यह केवल ज़मीन नहीं, बल्कि न्याय के लिए संघर्ष है
एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि संपत्ति का अधिकार, भले ही अब मौलिक न हो, परंतु संविधानिक रूप से संरक्षित अधिकार है। यह मामला बेंगलुरु–मैसूर इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना के लिए ज़मीन लेने के बाद भी दशकों तक मुआवजा न मिलने से जुड़ा था। कोर्ट का संदेश साफ था—विकास के नाम पर न्याय की अनदेखी नहीं की जा सकती।
जब बिना उचित समय पर मुआवजा दिए ज़मीन ली जाती है, यह केवल कानूनी नहीं बल्कि मानवाधिकार का उल्लंघन बन जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को याद दिलाया कि कानून के तहत नागरिकों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार अनिवार्य है।
मौलिक से संविधानिक: अनुच्छेद 300A की यात्रा
बहुत से लोग नहीं जानते कि संपत्ति का अधिकार पहले मौलिक अधिकार था, जो अनुच्छेद 19(1)(f) और 31 के अंतर्गत आता था। लेकिन 1978 के 44वें संविधान संशोधन द्वारा इसे हटाकर अनुच्छेद 300A में रखा गया। यह कहता है: “किसी व्यक्ति की संपत्ति को कानून की प्रक्रिया के बिना छीना नहीं जा सकता।”
इसका अर्थ यह है कि राज्य यदि आपकी भूमि अधिग्रहण करना चाहता है, तो उसे कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए उचित मुआवजा देना अनिवार्य है। यह केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि वास्तविक संरक्षण है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: देर से मुआवजा देना अन्याय है
हालिया फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार की कड़ी आलोचना की कि उसने ज़मीन मालिकों को मुआवजा देने में वर्षों लगा दिए। कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का उपयोग करके मुआवजे की गणना की तिथि को 2019 तक स्थानांतरित किया, जिससे प्रभावितों को वर्तमान बाजार मूल्य पर राशि प्राप्त हुई।
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा: “विलंबित न्याय, अन्याय के समान है।“ साथ ही यह भी कहा कि संपत्ति अधिकार का संबंध व्यक्ति की गरिमा, आश्रय और जीविका से भी है।
अधिग्रहण अधिकार: सीमाओं के साथ शक्ति
राज्य के पास अधिग्रहण का अधिकार (Eminent Domain) है, लेकिन यह असीम शक्ति नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार को पारदर्शिता, स्पष्ट उद्देश्य और समयबद्ध मुआवजा सुनिश्चित करना होगा। अन्यथा यह संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और जनता का विश्वास टूटेगा।
कानूनी मिसालें जो अब भी प्रासंगिक हैं
यह पहला मौका नहीं है जब कोर्ट ने संपत्ति अधिकारों की रक्षा की हो। विद्या देवी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, अल्ट्राटेक सीमेंट बनाम मस्तराम, और जिलुभाई खाचर बनाम गुजरात राज्य जैसे मामलों ने दिखाया कि मुआवजा केवल औपचारिक नहीं, बल्कि न्यायसंगत होना चाहिए।
आपके लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला
चाहे आप छात्र हों, किसान हों या गृहस्वामी, यह फैसला यह दर्शाता है कि आपके अधिकार भूमि के कारण समाप्त नहीं हो जाते। यह भी दिखाता है कि जब सरकार असफल होती है, तो न्यायपालिका नागरिकों की रक्षा करती है।
UPSC, TNPSC, SSC, बैंकिंग और न्यायिक परीक्षाओं के लिए यह संवैधानिक कानून और शासन का एक सशक्त उदाहरण है।
STATIC GK SNAPSHOT (प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए)
प्रमुख तथ्य | विवरण |
संपत्ति अधिकार की मूल स्थिति | अनुच्छेद 19(1)(f) और 31 के तहत मौलिक अधिकार |
परिवर्तन किसने किया | 44वां संविधान संशोधन, 1978 |
वर्तमान सुरक्षा | अनुच्छेद 300A – संविधानिक अधिकार |
हालिया मामला | बेंगलुरु-मैसूर कॉरिडोर भूमि विवाद |
सुप्रीम कोर्ट की शक्ति | अनुच्छेद 142 – पूर्ण न्याय सुनिश्चित करना |
अधिग्रहण सिद्धांत | सार्वजनिक हित के लिए उचित प्रक्रिया व मुआवजा अनिवार्य |
महत्वपूर्ण मामले | विद्या देवी, अल्ट्राटेक सीमेंट, जिलुभाई खाचर |
परीक्षा प्रासंगिकता | UPSC, TNPSC, SSC, बैंकिंग, न्यायपालिका |