ऐतिहासिक जड़ें और ब्रिटेन में सिख प्रवासी प्रभाव
खालिस्तान आंदोलन, जो एक अलग सिख राष्ट्र की माँग करता है, को भारत से बाहर सबसे अधिक समर्थन यूनाइटेड किंगडम में मिला है, जहाँ 2021 में 5.25 लाख से अधिक सिख रहते हैं। ब्रिटेन में सिख प्रवास 19वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ था, लेकिन 1947 के विभाजन और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसमें तेजी आई। अधिकांश सिख प्रवासी वेस्ट मिडलैंड्स और ग्रेटर लंदन क्षेत्रों में बसे और उन्होंने मजबूत सामुदायिक नेटवर्क बनाए, जिनमें गुरुद्वारे प्रमुख राजनीतिक केंद्र बन गए। जगजीत सिंह चौहान, जो खालिस्तान विचारधारा को विदेशों में प्रचारित करने वाले मुख्य व्यक्ति थे, ने ब्रिटेन में प्रचार अभियान, घोषणाएँ, और पाकिस्तान–समर्थित समर्थन के साथ इसे आगे बढ़ाया।
खालिस्तान की माँग और राजनीतिक टकराव
खालिस्तान की माँग को 1960 के दशक में बल मिला और यह 1980 के दशक के पंजाब उग्रवाद के दौरान चरम पर पहुँची। आंदोलन ने हिंसात्मक रूप तब लिया जब जरनैल सिंह भिंडरांवाले, एक कट्टर उपदेशक, ने ग्रामीण और गरीब सिख युवाओं को आकर्षित करना शुरू किया। उनका 1982 में स्वर्ण मंदिर पर कब्जा सरकार के खिलाफ खुले विद्रोह का प्रतीक बना। इसके जवाब में सरकार ने जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया, जिसमें भिंडरांवाले मारे गए, लेकिन इस सैन्य कार्रवाई ने दुनियाभर के सिखों की धार्मिक भावनाओं को गहरा ठेस पहुँचाई। इसके बाद एक दशक तक भारत में उग्रवाद जारी रहा, और 1990 के दशक के मध्य तक सिख उग्रवादी समूह भारत सरकार को निशाना बनाते रहे। हालाँकि भारत में इसे सैन्य रूप से दबा दिया गया, लेकिन प्रवासी सिखों में यह विचारधारा अब भी जीवित है।
ब्रिटेन में पुनरुत्थान और प्रवासी सक्रियता
हाल के वर्षों में ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है, जो प्रायः गुरुद्वारों के इर्द-गिर्द केंद्रित रहती हैं। सिख्स फॉर जस्टिस और खालिस्तान काउंसिल जैसे संगठन खालिस्तान जनमत संग्रह और रैलियों का आयोजन कर रहे हैं। 2025 में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की लंदन यात्रा के दौरान ऐसे विरोध प्रदर्शनों से सुरक्षा में सेंध लगी। ब्रिटिश खुफिया रिपोर्टों और भारतीय विदेश मंत्रालय के बयानों में यह चिंता जताई गई है कि कुछ धार्मिक संस्थानों में कट्टरपंथ और बम बनाने की कथित ट्रेनिंग दी जा रही है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में उग्रवाद को बढ़ावा दे सकती है।
विवादास्पद जनमत संग्रह और कूटनीतिक तनाव
सिख्स फॉर जस्टिस द्वारा संचालित खालिस्तान जनमत संग्रह अभियान ने राजनीतिक विवाद उत्पन्न कर दिए हैं। यद्यपि इन जनमत संग्रहों को कानूनी मान्यता नहीं मिली है, लेकिन वे मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ दबाव बनाते हैं। इनकी वोटिंग प्रक्रिया, सहभागिता और वैधता को लेकर कई सवाल उठाए गए हैं। फिर भी यह प्रवासी समुदाय के उन वर्गों की सशक्तता को दर्शाते हैं जो खुद को भारतीय राज्य द्वारा उपेक्षित मानते हैं। भारत सरकार इस विषय में स्पष्ट है कि पंजाब भारत का अभिन्न हिस्सा है और ऐसे आंदोलन राष्ट्रीय एकता और अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए खतरा हैं।
STATIC GK SNAPSHOT
विषय | विवरण |
आंदोलन का नाम | खालिस्तान आंदोलन |
मूल माँग | भारत (पंजाब) और पाकिस्तान के क्षेत्रों में अलग सिख राष्ट्र |
प्रमुख नेता | जगजीत सिंह चौहान, जरनैल सिंह भिंडरांवाले |
प्रमुख सैन्य घटनाएँ | ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984), ऑपरेशन ब्लैक थंडर |
ब्रिटेन में सिख जनसंख्या (2021) | 5.25 लाख+ |
प्रमुख संगठन | सिख्स फॉर जस्टिस |
प्रवासी गतिविधि केंद्र | यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका |
भारत की कार्रवाई | उग्रवादी संगठनों पर प्रतिबंध, राजनयिक विरोध |
स्वर्ण मंदिर कार्रवाई की तिथि | जून 1984 |
प्रवासी कट्टरपंथ पर चिंता | यूके खुफिया रिपोर्टें, भारतीय विदेश मंत्रालय की चेतावनियाँ |