पर्यावरणीय प्रवाह की परिभाषा और महत्व
पर्यावरणीय प्रवाह (Environmental Flow) का आशय केवल नदी में पानी की मात्रा से नहीं है, बल्कि उस प्राकृतिक प्रवाह प्रणाली से है जो पारिस्थितिक तंत्र और मानवीय आजीविका को बनाए रखती है। इसमें प्रवाह की मात्रा, समय और गुणवत्ता सभी महत्वपूर्ण हैं। गंगा और उसकी सहायक नदियाँ बांध निर्माण, शहरी प्रदूषण और नदी तट अतिक्रमण जैसे मानवीय हस्तक्षेपों के कारण गंभीर पारिस्थितिक दबाव झेल रही हैं।
केंद्र सरकार की पहल
हाल ही में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने गंगा बेसिन में E-flow क्रियान्वयन की समीक्षा हेतु उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की। इसमें न्यूनतम ई–फ्लो मानदंडों को लागू करने पर जोर दिया गया ताकि पारिस्थितिकीय विनाश को रोका जा सके। बैठक में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, सिंचाई विभाग, और केंद्रीय जल आयोग (CWC) के बीच समन्वय को विशेष रूप से रेखांकित किया गया, जिससे शुष्क मौसम में भी नदी में न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित हो सके।
क्यों आवश्यक है ई-फ्लो
E-flow के बिना नदी जैव विविधता, आर्द्रभूमियाँ, और मत्स्य संसाधन प्रभावित होते हैं। इससे नदियों की प्राकृतिक स्व–सफाई क्षमता घट जाती है और वे प्रदूषण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। ई-फ्लो कृषि चक्र, तटवर्ती मिट्टी की नमी, और आसपास के पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में भी सहायक होता है। यह संपूर्ण नदी पारिस्थितिकी की अखंडता के लिए आवश्यक है।
Static GK Fact: भारत में 20 से अधिक प्रमुख नदी घाटियाँ हैं, जिनमें गंगा–ब्रह्मपुत्र प्रणाली सबसे बड़ी है।
निगरानी और अनुपालन
नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG), E-flow अनुपालन की प्रमुख निगरानी संस्था है। इसमें रिमोट सेंसिंग, टेलीमेट्री, और हाइड्रोलॉजिकल मॉडलिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। 2018 में केंद्रीय जल आयोग ने गंगा के विभिन्न खंडों के लिए न्यूनतम प्रवाह (cumecs में) निर्धारित किए थे, जिन्हें सालभर बनाए रखना अनिवार्य है।
Static GK Tip: गंगा भारत की सबसे लंबी नदी है, जिसकी लंबाई 2,500 किमी से अधिक है और यह देश की लगभग 40% जनसंख्या को पोषण देती है।
भविष्य की दिशा
सरकार अब इस रणनीति को यमुना, कृष्णा, गोदावरी जैसी अन्य नदियों पर भी लागू करने की योजना बना रही है। साथ ही हाइड्रोपावर और सिंचाई परियोजनाओं में भी ई-फ्लो की अनिवार्यता पर ज़ोर दिया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, वैज्ञानिक बेसिन योजना और जनभागीदारी के ज़रिए ही इस नीति से दीर्घकालिक पारिस्थितिक लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
E-flow की परिभाषा | पारिस्थितिकी के लिए आवश्यक जल की मात्रा, समय, गुणवत्ता |
उत्तरदायी मंत्रालय | केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय |
प्रमुख नदी | गंगा नदी |
मुख्य निगरानी संस्था | केंद्रीय जल आयोग (CWC) |
सहायक मिशन | राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) |
ई-फ्लो मानदंड की शुरुआत वर्ष | 2018 |
कार्यक्रम का नाम | नमामि गंगे |
प्रमुख पारिस्थितिक लाभ | जैव विविधता संरक्षण, प्राकृतिक सफाई क्षमता |
उपयोग की गई तकनीक | रिमोट सेंसिंग, टेलीमेट्री, हाइड्रोलॉजिकल मॉडलिंग |
भविष्य की नदियाँ | यमुना, कृष्णा, गोदावरी |