पर्यावरणीय धरोहर की ओर एक डिजिटल कदम
जम्मू-कश्मीर सरकार ने एक अनोखी पहल के तहत कश्मीर घाटी में चिनार वृक्षों की जियो–टैगिंग की प्रक्रिया शुरू की है। इन विशाल और ऐतिहासिक वृक्षों को अब स्कैन योग्य क्यूआर कोड के माध्यम से डिजिटल पहचान दी जा रही है—यह एक तरह का ‘पेड़ों का आधार कार्ड’ है। यह पहल आधुनिक डिजिटल गवर्नेंस को विरासत संरक्षण से जोड़ने और डिजिटल इंडिया आंदोलन का हिस्सा बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
चिनार वृक्ष का महत्व
चिनार वृक्ष (Platanus orientalis) न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भी कश्मीर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसकी चौड़ी छांव और आग जैसे लाल शरद् पत्तों की छटा सदियों से मुग़ल बाग़ों, कविता, और चित्रकला में स्थान पाती रही है। यह वृक्ष ऑक्सीजन उत्पादन में उत्कृष्ट है और प्राकृतिक वायु शोधक के रूप में काम करता है, जो कश्मीर के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अनिवार्य है।
यह वृक्ष अन्य पेड़ों की तुलना में ठंड के मौसम में भी अपनी हरियाली बनाए रखता है, जिससे जैव विविधता और वायु गुणवत्ता को बनाए रखने में मदद मिलती है। हाल के दशकों में शहरीकरण और उपेक्षा के कारण इन वृक्षों की संख्या में गिरावट देखी गई है, जिससे पर्यावरणविदों में चिंता बढ़ी है।
जियो-टैगिंग: वृक्षों को मिली डिजिटल पहचान
इस योजना की शुरुआत 2025 की शुरुआत में की गई। इस परियोजना के अंतर्गत प्रत्येक चिनार वृक्ष को:
• GPS निर्देशांकों के साथ टैग किया गया, जिससे उसका सटीक स्थान रिकॉर्ड हुआ।
• एक आधार–जैसी विशिष्ट पहचान संख्या दी गई।
• एक क्यूआर कोड से जोड़ा गया, जिसे स्कैन कर वृक्ष की उम्र, स्वास्थ्य, आकार आदि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
हर ज़िले को एक कोड और वृक्षों की गिनती के साथ सूचीबद्ध किया गया है। अब तक 28,560 चिनार वृक्षों की जियो-टैगिंग सफलतापूर्वक की जा चुकी है।
तकनीक से संरक्षण
डिजिटल मैपिंग और एआई टूल्स के ज़रिए वन विभाग अब इन पेड़ों के स्वास्थ्य की निगरानी कर सकता है, खतरों की पहचान कर सकता है और संरक्षण योजनाएं बना सकता है। अधिकारी इसे “वृक्षों का डिजिटल आधार” मानते हैं, जो कश्मीर की हरित विरासत की सुरक्षा की दिशा में एक कार्यात्मक प्रयास है।
क्यूआर टैगिंग से स्थानीय नागरिकों और पर्यटकों को भी शामिल किया गया है—अब वे मोबाइल ऐप्स के माध्यम से वृक्षों से जुड़ी समस्याओं की रिपोर्ट कर सकते हैं।
यह डेटा डिजिटल इंडिया के पर्यावरणीय डेटाबेस का हिस्सा बनेगा, जिससे नीति-निर्माताओं को रीयल-टाइम वन मानचित्र की जानकारी मिल सकेगी। यह विशेष रूप से कश्मीर जैसे नाज़ुक जलवायु वाले क्षेत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है।
अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण
जम्मू-कश्मीर की यह पहल भारत में जैव विविधता संरक्षण की दिशा में एक आदर्श बन सकती है। मध्य प्रदेश के बाओबाब वृक्ष या सुंदरबन के सुंदरी वृक्षों जैसे दुर्लभ वृक्षों को भी इसी प्रकार डिजिटल संरक्षित किया जा सकता है। यह पहल स्मार्ट प्रशासन और धरोहर संरक्षण का अद्भुत संयोजन है।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान सारांश तालिका
विषय | विवरण |
वृक्ष का नाम | चिनार (Platanus orientalis) |
राज्य | जम्मू और कश्मीर |
अनूठी विशेषता | प्रत्येक वृक्ष के लिए क्यूआर कोड और आधार–जैसी पहचान |
अब तक टैग किए गए वृक्ष | 28,560 |
भारत में पहली बार | हां |
पर्यावरणीय महत्व | मुख्य ऑक्सीजन उत्पादक; मुग़लकालीन बागों का हिस्सा |
डिजिटल इंडिया से संबंध | हां |
सांस्कृतिक महत्व | कश्मीर की पहचान और पारिस्थितिकी इतिहास का प्रतीक |