ऐतिहासिक निलंबन और कूटनीतिक झटके
1960 में हस्ताक्षर के बाद पहली बार, भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है। यह कदम 21 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 पर्यटक मारे गए, के प्रतिशोधस्वरूप लिया गया।
भारत द्वारा वीजा सेवाएं बंद करना, अटारी–वाघा बॉर्डर सील करना, और पाकिस्तानी अधिकारियों को निष्कासित करना जैसे कदमों के साथ यह निर्णय एक सशक्त रणनीतिक और राजनीतिक संकेत देता है।
सिंधु जल संधि क्या है?
सिंधु जल संधि, जो 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी, ने सिंधु घाटी की 6 नदियों का जल बंटवारा तय किया।
- भारत को पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी) पर पूर्ण अधिकार मिला।
- पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) का अधिकार मिला, जबकि भारत को केवल सीमित और गैर–उपभोगीय उपयोग की अनुमति है।
इस संधि में 12 अनुच्छेद और 8 परिशिष्ट हैं, जो तकनीकी शर्तों, विवाद समाधान और निरीक्षण को नियंत्रित करते हैं।
यह संधि युद्धों और तनावों के दौरान भी लागू रही, जिससे यह द्विपक्षीय सहयोग का दुर्लभ उदाहरण बन गई थी।
निलंबन का वर्तमान महत्व
इस निलंबन से भारत को रणनीतिक लाभ मिलता है, क्योंकि अब पाकिस्तान के किशनगंगा और रैटल जलविद्युत परियोजनाओं पर निगरानी का अधिकार सीमित हो गया है।
हालाँकि भारत तत्काल जल प्रवाह रोकने में सक्षम नहीं है क्योंकि इसके लिए जरूरी ढांचागत निर्माण अभी अधूरा है, फिर भी यह जल कूटनीति में निर्णायक मोड़ का संकेत है।
भविष्य में जम्मू-कश्मीर में निर्माणाधीन जल परियोजनाओं पर नीति बदलाव संभव है।
कानूनी और कूटनीतिक प्रभाव
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस संधि में एकतरफा वापसी का कोई प्रावधान नहीं है।
- अनुच्छेद XII(3) के अनुसार, यह संधि स्थायी है और केवल दोनों देशों की सहमति से ही बदली जा सकती है।
- भारत ने जनवरी 2023 और सितंबर 2024 में पुनर्विचार के लिए नोटिस दिए थे।
- विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ मिचेल लीनो ने 2025 की शुरुआत में भारत को तकनीकी मध्यस्थता का अधिकार दिया था, जिससे भारत की स्थिति मजबूत हुई।
पाकिस्तान की कृषि निर्भरता और क्षेत्रीय प्रभाव
पाकिस्तान की 80% से अधिक कृषि सिंधु घाटी पर निर्भर है।
- यदि जल आपूर्ति में व्यवधान आता है, तो इससे खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण आजीविका और पर्यावरणीय संतुलन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।
- विशेष रूप से सिंध और पंजाब जैसे जल–संकटग्रस्त प्रांतों में गंभीर तनाव उत्पन्न हो सकता है।
- संधि का यह निलंबन यदि कूटनीतिक रूप से नहीं सुलझाया गया तो यह क्षेत्रीय अस्थिरता और अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बन सकता है।
स्थैतिक सामान्य ज्ञान झलक (STATIC GK SNAPSHOT)
विषय | विवरण |
संधि का नाम | सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) |
हस्ताक्षर तिथि | 19 सितंबर 1960 |
मध्यस्थ | विश्व बैंक |
नदियाँ शामिल | भारत – सतलुज, ब्यास, रावी; पाकिस्तान – सिंधु, झेलम, चेनाब |
विवादित परियोजनाएँ | किशनगंगा जलविद्युत परियोजना, रैटल परियोजना |
संरचना | 12 अनुच्छेद, 8 परिशिष्ट |
वापसी प्रावधान | कोई एकतरफा निकासी प्रावधान नहीं |
तटस्थ विशेषज्ञ | मिचेल लीनो (2022 में नियुक्त) |
भारत द्वारा नोटिस | जनवरी 2023 (प्रथम), सितंबर 2024 (द्वितीय) |
निलंबन की घोषणा | अप्रैल 2025 (पहलगाम हमले के बाद) |