भारत में सबसे महंगा खाद्य तेल बना नारियल तेल
वर्ष 2025 में नारियल तेल की कीमतों में तेज़ बढ़ोतरी देखी गई है, खासकर केरल में खुदरा मूल्य ₹460/किग्रा तक पहुंच चुका है, जो परंपरागत रूप से महंगा माने जाने वाले तिल के तेल से भी अधिक है। हालांकि जून 2025 में खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति -1.06% तक गिर गई है, लेकिन वनस्पति तेलों की कीमतें अब भी आम उपभोक्ताओं के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं।
एल नीनो के कारण वैश्विक आपूर्ति पर असर
इस मूल्यवृद्धि का प्रमुख कारण फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे प्रमुख निर्यातकों में एल नीनो से उत्पन्न सूखा है, जो जुलाई 2023 से जून 2024 तक रहा। इससे नारियल के फूल आने और फल देने की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
स्थैतिक जीके तथ्य: एल नीनो एक जलवायु परिघटना है जो प्रशांत महासागर के तापमान में असामान्य वृद्धि लाकर वैश्विक मानसून और फसल उत्पादन को प्रभावित करती है।
घरेलू उत्पादन नहीं कर पा रहा मांग की पूर्ति
भारत में नारियल तेल का वार्षिक उत्पादन लगभग 5.7 लाख टन है, जिसमें से केवल 3.9 लाख टन ही खाद्य प्रयोजन के लिए प्रयोग होता है। शेष तेल सौंदर्य प्रसाधन और औद्योगिक उपयोग में चला जाता है। इसके उलट पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल जैसे आयातित तेलों का बाजार हिस्सेदारी 72% है।
केरल अब शीर्ष उत्पादक नहीं रहा
केरल, जो कभी भारत में नारियल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य था, अब तमिलनाडु और कर्नाटक से पीछे है। यहां प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत केवल 2 लीटर है, जबकि पाम तेल की खपत 4 लीटर है। यह बदलाव बढ़ती कीमतों और बदलते उपभोग व्यवहार के कारण है।
स्थैतिक जीके तथ्य: नारियल विकास बोर्ड, कृषि मंत्रालय के अधीन, भारत में नारियल की खेती और प्रसंस्करण को बढ़ावा देता है।
वैश्विक नीतियों से संकट और गहराया
इंडोनेशिया कच्चे नारियल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है। वहीं फिलीपींस ने नारियल तेल को डीज़ल के साथ मिलाकर बायोडीज़ल बनाने को अनिवार्य कर दिया है। इससे वैश्विक निर्यात आपूर्ति घट गई है।
स्थैतिक जीके टिप: फिलीपींस नारियल उत्पादन में दुनिया में इंडोनेशिया के बाद दूसरे स्थान पर है।
दीर्घकालीन संकट: उत्पादन नहीं बढ़ सकता तुरंत
नारियल के पेड़ों को 3–5 वर्ष में फल देने की क्षमता आती है। इस वजह से आपूर्ति में सुधार तत्काल संभव नहीं है। इसके चलते मध्यम अवधि का संकट बना रहेगा। खुदरा बाज़ार में लोग तेल जमा करने लगे हैं, जिससे कीमतों पर और दबाव पड़ रहा है।
उपभोक्ताओं पर असर और बाज़ार की दिशा
भारत के खाद्य तेल बाजार में नारियल तेल की हिस्सेदारी कम है, इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर असर सीमित है। लेकिन केरल और तटीय तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में प्रभाव अधिक है। यह स्थिति सस्ते आयातित तेलों की ओर झुकाव को तेज़ कर सकती है और तेल आयात पर निर्भरता को और मज़बूत कर सकती है।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
केरल में खुदरा नारियल तेल कीमत | ₹460/किग्रा (जुलाई 2025) |
भारत की खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति | -1.06% (जून 2025) |
भारत में नारियल तेल की खाद्य उपयोग मात्रा | 3.9 लाख टन |
नारियल के पेड़ की फलने की अवधि | 3–5 वर्ष |
एल नीनो सूखा अवधि | जुलाई 2023 – जून 2024 |
प्रमुख वैश्विक उत्पादक | इंडोनेशिया, फिलीपींस |
केरल में प्रति व्यक्ति खपत | 2 लीटर/वर्ष |
पाम तेल का बाजार हिस्सा | अत्यधिक; सस्ता और अधिक उपयोग |
फिलीपींस नीति | नारियल तेल से बायोडीज़ल अनिवार्य |
भारत में संबंधित एजेंसी | नारियल विकास बोर्ड (कृषि मंत्रालय) |