उत्सर्जन में बढ़ोतरी
भारत का वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में योगदान तेजी से बढ़ा है, जो 1990 में 2.5% से बढ़कर 2023 में लगभग 8.2% हो गया। यह वृद्धि औद्योगिक विस्तार और बढ़ती ऊर्जा मांग से जुड़ी है। फिर भी, प्रति व्यक्ति उत्सर्जन विश्व औसत से कम है, जो विकसित देशों की तुलना में भारत के अपेक्षाकृत छोटे कार्बन फुटप्रिंट को दर्शाता है।
Static GK तथ्य: भारत, चीन और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
जलवायु परिवर्तन और आर्थिक जोखिम
अध्ययन चेतावनी देता है कि यदि जलवायु कार्रवाई में देरी हुई, तो भारत को गंभीर आर्थिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। 2030 तक प्रति व्यक्ति GDP में लगभग 2% की गिरावट आ सकती है और 2047 तक यह नुकसान 3% से 9% तक पहुँच सकता है। चरम ताप और अनियमित वर्षा जैसी जलवायु बाधाएँ कृषि, उद्योग और उत्पादकता को कमजोर कर सकती हैं।
Static GK तथ्य: भारत ने 2008 में राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) शुरू की थी।
ऊर्जा संक्रमण के लिए वित्तीय आवश्यकता
CSEP के अनुसार, भारत को बिजली, परिवहन, इस्पात और सीमेंट जैसे क्षेत्रों में उत्सर्जन कम करने के लिए हर साल लगभग 1.3% GDP आवंटित करनी होगी। ये क्षेत्र हार्ड–टू–अबेट माने जाते हैं क्योंकि ये जीवाश्म ईंधनों और ऊर्जा-गहन प्रक्रियाओं पर निर्भर हैं। इतने बड़े पैमाने पर वित्त जुटाने के लिए सरकार, निजी निवेशकों और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों की संयुक्त भागीदारी जरूरी होगी।
Static GK टिप: 2023 तक भारत की नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित क्षमता 170 GW से अधिक हो चुकी है।
सार्वजनिक निवेश और अवसंरचना प्रोत्साहन
रिपोर्ट में यह रेखांकित किया गया है कि सरकार को ईवी चार्जिंग नेटवर्क, उन्नत भंडारण समाधान, स्मार्ट ग्रिड और हाइड्रो-पंप प्रोजेक्ट्स जैसे क्षेत्रों में नेतृत्व करना होगा। राज्य-नेतृत्व वाली पहलें जोखिम कम कर सकती हैं और कम-कार्बन प्रौद्योगिकियों में निजी भागीदारी के लिए रास्ता बना सकती हैं।
निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना
ग्रीन मोबिलिटी, लो-कार्बन सीमेंट उत्पादन और स्वच्छ स्टील निर्माण को बढ़ाने के लिए निजी पूंजी आकर्षित करना महत्वपूर्ण है। निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन, सब्सिडी और अनुकूल नियामक ढाँचे आवश्यक होंगे।
उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिए वैश्विक सहयोग
CSEP ने यह भी जोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारी, विशेषकर कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) जैसी तकनीकों के हस्तांतरण में अहम है। वैश्विक संस्थानों और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ सहयोग भारत के लिए डीकार्बोनाइजेशन को तेज और किफायती बना सकता है।
Static GK तथ्य: UNFCCC की स्थापना 1992 में रियो डी जेनेरियो में पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) में हुई थी।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
रिपोर्ट का शीर्षक | भारत की जलवायु वित्त आवश्यकताएँ |
प्रकाशित करने वाला | सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस (CSEP) |
फोकस सेक्टर | बिजली, सड़क परिवहन, इस्पात, सीमेंट |
1990 में भारत का कार्बन उत्सर्जन हिस्सा | 2.5% |
2023 में भारत का कार्बन उत्सर्जन हिस्सा | 8.2% |
2030 तक प्रति व्यक्ति GDP नुकसान | 2% |
2047 तक प्रति व्यक्ति GDP नुकसान | 3–9% |
डीकार्बोनाइजेशन के लिए वार्षिक वित्त | GDP का 1.3% |
सरकार की प्रमुख भूमिका | अवसंरचना, R&D, EV चार्जिंग, ग्रिड प्रबंधन |
अंतरराष्ट्रीय सहयोग का मुख्य क्षेत्र | कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) |