बेंगलुरु द्वारा पूरी तरह से विकसित यह दो सीटों वाला विमान केवल तकनीकी उड़ान नहीं है, बल्कि यह टिकाऊ विकास, नवाचार और विज्ञान–नीति का प्रतीक है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महंगे और रखरखाव भारी विमानों के मुकाबले, ई-हंसा की कीमत लगभग ₹2 करोड़ रखी गई है—जो कि 50% सस्ती है। यह विशेष रूप से भारत के फ्लाइट स्कूलों और ट्रेनिंग अकादमियों के लिए एक क्रांतिकारी विकल्प बनता है।
ई-हंसा का डिज़ाइन और लक्ष्य
ई–हंसा, HANSA-3 (NG) कार्यक्रम का हिस्सा है और यह शून्य उत्सर्जन और मूक संचालन जैसी विशेषताओं के कारण पर्यावरण के अनुकूल है। ग्रीन एविएशन इंडिया 2025 के तहत इसे विकसित किया गया है और यह जलवायु लक्ष्यों की दिशा में भारत की प्रतिबद्धता दर्शाता है। इसके साथ ही यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ का भी प्रतीक है, क्योंकि यह पूरी तरह भारतीय इंजीनियरों और अनुसंधान संस्थानों पर आधारित है।
एक महत्वपूर्ण तथ्य: CSIR-NAL की स्थापना 1959 में हुई थी, और तब से यह कई स्वदेशी विमान परियोजनाओं का नेतृत्व कर चुका है।
प्रौद्योगिकी साझेदारी और विज्ञान-आधारित योजना
सरकार अब विज्ञान में सार्वजनिक–निजी भागीदारी (Public-Private Partnership) को बढ़ावा दे रही है। NRDC, BIRAC और IN-SPACe जैसे मॉडल को अनुसरण करने के लिए निर्देशित किया जा रहा है ताकि स्टार्टअप्स और निजी कंपनियों को विज्ञान आधारित नवाचारों में भागीदार बनाया जा सके। साथ ही, देश भर में National Technology Transfer Offices (NTTOs) की स्थापना की योजना है, जिससे लैब से उत्पादों को बाज़ार तक तेजी से लाया जा सकेगा।
इसरो की सफलता और अंतरराष्ट्रीय पहचान
जहां ई-हंसा ने विमानन क्षेत्र में ध्यान खींचा, वहीं ISRO ने SPADEX मिशन की सफलता से अपनी डॉकिंग और अनडॉकिंग तकनीक का प्रदर्शन किया। यह मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान के लिए आवश्यक तकनीक है। साथ ही, भारत का Axiom Space के साथ सहयोग भी जारी है। ग्रुप कैप्टन सुभाष शुक्ला द्वारा अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर 7 माइक्रोग्रैविटी प्रयोग किए जाने हैं—जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।
साझा विज्ञान के लिए साझा प्रयास
भारत अब विज्ञान नीति में Whole-of-Government और Whole-of-Science दृष्टिकोण अपना रहा है। ISRO, CSIR, DBT और MoES जैसे प्रमुख विभागों को एक मंच पर लाकर चिंतन शिविर 2025 के माध्यम से समन्वित विज्ञान योजना को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, स्विट्ज़रलैंड और इटली जैसे देशों की भागीदारी से Global Science Talent Bridge के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान आदान–प्रदान की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
विमान का नाम | ई-हंसा (Electric Hansa) |
विकसित किया गया संस्था | CSIR-नेशनल एयरोस्पेस लैब्स, बेंगलुरु |
विमान प्रकार | दो सीटों वाला इलेक्ट्रिक ट्रेनर विमान |
अनुमानित लागत | ₹2 करोड़ (आयात से 50% सस्ता) |
पहल | ग्रीन एविएशन इंडिया 2025 |
संबद्ध मंत्री | डॉ. जितेंद्र सिंह |
इसरो मिशन | SPADEX मिशन |
वैश्विक सहयोग | Axiom Space मिशन |
विज्ञान नीति | पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी, चिंतन शिविर |
Static GK तथ्य | CSIR-NAL की स्थापना 1959 में हुई थी |