पूर्वी यूरोप में उभरती सुरक्षा चिंताएं
पोलैंड, लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया अब ओटावा संधि से बाहर निकलने पर विचार कर रहे हैं। यह संधि एंटी–पर्सनल लैंडमाइन्स पर वैश्विक प्रतिबंध लगाती है। यह कदम यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद क्षेत्र में बढ़ते खतरे के बीच उठाया जा रहा है। इन देशों का कहना है कि माइन्स उनके राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे का अनिवार्य हिस्सा हैं, विशेषकर जब वे एक शक्तिशाली शत्रु से घिरे हुए हैं। यह निर्णय मानवीय मूल्यों से हटकर सुरक्षा प्राथमिकताओं की ओर झुकाव दर्शाता है।
ओटावा संधि वास्तव में क्या प्रतिबंधित करती है
1997 में हस्ताक्षरित और 1999 में लागू हुई ओटावा संधि एंटी-पर्सनल माइन्स के प्रयोग, निर्माण, भंडारण और स्थानांतरण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाती है। यह संधि माइन्स को हटाने और पीड़ितों को सहायता देने की भी मांग करती है। अब तक 160 से अधिक देश इसका हिस्सा बन चुके हैं, लेकिन अमेरिका, चीन, भारत, रूस और पाकिस्तान जैसे प्रमुख सैन्य देश इसमें शामिल नहीं हैं। इससे संधि की वैश्विक प्रभावशीलता कमजोर होती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां संघर्ष अधिक होता है।
कानूनी पेचिदगियां और विवाद
हालांकि इस संधि का उद्देश्य मानवीय पीड़ा को कम करना है, लेकिन अनुच्छेद 20 यह कहता है कि कोई भी देश युद्धकाल के दौरान इससे नहीं हट सकता। यह प्रावधान यूक्रेन जैसे देशों के लिए मुश्किल पैदा करता है, जो अब भी संधि में शामिल है लेकिन अमेरिका जैसे सहयोगियों से माइन्स प्राप्त कर चुका है। यह स्थिति नीतिगत विरोधाभास को दर्शाती है—देश सिद्धांत रूप में संधि का समर्थन करते हैं, पर संकट में इसे दरकिनार कर देते हैं।
दुनिया का सबसे अधिक माइन्स वाला देश: यूक्रेन
संयुक्त राष्ट्र के ताजा अनुमान के अनुसार, 2025 में यूक्रेन दुनिया का सबसे अधिक माइन्स से भरा हुआ देश बन गया है, जो अफगानिस्तान जैसे पुराने संघर्ष क्षेत्रों से भी आगे है। माइन्स नागरिकों को खतरे में डालती हैं, खेतों को बेकार कर देती हैं और युद्ध खत्म होने के बाद भी सालों तक जानलेवा बनी रहती हैं। कई यूक्रेनी गाँवों में लोग पानी लाने या स्कूल जाने तक से डरते हैं।
वैश्विक प्रभाव और नीतिगत बदलाव
यदि पोलैंड और बाल्टिक देश इस संधि से हटते हैं, तो यह एक डोमिनो प्रभाव उत्पन्न कर सकता है, जिससे अन्य छोटे और असुरक्षित देश भी अस्त्र नियंत्रण संधियों की पुनर्विचार में लग सकते हैं। यदि अधिक देश मानवीय प्रतिबद्धताओं की तुलना में सैन्य तत्परता को प्राथमिकता देने लगें, तो यह वैश्विक निरस्त्रीकरण प्रयासों को कमजोर कर सकता है। यह स्थिति एक केंद्रीय प्रश्न उठाती है—क्या राष्ट्रीय सुरक्षा की ज़रूरतें, वैश्विक शांति प्रतिबद्धताओं से अधिक अहम हैं?
स्थैतिक सामान्य ज्ञान सारांश (STATIC GK SNAPSHOT – हिंदी में)
विषय | विवरण |
ओटावा संधि का नाम | माइन्स प्रतिबंध संधि (1997) |
प्रभावी होने की तिथि | 1999 |
सदस्य देशों की संख्या (2025) | 164 देश |
हस्ताक्षर न करने वाले देश | अमेरिका, रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान |
प्रमुख प्रावधान | एंटी-पर्सनल माइन्स का प्रयोग, निर्माण, भंडारण और स्थानांतरण पर प्रतिबंध |
अनुच्छेद 20 का सार | युद्धकाल के दौरान संधि से हटने की अनुमति नहीं |
2025 में सबसे अधिक माइन्स वाला देश | यूक्रेन |
भारत की स्थिति | संधि का हिस्सा नहीं है |
संचालन निकाय | इंटरनेशनल कैंपेन टू बैन लैंडमाइन्स (ICBL), संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित |