तमिलनाडु ने अपने शिलालेखीय विरासत को किया सम्मानित
तमिलनाडु के वित्त मंत्री ने एक विशेष सांस्कृतिक आयोजन में ‘दिसैयायिरम’ नामक स्मृति ग्रंथ जारी किया, जो प्रसिद्ध तमिल शिलालेख विशेषज्ञ एस. राजगोपाल के जीवन और योगदान को समर्पित है। यह पुस्तक उनके दशकों लंबे कार्यों को दर्शाती है, जिसमें उन्होंने प्राचीन तमिल शिलालेखों को पढ़ने और दस्तावेज़ करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
राजगोपाल ने तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग में कार्य करते हुए, पूरे राज्य के हजारों शिलालेखों को विधिपूर्वक सूचीबद्ध किया।
स्मृति ग्रंथ – दिसैयायिरम
‘दिसैयायिरम’ केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक, भाषायी और पुरातात्त्विक दस्तावेज भी है। इसमें राजगोपाल के शोध निष्कर्ष और कार्यप्रणालियाँ संकलित की गई हैं, जो तमिल–ब्राह्मी, वट्टेलुट्टु और ग्रंथ जैसी प्राचीन लिपियों को समझने का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
इसका उद्देश्य उनकी विरासत को संरक्षित करना और शिलालेख अध्ययन तथा मंदिर स्थापत्य में नई पीढ़ी की रुचि को बढ़ावा देना है।
Static GK तथ्य: तमिल–ब्राह्मी लिपि, तमिल भाषा को लिखने के लिए प्रयोग की गई सबसे पुरानी लिपियों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति ईसा पूर्व 3वीं शताब्दी की मानी जाती है।
एस. राजगोपाल का तमिल शिलालेखों में योगदान
एस. राजगोपाल ने 30 से अधिक वर्षों तक तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग में सेवा दी। इस दौरान उन्होंने मंदिरों, वीर स्तंभों और तांबे की पट्टिकाओं में मौजूद हजारों शिलालेखों का व्यवस्थित दस्तावेजीकरण किया।
उन्होंने भारतभर के इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के साथ सहयोग कर कई प्रामाणिक शोध ग्रंथों का प्रकाशन किया, जो आज भी दक्षिण भारतीय इतिहास के मूल स्रोत माने जाते हैं।
Static GK तथ्य: तमिलनाडु में 70,000 से अधिक शिलालेख हैं, जो इसे भारत का सबसे समृद्ध शिलालेखीय राज्य बनाते हैं।
आज के समय में शिलालेख क्यों हैं महत्त्वपूर्ण
शिलालेख केवल पत्थरों पर लिखे शब्द नहीं हैं, वे प्राचीन प्रशासन, मंदिर दान, भूमि अनुदान और सामाजिक रीतियों के प्रमाण होते हैं।
राजगोपाल के कार्यों ने यह स्पष्ट किया कि शिलालेखों से भाषा विकास, राजनीतिक सीमाओं और चोल, पांड्य और पल्लव वंशों की संस्कृति को समझना संभव होता है।
Static GK टिप: चोल वंश, खासकर राजराजा चोल प्रथम के शासनकाल में, विशाल मंदिर निर्माण के लिए जाना जाता है, जिनमें तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर प्रमुख है।
राज्य द्वारा विरासत संरक्षण के प्रयास
‘दिसैयायिरम’ पुस्तक का विमोचन तमिलनाडु सरकार द्वारा प्राचीन तमिल शिलालेखों और ग्रंथों के डिजिटलीकरण एवं अनुवाद को बढ़ावा देने की ongoing पहल के तहत हुआ है।
अब कई शैक्षणिक संस्थान और सांस्कृतिक संगठन शिलालेख पर कोर्स और सार्वजनिक व्याख्यान आयोजित कर रहे हैं ताकि यह अध्ययन शैक्षणिक दायरे से बाहर आमजन तक पहुंच सके।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
स्मृति ग्रंथ का नाम | दिसैयायिरम |
विमोचित करने वाले | तमिलनाडु के वित्त मंत्री |
सम्मानित व्यक्ति | एस. राजगोपाल |
योगदान का क्षेत्र | शिलालेख और पुरातत्व |
सेवा विभाग | तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग |
दस्तावेजी कार्य | मंदिर, वीर स्तंभ और ताम्रपत्र शिलालेख |
प्रमुख लिपियाँ | तमिल-ब्राह्मी, वट्टेलुट्टु, ग्रंथ |
तमिलनाडु की स्थिति | भारत का सबसे अधिक शिलालेख वाला राज्य |
प्रमुख वंश | चोल, पांड्य, पल्लव |
पुस्तक का उद्देश्य | विरासत का सम्मान, शिलालेख अध्ययन को बढ़ावा |