आरबीआई ने तरलता बढ़ाने के लिए क्या किया?
मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) ने 2025 में दो बड़े फैसले लिए जिससे बैंकिंग प्रणाली में तरलता (liquidity) बढ़ेगी। पहला, कैश रिज़र्व रेशियो (CRR) में 100 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की गई। दूसरा, रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट्स की कमी की गई। इससे बैंकों को अधिक पैसा उधार देने का अवसर मिलेगा, जो हाउसिंग, स्टार्टअप्स, और क्विक कॉमर्स जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देगा।
सीआरआर क्या है और इसका क्या असर पड़ता है?
कैश रिज़र्व अनुपात (CRR) वह हिस्सा है जो हर बैंक को अपनी जमा राशि में से आरबीआई के पास नगद रूप में रखना होता है। इस धन को न तो बैंक उधार दे सकते हैं, न ही उस पर ब्याज मिलता है। इसलिए, जब CRR घटता है तो बैंकों के पास अधिक धन उधार देने के लिए उपलब्ध होता है — जिससे अर्थव्यवस्था में पैसा आता है।
इसे ऐसे समझें — अगर आपकी बचत का एक बड़ा हिस्सा लॉक होकर रखा गया है, और अब उसे कम लॉक करना है, तो आपके पास खर्च या निवेश के लिए ज्यादा पैसा होगा।
रेपो रेट को आसान भाषा में समझिए
रेपो रेट वह दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को उधार देती है, बदले में बैंक सरकारी प्रतिभूतियाँ (bonds) गिरवी रखते हैं। जब यह दर कम होती है, तो बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता हो जाता है और वे भी ग्राहकों को कम ब्याज दरों पर लोन देते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति होम लोन लेने की योजना बना रहा है, तो अब उसे सस्ती दर पर लोन मिल सकता है।
एमपीसी की संरचना और कानूनी आधार
मौद्रिक नीति समिति (MPC) की स्थापना आरबीआई अधिनियम 1934 की धारा 45ZB (संशोधित 2016) के तहत की गई है। इसमें कुल 6 सदस्य होते हैं — 3 आरबीआई से और 3 केंद्र सरकार द्वारा नामित।
आरबीआई गवर्नर इस समिति के अध्यक्ष होते हैं। वर्ष में कम से कम 4 बैठकें आवश्यक होती हैं, और क्वोरम के लिए न्यूनतम 4 सदस्य होने चाहिए। यह ढांचा संतुलित और सामूहिक निर्णय लेने को सुनिश्चित करता है।
आरबीआई द्वारा उपयोग किए गए तरलता उपकरण
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) बाजार में तरलता को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय करता है:
- LAF (लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी): रेपो और रिवर्स रेपो के ज़रिए रोज़ाना की तरलता को संतुलित करता है।
- SLR (वैधानिक तरलता अनुपात): बैंक को एक निश्चित भाग सोने, नकद, या सरकारी बॉन्ड में रखना होता है।
- SDF (स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी): बिना प्रतिभूति दिए बैंकों से अधिशेष धन को अवशोषित करता है।
- MSF (मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी): आपातकाल में बैंक रातभर के लिए उधार ले सकते हैं।
- OMO (ओपन मार्केट ऑपरेशन्स): सरकारी बॉन्ड खरीदकर या बेचकर अर्थव्यवस्था से पैसा जोड़ना या निकालना।
असली असर किन क्षेत्रों पर?
जैसे-जैसे बैंकों के पास अधिक पैसा उपलब्ध होगा, वे तेज़ी से बढ़ रहे क्विक कॉमर्स क्षेत्र को बेहतर फंडिंग दे सकेंगे। उदाहरण के लिए, जो कंपनियाँ 10 मिनट में ग्रॉसरी डिलीवरी करती हैं, वे वर्किंग कैपिटल पर निर्भर रहती हैं। अब उन्हें विस्तार और छूट देने में आसानी होगी।
इसके साथ-साथ, घरेलू उपभोग और व्यापार निवेश भी बढ़ेगा क्योंकि ब्याज दरें कम होंगी।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | मुख्य तथ्य |
CRR | 2025 में 100 बेसिस पॉइंट्स घटाया गया |
रेपो रेट | 50 बेसिस पॉइंट्स की कटौती |
MPC कानूनी आधार | आरबीआई अधिनियम 1934 की धारा 45ZB |
MPC संरचना | 6 सदस्य (3 आरबीआई + 3 सरकार द्वारा नियुक्त), अध्यक्ष – आरबीआई गवर्नर |
MPC बैठक | साल में कम से कम 4 बार, क्वोरम – 4 सदस्य |
SLR | नकद/सोना/सरकारी प्रतिभूतियों में जमा |
LAF | रेपो/रिवर्स रेपो से दैनिक तरलता प्रबंधन |
SDF | बिना प्रतिभूति अधिशेष राशि अवशोषण |
MSF | आपातकालीन ऋण सुविधा (ओवरनाइट) |
OMO | सरकारी बॉन्ड के ज़रिए तरलता प्रबंधन |
आरबीआई स्थापना | भारत का केंद्रीय बैंक – 1935 में स्थापित |
क्विक कॉमर्स | तरलता नीति से लाभान्वित तेज़ी से बढ़ता क्षेत्र |