मातृत्व अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में के. उमादेवी बनाम तमिलनाडु सरकार मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश केवल नीतिगत सुविधा नहीं बल्कि महिलाओं का मौलिक प्रजनन अधिकार है। यह निर्णय केवल प्रशासनिक नियमों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि संवैधानिक संरक्षण के तहत महिलाओं के अधिकारों को मान्यता दी गई।
तमिलनाडु के मूल नियम 101(क) के तहत तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व लाभ नहीं दिया गया था, जिससे यह मामला सामने आया। सुप्रीम कोर्ट ने इस इनकार को अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक करार देते हुए, इसे अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के रूप में देखा।
अनुच्छेद 21 और प्रजनन स्वतंत्रता
कोर्ट ने जोर दिया कि अनुच्छेद 21, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, उसमें प्रजनन स्वायत्तता भी शामिल है। इसका अर्थ है कि महिलाएं अपने गर्भधारण और मातृत्व के निर्णयों में स्वतंत्र हैं और उन्हें इसके कारण कार्यस्थल पर कोई भेदभाव नहीं झेलना चाहिए।
इस व्याख्या से यह स्पष्ट हो गया कि मातृत्व अवकाश केवल सुविधा नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकार बन गया है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।
महिलाओं के अन्य संवैधानिक अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 42 का भी हवाला दिया, जिसमें न्यायपूर्ण और मानवीय कार्य दशाएं तथा मातृत्व राहत प्रदान करने का निर्देश है। साथ ही, अनुच्छेद 51(c) भारत को अपने अंतरराष्ट्रीय समझौतों का सम्मान करने के लिए बाध्य करता है, जैसे कि CEDAW (महिलाओं के खिलाफ भेदभाव समाप्त करने का कन्वेंशन)।
इन प्रावधानों के माध्यम से संविधान महिलाओं के स्वास्थ्य, समानता और कार्यस्थल अधिकारों को मज़बूती से सुरक्षित करता है।
मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961
भारत में मातृत्व अवकाश से संबंधित मुख्य कानून है मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961। इसे 2017 में संशोधित किया गया और इसमें अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह की गई। यह अधिनियम सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों पर लागू होता है और बच्चों की संख्या को सीमित नहीं करता।
तमिलनाडु का राज्य-स्तरीय नियम इससे टकराता था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि राष्ट्रीय कानून और संविधान सर्वोपरि हैं।
Static Usthadian Current Affairs Table
मुख्य तत्व | विवरण |
केस का नाम | के. उमादेवी बनाम तमिलनाडु सरकार |
मुद्दा | दो बच्चों के बाद मातृत्व लाभ से इनकार |
सुप्रीम कोर्ट की राय | मातृत्व अवकाश अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन अधिकार का हिस्सा |
संबंधित संवैधानिक अनुच्छेद | अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 42, अनुच्छेद 51(c) |
राज्य नियम | तमिलनाडु मूल नियम 101(क) |
राष्ट्रीय कानून | मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (2017 संशोधन सहित) |
मातृत्व अवकाश की अवधि | 26 सप्ताह (2017 के बाद) |
अंतरराष्ट्रीय संधि | CEDAW |
Static GK तथ्य | अधिनियम 1961 में पारित, 2017 में संशोधित |