जैव विविधता में नई खोज
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) द्वारा की गई एक हालिया खोज में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में क्यूलिकोइड्स (Culicoides) यानी रक्त चूसने वाली मक्खियों की 23 प्रजातियाँ पाई गई हैं। इनमें से 13 प्रजातियाँ भारत में पहली बार देखी गई हैं, जो इस खोज को विशेष बनाती हैं। ये मक्खियाँ आकार में छोटी होते हुए भी पशु स्वास्थ्य और कृषि के लिए गंभीर परिणाम ला सकती हैं। वैज्ञानिकों ने 3,500 से अधिक नमूनों का दस्तावेजीकरण किया है, जिससे इनके पारिस्थितिक और आर्थिक प्रभाव को लेकर गंभीर प्रश्न उठे हैं।
क्यूलिकोइड्स मक्खियाँ क्या होती हैं?
क्यूलिकोइड्स मक्खियाँ Ceratopogonidae परिवार से संबंध रखती हैं और अपने छोटे आकार के कारण अक्सर मच्छरों जैसी प्रतीत होती हैं। इन्हें स्थानीय स्तर पर “भूसी मक्खियाँ“ कहा जाता है। दिखने में यह मक्खियाँ निर्दोष लग सकती हैं, लेकिन ये बकरी, भेड़ और गाय जैसे पालतू जानवरों के लिए बड़ा खतरा बन सकती हैं। कुछ दुर्लभ मामलों में ये मानवों को भी काट सकती हैं। इनका सबसे बड़ा खतरा उन बीमारियों से है जिन्हें ये फैलाती हैं, विशेष रूप से ब्लूटंग वायरस, जो मवेशियों में चुपचाप लेकिन तीव्र रूप से फैलता है।
भोजन की आदतें और किसानों के लिए खतरा
ये मक्खियाँ पशुओं का रक्त चूसकर भोजन करती हैं, जिससे मवेशियों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। संक्रमित पशुओं में बुखार, जीभ का रंग बदलना, और सूजन जैसे ब्लूटंग बीमारी के लक्षण दिख सकते हैं। यदि समय पर इलाज न हो तो यह बीमारी पशु की मृत्यु का कारण बन सकती है, जिससे किसानों की आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। ऐसे क्षेत्रों में जहाँ पशुपालन मुख्य आय का स्रोत है, ये बीमारियाँ खाद्य सुरक्षा और आय दोनों के लिए खतरा बन सकती हैं।
ब्लूटंग बीमारी का गंभीर खतरा
इस खोज को और चिंताजनक बनाने वाली बात यह है कि पाई गई 23 प्रजातियों में से 5 पहले से ही ब्लूटंग बीमारी के वाहक के रूप में जानी जाती हैं। यह एक वायरल संक्रमण है जो श्वसन संकट, चेहरे की सूजन और अंततः मवेशियों की मृत्यु का कारण बन सकता है। अंडमान और निकोबार जैसे क्षेत्रों में, जहाँ कृषि और डेयरी खेती ग्रामीण आय के स्तंभ हैं, ऐसी बीमारी विनाशकारी हो सकती है। इससे पशु स्वास्थ्य निगरानी और कीट नियंत्रण रणनीतियों की आवश्यकता और भी स्पष्ट होती है।
आगे की दिशा: जैव विविधता संरक्षण और निगरानी
यह अध्ययन यह संकेत देता है कि जैव विविधता संरक्षण केवल प्रजातियों को बचाने तक सीमित नहीं, बल्कि यह मानव और पशु स्वास्थ्य की रक्षा से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। अंडमान और निकोबार जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में इन जैसे खतरनाक कीटों की उपस्थिति यह दर्शाती है कि नियमित कीटविज्ञान सर्वेक्षणों की कितनी आवश्यकता है। भारत पहले से ही 750 से अधिक वन्यजीव अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों का घर है—ऐसे में यह खोज बायोडायवर्सिटी और कृषि स्थिरता की रक्षा के लिए अग्रिम कार्य योजनाओं को लागू करने की माँग करती है।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान झलक (Static GK Snapshot)
विषय | विवरण |
खोजकर्ता संस्था | भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) |
स्थान | अंडमान और निकोबार द्वीप समूह |
कुल क्यूलिकोइड्स प्रजातियाँ | 23 |
भारत में नई प्रजातियाँ | 13 |
स्थानीय नाम | भूसी मक्खियाँ |
वैज्ञानिक परिवार | Ceratopogonidae |
मुख्य रोग वाहक | ब्लूटंग वायरस |
पशुओं में लक्षण | बुखार, जीभ का रंग बदलना, चेहरे/जीभ की सूजन, सांस लेने में कठिनाई |
प्रभावित क्षेत्र | पशु स्वास्थ्य, कृषि, डेयरी अर्थव्यवस्था |
प्रभावित जानवर | भेड़, बकरी, गाय |
संचरण जोखिम | 23 में से 5 प्रजातियाँ ब्लूटंग वाहक |
मुख्य चिंता | आजीविका का नुकसान, खाद्य असुरक्षा, पारिस्थितिक असंतुलन |
अध्ययन का उद्देश्य | जैव विविधता मानचित्रण और रोग वाहक निगरानी |