डिजिटल नियमन में नया कानूनी कदम
कर्नाटक फेक न्यूज (निषेध) विधेयक 2025 भारत में किसी राज्य द्वारा लाया गया ऐसा पहला कानून है जो सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और गलत जानकारी को रोकने हेतु तैयार किया गया है। इसमें दोषियों के लिए अधिकतम 7 साल की सजा का प्रावधान है। विधेयक में झूठी या तोड़ी–मरोड़ी गई जानकारी, नकली वीडियो और गलत बयानबाज़ी को फेक न्यूज की श्रेणी में रखा गया है।
Static GK Fact: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन कुछ युक्तिसंगत प्रतिबंधों के साथ।
निगरानी के लिए समिति का गठन
इस विधेयक को लागू करने के लिए एक निर्धारित प्राधिकरण बनाया जाएगा जिसकी अध्यक्षता कन्नड़ और संस्कृति मंत्री करेंगे। इस समिति में विधायक (MLAs), विधान परिषद सदस्य (MLCs), सोशल मीडिया प्रतिनिधि और वरिष्ठ नौकरशाह भी होंगे। यह समिति किसी समाचार को फर्जी घोषित कर वैधानिक निर्णय देने की शक्ति रखेगी।
हालांकि, आलोचक इसे राजनीतिक हस्तक्षेप और मनमाने नियंत्रण का कारण मान रहे हैं।
न्यायिक दृष्टिकोण और पूर्व उदाहरण
यह विधेयक बॉम्बे हाई कोर्ट के 2024 के निर्णय के बाद लाया गया है, जिसमें IT नियमों 2021 के कुछ प्रावधानों को न्यायिक निगरानी के अभाव में रद्द कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि कानूनों में स्पष्ट परिभाषाएं और संतुलनकारी निगरानी होनी चाहिए ताकि आलोचना या असहमति को दबाया न जा सके।
Static GK Tip: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 भारत में डिजिटल सामग्री को नियंत्रित करता है। राज्य-स्तरीय ऐसे कानून अभी तक दुर्लभ रहे हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम नियंत्रण
विधेयक में कला और व्यक्तिगत राय को छूट दी गई है, लेकिन इन शब्दों की स्पष्ट व्याख्या नहीं दी गई है। इस कारण से अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सेंसरशिप और जनमत दबाने की आशंका जताई जा रही है।
नागरिक अधिकार समूहों का कहना है कि विधेयक की अस्पष्ट भाषा का उपयोग आलोचकों को निशाना बनाने में हो सकता है।
भारत में पहला राज्य स्तरीय प्रयास
यह विधेयक भारत का पहला ऐसा प्रयास है जिसे किसी राज्य सरकार ने फेक न्यूज पर नियंत्रण हेतु लाया है। केंद्र द्वारा पूर्व में लाए गए नियमों को न्यायालयों ने व्यापकता और अस्पष्टता के कारण रोक दिया था।
यदि यह विधेयक लागू होता है, तो अन्य राज्य भी इस मॉडल को अपनाने की कोशिश कर सकते हैं।
जन प्रतिक्रिया में मतभेद
इस विधेयक को लेकर जनता की राय बंटी हुई है। समर्थक इसे ऑनलाइन गलत जानकारी और प्रचार पर रोक का जरूरी साधन मानते हैं, जबकि विरोधी इसे सरकारी नियंत्रण और असहमति दबाने का औजार बता रहे हैं।
इस कानून के जरिए नियमन बनाम स्वतंत्रता की बहस फिर से चर्चा में है और इसका असर देश की डिजिटल नीतियों पर भी पड़ सकता है।
Static Usthadian Current Affairs Table (Hindi)
विषय | विवरण |
विधेयक का नाम | कर्नाटक फेक न्यूज (निषेध) विधेयक, 2025 |
पेश करने की तारीख | 3 जुलाई 2025 |
सजा का प्रावधान | अधिकतम 7 साल |
समिति के अध्यक्ष | कन्नड़ और संस्कृति मंत्री |
समिति की रचना | विधायक, विधान पार्षद, सोशल मीडिया प्रतिनिधि, वरिष्ठ नौकरशाह |
मुख्य चिंता | फेक न्यूज की परिभाषा में अस्पष्टता |
न्यायिक पृष्ठभूमि | बॉम्बे हाई कोर्ट का 2024 IT नियम निर्णय |
संबंधित केंद्रीय कानून | सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 |
संवैधानिक अनुच्छेद | अनुच्छेद 19(1)(a) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता |
सार्वजनिक चिंता | सेंसरशिप और असहमति की दमन |