अंतरिक्ष जिम्मेदारी का एक नया युग
भारत और जापान अब एक साथ मिलकर एक अभूतपूर्व अंतरिक्ष मिशन की ओर बढ़ रहे हैं—लेकिन इस बार मकसद कोई नया सैटेलाइट लॉन्च करना नहीं है। बल्कि वे अब अंतरिक्ष में सफाई अभियान शुरू कर रहे हैं। पृथ्वी की कक्षा में 27,000 से अधिक अंतरिक्ष मलबे के टुकड़े तैर रहे हैं, और दोनों देशों ने समझ लिया है कि अगर अभी कदम नहीं उठाए गए, तो अंतरिक्ष बहुत खतरनाक हो सकता है।
अंतरिक्ष मलबा: समस्या क्या है?
हर रॉकेट लॉन्च के बाद कुछ टुकड़े पीछे छूट जाते हैं—पुराने सैटेलाइट, मेटल के टुकड़े, बूस्टर के अवशेष। सुनने में ये मामूली लग सकते हैं, लेकिन 28,000 किमी/घंटा की रफ्तार से उड़ता एक बोल्ट भी एक काम कर रहे सैटेलाइट को नष्ट कर सकता है। सबसे बड़ा डर: Kessler Syndrome, यानी मलबे के टकराव की श्रृंखला, जिससे पूरी पृथ्वी की कक्षा कई वर्षों तक अव्यवस्थित हो सकती है।
भारत-जापान समाधान: लेज़र और रोबोटिक सिस्टम
इस परियोजना में दो कंपनियाँ प्रमुख हैं—Orbital Lasers (टोक्यो स्थित स्टार्टअप) और InspeCity (भारतीय स्पेस रोबोटिक्स कंपनी)। ये दोनों मिलकर एक ऐसी प्रणाली बना रहे हैं जो नियंत्रित लेज़र बीम्स के माध्यम से मलबे को धीमा करके कक्षा से बाहर धकेलेगी। लेज़र सतह को वाष्पित करेगा, जिससे मलबा पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सुरक्षित रूप से जलकर नष्ट हो सकेगा।
भविष्य के लिए तैयारी: 2027 से पहले परीक्षण
यह सिर्फ कागजी योजना नहीं है। Orbital Lasers ने घोषणा की है कि वे 2027 से पहले इस तकनीक का स्पेस में परीक्षण करेंगे। वहीं, InspeCity इस मिशन के रोबोटिक पक्ष पर काम कर रहा है—ऐसे उपकरण जो सैटेलाइट को पकड़ सकें, हिला सकें, सुधार सकें, या ईंधन भर सकें। इसे आप अंतरिक्ष के सफाईकर्मी और तकनीशियनों की टीम की शुरुआत कह सकते हैं।
केवल मलबा हटाना ही नहीं—बहु-उपयोगी तकनीक
इस सहयोग की खास बात यह है कि इसका उपयोग सिर्फ मलबा हटाने तक सीमित नहीं है। पुराने सैटेलाइट्स की मरम्मत या री–फ्यूलिंग में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक पुराना वेदर सैटेलाइट जिसे रिटायर किया जाना था, अब इस तकनीक से फिर से उपयोगी बनाया जा सकता है, जिससे करोड़ों की बचत होगी।
भारत–जापान: तेज़ी से बढ़ती अंतरिक्ष साझेदारी
ISRO (भारत) और JAXA (जापान) दोनों ही चंद्र अभियानों से लेकर जलवायु निगरानी तक अनेक क्षेत्रों में सक्रिय हैं। ऐसी साझेदारियाँ न केवल दोनों देशों को लाभ पहुंचाती हैं बल्कि दुनिया के लिए एक साझा मानक और सहयोग मॉडल भी प्रस्तुत करती हैं।
वैश्विक समस्या के लिए वैश्विक सोच
अंतरिक्ष मलबा किसी एक देश की संपत्ति नहीं होता। यह पूरी दुनिया के GPS, इंटरनेट और रक्षा उपग्रहों को खतरे में डाल सकता है। भारत और जापान की यह पहल आगे चलकर अंतरिक्ष सफाई के लिए वैश्विक कानूनों और नियमों की नींव बन सकती है।
STATIC GK SNAPSHOT FOR COMPETITIVE EXAMS
विषय | विवरण |
सहयोगी संस्थाएँ | InspeCity (भारत) + Orbital Lasers (जापान) |
उद्देश्य | लेज़र सैटेलाइट्स से अंतरिक्ष मलबा हटाना |
तकनीक | लेज़र वाष्पीकरण + रोबोटिक डी–ऑर्बिटिंग |
परीक्षण लक्ष्य | 2027 से पहले |
संबंधित एजेंसियाँ | ISRO (भारत), JAXA (जापान) |
वर्तमान मलबे की संख्या | 27,000+ वस्तुएँ (NASA डेटा) |
प्रमुख खतरा | Kessler Syndrome – मलबे से श्रृंखलाबद्ध टकराव का जोखिम |