विरासत को मिली राष्ट्रीय पहचान
आंध्र प्रदेश के बापटला जिले के चिराला में बनाई जाने वाली कुप्पडम सिल्क साड़ियों को केंद्र सरकार की एक जिला एक उत्पाद (ODOP) योजना के तहत राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान भारत की वस्त्र परंपरा में इस शिल्प की भूमिका और अनूठी बुनाई कौशल को मान्यता देता है।
Static GK fact: ODOP योजना वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा चलाई जाती है ताकि भारत के हर जिले से एक विशिष्ट उत्पाद को बढ़ावा दिया जा सके।
बुनाई तकनीक की विशेषता
कुप्पडम साड़ियां “कूपडम” इंटरलॉकिंग तकनीक से बनती हैं, जिसमें तीन शटल बुनाई का उपयोग होता है। ये साड़ियां पारंपरिक पिट लूम पर बुनी जाती हैं, जिनका शरीर रेशम या सूती होता है और किनारे पर रेशमी ज़री का काम होता है। मंदिर शैली की बॉर्डर आकृतियां इनकी पहचान हैं।
Static GK Tip: कुप्पडम तकनीक में उच्च धागा घनत्व और बारीक बुनाई होती है, जिससे ये साड़ियां हल्की, टिकाऊ और हर मौसम में पहनने योग्य बनती हैं।
पारंपरिक शिल्प का पुनरुत्थान
एक समय था जब बिजली करघा और सिंथेटिक कपड़ों के कारण कुप्पडम साड़ियों की लोकप्रियता घट गई थी। लेकिन चिराला के कारीगरों ने इस परंपरा को जीवित रखा। बित्रा पुल्लैया द्वारा शुरू की गई स्प्रिंग–इन–शटल तकनीक ने बुनाई को सुगम बना दिया और बॉर्डर को 12–15 इंच तक बड़ा करना संभव किया।
Static GK fact: कुप्पडम शैली की शुरुआत पहले तमिलनाडु में धोती बुनाई के लिए हुई थी, और 1998 के आसपास इसे चिराला में साड़ियों के लिए अनुकूलित किया गया।
सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव
कुप्पडम साड़ियां धार्मिक अनुष्ठानों, त्योहारों और पारंपरिक उपहार देने की परंपरा में गहराई से जुड़ी हुई हैं। चिराला के बुनकरों ने स्वदेशी आंदोलन में भी प्रमुख भूमिका निभाई थी। यह सम्मान 14 जुलाई, 2025 को भारत मंडपम, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में दिया जाएगा, जिसे बापटला के कलेक्टर जे. वेंकटा मुरली प्राप्त करेंगे।
यह मान्यता कारीगरों की आजीविका को सशक्त करेगी, युवाओं में शिल्प के प्रति रुचि बढ़ाएगी और घरेलू व वैश्विक बाज़ारों में इन साड़ियों की मांग को बढ़ावा देगी।
नवाचार और आधुनिकता
अब कुप्पडम साड़ियों में पायथनी, टाई–एंड–डाई और टिशू डिज़ाइनों का समावेश भी किया गया है ताकि आधुनिक ग्राहकों को आकर्षित किया जा सके। साथ ही, इस शिल्प की मौलिकता की रक्षा के लिए GI टैग के लिए प्रयास जारी हैं।
Static GK fact: “चिराला” शब्द “चिरा” (तेलुगु में साड़ी) से बना है, जो इस शहर की बुनाई परंपरा को दर्शाता है।
Static Usthadian Current Affairs Table (Hindi)
विषय | विवरण |
उत्पाद | कुप्पडम सिल्क साड़ियां |
स्थान | चिराला, बापटला जिला, आंध्र प्रदेश |
राष्ट्रीय मान्यता | ODOP योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय पुरस्कार |
सम्मान तिथि | 14 जुलाई, 2025 |
स्थान | भारत मंडपम, प्रगति मैदान, नई दिल्ली |
तकनीक | कूपडम इंटरलॉकिंग, तीन शटल बुनाई |
नवाचार | स्प्रिंग-इन-शटल से 12–15 इंच की बॉर्डर संभव |
सांस्कृतिक महत्व | मंदिर आकृति, पारंपरिक परिधान |
आधुनिक डिज़ाइन | पायथनी, टाई-एंड-डाई, टिशू साड़ियां |
सुरक्षा उपाय | GI टैग के लिए प्रस्ताव प्रक्रिया में |