लगातार बढ़ती कछुओं की मौतें: चिंता का कारण
तमिलनाडु के समुद्र तटीय क्षेत्रों में एक गंभीर पारिस्थितिकी संकट देखा जा रहा है—पिछले कुछ हफ्तों में 300 से अधिक ओलिव रिडले कछुओं की लाशें चेन्नई के समुद्र तटों पर मिली हैं। नीलंकरई, बेसन नगर, कोवलम और थिरुवल्लूर जिले के पुलिकट तक के तट प्रभावित हैं।
चिंता की बात यह है कि यह समय नेस्टिंग सीजन की शुरुआत का है—जब मादा कछुए अपने अंडे देने के लिए किनारों पर लौटते हैं। इस समय इनकी बड़ी संख्या में मौतें प्राकृतिक चक्र के लिए गंभीर खतरा हैं।
क्यों हो रही हैं ये मौतें?
मुख्य कारण है ‘बायकैच’—यानि मछली पकड़ने के जालों में गलती से अन्य समुद्री जीवों का फंसना।
ओलिव रिडले कछुए को सांस लेने के लिए बार–बार सतह पर आना होता है, लेकिन जब वे गहरे पानी में जाल में फंसते हैं, तो दम घुटने से उनकी मौत हो जाती है।
2025 में मछली की अधिकता के कारण मत्स्य क्रियाकलापों में तेज़ी आई है, जिससे और अधिक जाल बिछाए गए—और कछुओं पर खतरा बढ़ गया।
शव परीक्षण क्या बताते हैं?
मरे हुए कछुओं के पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सामने आया है कि उनके फेफड़ों में क्षति, फूली हुई आंखें, और गर्दन की सूजन जैसी दम घुटने के स्पष्ट लक्षण पाए गए।
यह सिर्फ दुःखद नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि उन्हें लंबे समय तक जालों में फंसा रखा गया, और वे बाहर नहीं निकल सके।
अरिबाडा का चमत्कार—और उसका खतरा
ओलिव रिडले कछुए सामूहिक अंडा देने की घटना ‘अरिबाडा’ के लिए प्रसिद्ध हैं, जहां हजारों मादा कछुए एक साथ समुद्र तट पर 110 तक अंडे देती हैं। यह चक्र नवंबर के अंत से मार्च तक चलता है और मुख्य रूप से ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में होता है।
लेकिन अब यह चमत्कार भी प्रदूषण, तटीय गतिविधियों और अनियंत्रित मछली पकड़ने के कारण खतरे में है।
सरकार और संरक्षण कार्यों की भूमिका
आंध्र प्रदेश सरकार ने होप आइलैंड जैसे नेस्टिंग ज़ोन के पास अस्थायी मछली पकड़ने पर रोक लगाई है।
संरक्षणवादी आग्रह कर रहे हैं कि ‘टर्टल एस्क्लूडर डिवाइस (TEDs)’ का उपयोग अनिवार्य किया जाए—यह एक ऐसा उपकरण है जो मछली पकड़ने के जाल से कछुओं को बाहर निकलने का रास्ता देता है।
अमेरिका जैसे देशों में यह तकनीक सफल रही है, और भारत में इसे तुरंत अपनाने की आवश्यकता बताई जा रही है।
ये कछुए कौन हैं?
ओलिव रिडले कछुए (Lepidochelys olivacea) दुनिया के सबसे छोटे समुद्री कछुए हैं—इनका वजन 35–45 किलोग्राम और लंबाई 70 सेमी तक होती है।
हालाँकि ये संख्या में सबसे अधिक समुद्री कछुए माने जाते हैं, लेकिन IUCN ने इन्हें ‘Vulnerable’ (असुरक्षित) प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया है।
इनकी रक्षा सिर्फ कानून से नहीं, बल्कि जागरूकता और सामुदायिक जिम्मेदारी से ही संभव है।
Static GK Snapshot (प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु)
विषय | तथ्य |
ओलिव रिडले कछुआ | सबसे छोटा समुद्री कछुआ; IUCN द्वारा ‘Vulnerable’ घोषित |
सामूहिक नेस्टिंग | ‘अरिबाडा’ के नाम से जाना जाता है; ओडिशा, आंध्र, तमिलनाडु तट |
नेस्टिंग सीजन | नवंबर के अंत से मार्च तक |
प्रमुख खतरा | मछली पकड़ने के जाल में दम घुटना (बायकैच) |
संरक्षण उपाय | मछली पकड़ने पर अस्थायी प्रतिबंध, टर्टल एस्क्लूडर डिवाइस (TEDs) |