ऐतिहासिक दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने वाली खोज
तमिलनाडु के तूत्तुकुड़ी जिले के सिवगलाई क्षेत्र में की गई हालिया पुरातात्विक खुदाई ने वैश्विक इतिहास को चुनौती दी है। यहाँ मिले लौह अवशेषों की AMS14C तिथि 3345 ईसा पूर्व है—जो हित्ती साम्राज्य (1300 ईसा पूर्व) से 2000 वर्ष पहले की है। इससे यह प्रमाणित होता है कि विश्व की सबसे पुरानी लौह तकनीक दक्षिण भारत में विकसित हुई थी।
दक्षिण भारत की प्राचीन धातुकला विरासत
अडिचनल्लूर (2517 ईसा पूर्व) और मयिलाडुमपराई (2172 ईसा पूर्व) जैसे स्थलों से 85 से अधिक लौह उपकरण, जैसे तलवारें, तीर, और हड्डियों के साथ प्रयोग में लाए गए पात्र मिले हैं। सिवगलाई से प्राप्त अस्थिपात्रों में लौह के अंश मिलने से सिद्ध होता है कि इस क्षेत्र में लौह निर्माण और उपयोग दैनिक जीवन का हिस्सा था।
वैज्ञानिक पद्धतियों से पुष्टि
AMS14C (Accelerator Mass Spectrometry) द्वारा कोयले की आयु और OSL (Optically Stimulated Luminescence) से मिट्टी की तिथि निर्धारण से यह पुष्टि हुई कि दक्षिण भारत में चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व से ही लौह प्रौद्योगिकी का उपयोग हो रहा था।
कोडुमनाल और अन्य स्थलों से लौह भट्टियों के प्रमाण
कोडुमनाल, चेट्टिपलायम और पेरुङ्गलूर जैसे स्थलों से लौह गलन भट्टियाँ मिली हैं। कोडुमनाल की गोलाकार भट्टी में 1300°C तापमान तक गर्मी उत्पन्न होती थी—यह स्पंज आयरन निर्माण के लिए पर्याप्त है, जिससे उस काल की तकनीकी दक्षता का स्तर स्पष्ट होता है।
भारतीय इतिहास के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता
इन खोजों से यह संकेत मिलता है कि दक्षिण भारत का लौह युग सिंधु घाटी सभ्यता (3300–1300 ईसा पूर्व) के समकालीन था। जब उत्तर भारत अभी ताम्रपाषाण युग में था, तब तमिल समाज पहले से ही लौह धातु का उपयोग कर रहा था, जो क्षेत्रीय सांस्कृतिक और तकनीकी उन्नयन का प्रमाण है।
वैश्विक लौह युग की धारणाओं को चुनौती
अब तक माना जाता था कि लौह युग की शुरुआत हित्ती साम्राज्य से हुई थी, लेकिन सिवगलाई की खोजें इस धारणा को पूरी तरह बदल देती हैं। इससे भारत को लौह प्रौद्योगिकी के उद्गम स्थल के रूप में मान्यता मिलने की संभावना बढ़ती है। विशेषज्ञ अब सिंधु घाटी सभ्यता के पुरावशेषों की दोबारा वैज्ञानिक जांच की वकालत कर रहे हैं ताकि यदि वहाँ भी लौह का उपयोग हुआ हो तो वह सामने आ सके।
Static GK Snapshot
विषय | विवरण |
सबसे प्राचीन लौह गलन तिथि | 3345 ईसा पूर्व (सिवगलाई, तमिलनाडु) |
प्रमुख पुरातात्विक स्थल | सिवगलाई, अडिचनल्लूर, मयिलाडुमपराई, कोडुमनाल |
प्रयोग की गई विधियाँ | AMS14C (कोयले की तिथि), OSL (मिट्टी की तिथि) |
कोडुमनाल में भट्टी तापमान | 1300°C (स्पंज आयरन निर्माण हेतु) |
वैश्विक तुलना | हित्ती साम्राज्य – 1300 ईसा पूर्व; तमिलनाडु – 3345 ईसा पूर्व |
ऐतिहासिक महत्व | दक्षिण भारत का लौह युग = सिंधु घाटी सभ्यता के समकालीन |