कृषि सहयोग में ऐतिहासिक संबंध
भारत और अफ्रीका के बीच कृषि विकास में दीर्घकालिक साझेदारी रही है। भारत ने दशकों से अफ्रीकी देशों को सॉफ्ट लोन, तकनीकी सहायता और नीतिगत मार्गदर्शन प्रदान किया है। इसका उद्देश्य है फसल उत्पादकता में सुधार, क्षमता निर्माण और सतत कृषि पद्धतियों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
Static GK तथ्य: भारत ने अफ्रीकी देशों के साथ 180 से अधिक द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें कृषि और बुनियादी ढांचे पर विशेष जोर रहा है।
कृषि में साझा चुनौतियां
भारत और अफ्रीका दोनों को जलवायु परिवर्तन, अनिश्चित मौसम और जल संकट जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अफ्रीका में 60% से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, लेकिन इसका GDP में योगदान 20% से कम है। यह असंतुलन बुनियादी ढांचे की कमी, बाजार डेटा की अनुपलब्धता, और लघु किसानों को वित्तीय समर्थन की कमी को दर्शाता है।
फसल कटाई के बाद भंडारण और परिवहन सुविधाओं की कमी भी खाद्य आपूर्ति और लाभ को प्रभावित करती है।
खाद्य आयात पर बढ़ती निर्भरता
अफ्रीका का वार्षिक खाद्य आयात बिल $50 बिलियन को पार कर चुका है। यह घरेलू उत्पादन की कमी और COVID-19 एवं रूस–यूक्रेन युद्ध जैसे वैश्विक संकटों के कारण हुआ है। इससे महाद्वीप मुद्रास्फीति और खाद्य असुरक्षा के जोखिम में है।
Static GK तथ्य: अफ्रीका विश्व की 12% जनसंख्या का घर है, लेकिन वैश्विक कृषि व्यापार में इसका हिस्सा केवल 3% है।
अफ्रीकी नेतृत्व में खाद्य बदलाव की पहलें
अफ्रीकी संघ और अफ्रीकी विकास बैंक जैसे संगठन कई प्रमुख पहलें चला रहे हैं:
फीड अफ्रीका: कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाना।
CAADP: सतत कृषि, अनुसंधान, और मूल्य श्रृंखला में सुधार।
इन पहलों का उद्देश्य है ग्रामीण आय बढ़ाना और खाद्य आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना।
भारत का निवेश और तकनीकी समर्थन
भारत अफ्रीका में ड्रिप सिंचाई, संकर बीज, और कृषि मशीनरी जैसी तकनीकों का स्थानांतरण कर रहा है। साथ ही, कोल्ड चेन और भंडारण सुविधाओं के लिए वित्तीय सहायता भी दी जा रही है। भारत ने अंगोला और ज़िम्बाब्वे जैसे देशों में कृषि प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किए हैं।
Static GK टिप: भारत के EXIM बैंक ने अफ्रीका को $12 बिलियन से अधिक की Lines of Credit दी है, जिनमें अधिकांश कृषि से संबंधित हैं।
भारतीय निजी क्षेत्र की भूमिका
ETG और ZimGold जैसी कंपनियां अफ्रीका में फूड प्रोसेसिंग और एग्री–लॉजिस्टिक्स में निवेश कर रही हैं। इससे स्थानीय रोजगार बढ़ता है और आयात पर निर्भरता कम होती है। निजी कंपनियां अफ्रीकी किसानों को औपचारिक आपूर्ति श्रृंखला से जोड़ने में भी मदद कर रही हैं।
जमीनी सशक्तिकरण और खाद्य सहायता
भारत खाद्य संकट के समय अफ्रीका को चावल, गेहूं और दाल जैसे उत्पादों की मानवीय सहायता देता है। SEWA (स्व–रोजगार महिला संघ) जैसे एनजीओ केन्या और इथियोपिया में महिलाओं को कृषि प्रशिक्षण और आत्मनिर्भरता प्रदान करते हैं।
भविष्य की दिशा
2030 तक अफ्रीका का खाद्य बाजार $1 ट्रिलियन तक पहुंचने की संभावना है। भारत अपने लघु कृषक अनुभव, फसल बीमा और डिजिटल एग्री–प्लेटफॉर्म के जरिए इसमें बड़ा योगदान दे सकता है।
दक्षिण–दक्षिण सहयोग और सार्वजनिक–निजी भागीदारी से एक लचीला और खाद्य–सुरक्षित भविष्य संभव होगा।
Static Usthadian Current Affairs Table (Hindi)
विषय | विवरण |
अफ्रीका के वार्षिक खाद्य आयात | लगभग $50 बिलियन |
प्रमुख अफ्रीकी कृषि पहल | फीड अफ्रीका |
भारत द्वारा समर्थित देश | अंगोला, ज़िम्बाब्वे |
भारत की कृषि सहायता विधि | सॉफ्ट लोन, प्रशिक्षण, बुनियादी ढांचा |
अफ्रीका में प्रमुख भारतीय कंपनियां | ETG, ZimGold |
महिला सशक्तिकरण NGO | सेवा (SEWA) |
अफ्रीका की कृषि कार्यबल | कुल जनसंख्या का 60% से अधिक |
भारत का वित्तीय समर्थन स्रोत | EXIM बैंक |
2030 तक खाद्य बाजार | अनुमानित $1 ट्रिलियन |
प्रमुख चुनौतियां | जलवायु परिवर्तन, फसल बाद नुकसान, कमजोर बुनियादी ढांचा |