हत्या नीति की जरूरत क्यों पड़ी: संकट में किसान
तमिलनाडु के वन क्षेत्र से लगे गांवों में किसान वर्षों से जंगली सूअरों द्वारा फसल नुकसान का सामना कर रहे हैं। ये जानवर रातोंरात खेतों को नुकसान पहुँचाते हैं, सिंचाई लाइनों को नष्ट करते हैं और किसानों को हर सीजन में आय हानि का सामना करना पड़ता है। पहले केवल जंगलों तक सीमित जंगली सूअर अब आवास क्षरण और भोजन की कमी के कारण मानव बस्तियों तक पहुँचने लगे हैं।
इसी को देखते हुए सरकार ने ज़ोन आधारित हत्या नीति को लागू किया है, जो किसानों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए पर्यावरणीय नैतिकता को भी बनाए रखती है।
ज़ोन आधारित हत्या प्रणाली क्या है?
अंधाधुंध हत्या और पारिस्थितिक असंतुलन को रोकने के लिए, तमिलनाडु सरकार ने तीन स्तरों वाली कार्रवाई क्षेत्र प्रणाली लागू की है:
ज़ोन A: हत्या पूरी तरह प्रतिबंधित (0–1 किमी वन सीमा से)
- यह जंगल के अंदरूनी हिस्से के निकटतम संरक्षित क्षेत्र है
• फेंसिंग, जागरूकता अभियान जैसे गैर–घातक उपायों पर जोर
• उद्देश्य: मुख्य वन्यजीव क्षेत्र में हस्तक्षेप रोकना
ज़ोन B: पकड़ो और छोड़ो क्षेत्र (1–3 किमी)
- वन विभाग सूअरों को पकड़कर सुरक्षित स्थानों पर छोड़ सकता है
• मानवतावादी दृष्टिकोण, जो दोनों पक्षों का सम्मान करता है
• कृषि और वन विभागों के बीच प्रशिक्षित टीम और समन्वय की आवश्यकता
ज़ोन C: नियंत्रित शूटिंग क्षेत्र (3 किमी से आगे)
- केवल प्रशिक्षित वन अधिकारी ही सूअरों को मार सकते हैं
• किसानों को सीधे हत्या की अनुमति नहीं
• इस क्षेत्र में सख्त दिशा–निर्देशों और निगरानी के साथ सीमित हस्तक्षेप
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विषय | विवरण |
नीति जारी करने वाला निकाय | तमिलनाडु वन विभाग |
ज़ोन प्रकार | ज़ोन A – प्रतिबंधित, ज़ोन B – पकड़ो और छोड़ो, ज़ोन C – हत्या की अनुमति |
कानूनी आधार | वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (वरमिन प्रावधान) |
किसे अनुमति है हत्या की? | केवल प्रशिक्षित वन विभाग अधिकारी |
सूअर की वन्यजीव स्थिति | राज्य स्तर पर ‘वरमिन’ के रूप में वर्गीकृत |
उद्देश्य | किसानों की सुरक्षा और वन्यजीव संरक्षण में संतुलन |