दिल्ली में पहली बार होगी कृत्रिम वर्षा
दिल्ली सरकार ने राजधानी में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्लाउड सीडिंग (बादल बीजारोपण) द्वारा कृत्रिम वर्षा कराने की योजना बनाई है। इस परियोजना का नेतृत्व IIT कानपुर कर रहा है। विमान के माध्यम से बादलों में विशेष रसायनों का छिड़काव कर वर्षा उत्पन्न की जाएगी ताकि वातावरण से प्रदूषक कण साफ़ किए जा सकें। यह दिल्ली में मौसम संशोधन की पहली आधिकारिक पहल होगी।
कृत्रिम वर्षा क्या है?
कृत्रिम वर्षा या क्लाउड सीडिंग एक ऐसा मौसम परिवर्तन तकनीक है, जिसमें सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड, और ड्राय आइस जैसे कणों को नमी वाले बादलों में छोड़ा जाता है। ये कण जलवाष्प के संघनन को बढ़ावा देते हैं और वर्षा बनाते हैं।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान तथ्य: क्लाउड सीडिंग की पहली प्रयोगशाला खोज अमेरिका के विंसेंट शेफ़र ने 1940 के दशक में की थी।
क्लाउड सीडिंग के प्रकार
क्लाउड सीडिंग के दो प्रमुख प्रकार हैं:
- हाइग्रोस्कोपिक बीजारोपण: यह गर्म और नम बादलों में पानी की बूंदों को मिलाने की प्रक्रिया को तेज़ करता है।
- ग्लेशियोजेनिक बीजारोपण: ठंडे बादलों में बर्फ के क्रिस्टल बनने को प्रेरित करता है।
प्रत्येक तकनीक को बादलों की संरचना और मौसम लक्ष्य के अनुसार चुना जाता है।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उपयोग
संयुक्त अरब अमीरात (UAE), चीन और अमेरिका जैसे देशों में यह तकनीक नियमित रूप से उपयोग की जाती है। दुबई का रेन एन्हांसमेंट प्रोग्राम जल संकट से जूझते क्षेत्रों में सबसे उन्नत उदाहरणों में से एक है।
स्थैतिक जीके टिप: चीन ने 2008 बीजिंग ओलंपिक के दौरान मौसम को नियंत्रित करने के लिए क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया था।
कृत्रिम वर्षा के लाभ
कृत्रिम वर्षा पर्यावरणीय और कृषि प्रबंधन के लिए एक बहु–उपयोगी समाधान बन सकती है:
- वायु प्रदूषण को धोकर कम करती है।
- सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल उपलब्धता बढ़ाती है।
- खेती के लिए वर्षा सुनिश्चित करती है।
- वनाग्नि नियंत्रण में सहायक होती है।
- मौसम प्रबंधन के लिए उपयोगी होती है।
चिंताएँ और जोखिम
इसके संभावित लाभों के साथ कुछ गंभीर जोखिम भी हैं:
- अनियंत्रित वर्षा से बाढ़ और भूस्खलन का खतरा।
- प्राकृतिक मौसम चक्र में बाधा, जिससे अन्य क्षेत्रों में सूखा हो सकता है।
- जल स्रोतों और मिट्टी में रसायन से होने वाला प्रदूषण।
- पारिस्थितिक तंत्र में रसायन जमा होने से स्वास्थ्य समस्याएं।
स्थैतिक जीके तथ्य: भारत में कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में पहले से ही क्लाउड सीडिंग के प्रयोग किए गए हैं।
आगे का रास्ता
कृत्रिम वर्षा कोई स्थायी समाधान नहीं है, बल्कि एक आपातकालीन उपाय है। इसे सावधानीपूर्वक, वैज्ञानिक दिशानिर्देशों और पर्यावरणीय सुरक्षा मानकों के अनुसार लागू किया जाना चाहिए। यदि सही ढंग से लागू किया जाए, तो यह भारत की जलवायु लचीलापन रणनीति में सहायक हो सकता है।
Static Usthadian Current Affairs Table
विषय | विवरण |
दिल्ली में पहली कृत्रिम वर्षा | 2025, IIT कानपुर द्वारा नेतृत्व |
प्रयुक्त विधि | क्लाउड सीडिंग (पल्ल बीजारोपण) |
मुख्य रसायन | सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड, ड्राय आइस |
पहला प्रयोग | विंसेंट शेफ़र, 1940s, अमेरिका |
वैश्विक उपयोगकर्ता | UAE, चीन, अमेरिका, भारत (चुनिंदा राज्य) |
उद्देश्य | वायु प्रदूषण नियंत्रण, जल संकट समाधान, कृषि सहयोग |
प्रकार | हाइग्रोस्कोपिक और ग्लेशियोजेनिक |
प्रमुख जोखिम | बाढ़, मौसम विघटन, प्रदूषण |
भारत में पिछला उपयोग | कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश |
समर्थन संस्था | IIT कानपुर |