कोर ग्रांट से परियोजना आधारित सहायता की ओर बदलाव
2025 में नीति आयोग ने राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषदों (State S&T Councils) के लिए कोर ग्रांट मॉडल को समाप्त कर परियोजना आधारित फंडिंग प्रणाली अपनाने की सिफारिश की है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य है:
- जवाबदेही बढ़ाना
- अनुसंधान के परिणामों में सुधार लाना
- विज्ञान के क्षेत्र में क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना
यह कदम उन चिंताओं के बाद आया है, जिनमें राज्य स्तर पर विज्ञान परिषदों के सीमित प्रभाव और राष्ट्रीय अनुसंधान में योगदान की कमी को रेखांकित किया गया।
राज्य विज्ञान परिषदों की पृष्ठभूमि
1970 के दशक में गठित राज्य विज्ञान परिषदों का उद्देश्य था विज्ञान योजना का विकेंद्रीकरण करना और अनुसंधान को स्थानीय सामाजिक–आर्थिक आवश्यकताओं से जोड़ना। इन परिषदों को स्थानीय नवाचार, पेटेंट आवेदन, और विज्ञान नीति पर राज्य सरकार को सलाह देने का कार्य सौंपा गया था।
हालांकि, अधिकांश परिषदें वित्तीय संकट से जूझ रही हैं और केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) पर सीमित समर्थन के लिए निर्भर हैं।
Static GK जानकारी: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) की स्थापना 1971 में की गई थी और यह भारत में विज्ञान नीति और अनुसंधान का समन्वय करता है।
असमान फंडिंग और क्षेत्रीय अंतर
वर्तमान में फंडिंग व्यवस्था में गंभीर असमानताएं देखी गई हैं:
- गुजरात का कुल विज्ञान बजट ₹300 करोड़ है, परंतु उसे केंद्र से मात्र ₹1.07 करोड़ मिलता है।
- केरल का बजट ₹150 करोड़ है, फिर भी उसे कोई केंद्रीय सहायता नहीं मिलती।
- सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तराखंड जैसे राज्यों के बजट घटे हैं, जबकि महाराष्ट्र का बजट दोगुना हो गया है।
यह स्थिति समरूप और प्रदर्शन आधारित वित्त व्यवस्था की आवश्यकता को दर्शाती है।
प्रदर्शन और संरचनात्मक चुनौतियाँ
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में वैज्ञानिक शोध का अधिकांश हिस्सा केंद्रीय संस्थानों से आता है, जबकि राज्य परिषदों का योगदान न्यूनतम है। उनका कोर ग्रांट पर निर्भर रहना और केंद्र से प्रतिस्पर्धी परियोजनाओं के लिए आवेदन न कर पाना उनकी कार्यक्षमता को सीमित करता है।
Static GK टिप: भारत वैज्ञानिक प्रकाशनों के मामले में विश्व के शीर्ष 5 देशों में शामिल है, फिर भी राज्य स्तरीय योगदान बहुत कम है।
प्रमुख सुधार सिफारिशें
नीति आयोग की मुख्य सिफारिशें हैं:
- परियोजना आधारित फंडिंग मॉडल लागू करना
- स्थानीय उद्योगों और राज्य विश्वविद्यालयों से सहयोग बढ़ाना
- राज्य शोध प्रणाली को सशक्त बनाना
- केवल केंद्रीय संस्थानों पर निर्भरता कम करना
संतुलित विज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र की ओर
यह सुधार प्रस्ताव क्षेत्रीय विषमताओं को कम करेगा, स्थानीय नवाचार को प्रोत्साहित करेगा, और राज्य व केंद्र के अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को मजबूत करेगा। फंडिंग को प्रदर्शन से जोड़ना और उद्योग सहभागिता बढ़ाना, भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र को अधिक गतिशील और समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
Static Usthadian Current Affairs Table
तथ्य | विवरण |
सुधार की सिफारिश की संस्था | नीति आयोग |
प्रस्तावित वर्ष | 2025 |
लक्षित संस्थाएँ | राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषदें |
वर्तमान मॉडल | कोर ग्रांट आधारित फंडिंग |
प्रस्तावित मॉडल | परियोजना आधारित फंडिंग |
केंद्रीय फंडिंग निकाय | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) |
फंडिंग विषमता उदाहरण | गुजरात ₹300 करोड़ (₹1.07 करोड़ केंद्र से), केरल ₹150 करोड़ (शून्य केंद्र से) |
मुख्य सिफारिश | राज्य विश्वविद्यालयों और स्थानीय उद्योगों से सहयोग बढ़ाना |
उद्देश्य | जवाबदेही, क्षेत्रीय संतुलन, नवाचार वृद्धि |
DST स्थापना वर्ष | 1971 |